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Yug dhirawat

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  1. घाटोल 31-10-2023
     
    आदर्श महाविद्यालय के कार्यक्रम में मुनि संघ का सानिध्य प्राप्त हुआ* 
     
     *जिस मुंह से प्रभु का नाम लेते हैं उसे मुंह में गुटका तंबाकू का जहर क्यों डालते हैं* 
     
    *जो नेता नीति से रहित होता है वह सफल नहीं होता है* 

     *पहली रोटी गाय को दे* 

     *तन, मन, धन खराब करती है शराब

     सर्वश्रेष्ठ साधक आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के शिष्य  
    मुनि श्री विमल सागर जी महाराज
    मुनि श्री अनंत सागर जी महाराज
    मुनि श्री भाव सागर जी महाराज आदर्श महाविद्यालय घाटोल जिला बांसवाड़ा राजस्थान 
       में 
      31 अक्टूबर 2023 को आदर्श महाविद्यालय पहुंचे जहां मंगलाचरण, चित्र अनावरण, पाद प्रक्षालन हुआ मुनि श्री की आगवानी सिर पर कलश रखकर महिलाओं ने की

     इस अवसर पर  सभा को संबोधित करते हुए  मुनि श्री भावसागर जी महाराज ने कहा कि पढ़ाई के लिए प्रातः काल की ब्रह्म मुहूर्त की बेला बहुत अच्छी होती है,  परीक्षा में असफल होने पर आत्महत्या नहीं करे, बच्चों को स्मोकिंग से दूर रहना चाहिए ,यह धन भी बर्बाद करता है और शरीर भी ,नशे से सभी को दूर रहना चाहिए, इससे स्वर यंत्र का कैंसर, फेफड़े का कैंसर, मुंह का कैंसर , आदि बीमारी होती है, जिस मुंह से प्रभु का नाम लेते हैं उसे मुंह में गुटका तंबाकू का जहर क्यों डालते हैं ,विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार अमेरिका में 6 लाख व युरोप में 10 लाख से अधिक व्यक्ति प्रतिवर्ष तंबाकू के कारण समय से पूर्व मर जाते हैं.|
    मुनि श्री विमलसागर जी महाराज ने कहा कि हम आदर्श विद्यालय का आदर्श देखने आए हैं, जो नेता नीति से रहित होता है वह सफल नहीं होता है, नीतियां जीवन पर्यंत काम आती है, अंठस्थ धनम कंठस्थ विद्या काम में आती है ,हमने किसी जीव को माता-पिता से अलग किया होगा इसलिए हमारे भी माता-पिता नहीं रहते हैं, संकल्प के बिना जीवन का कायाकल्प नहीं होता है ,जीवो को अभयदान  देना सबसे बड़ा दान है, पहली रोटी गाय को दे, तन, मन, धन खराब करती है शराब, इससे दूर रहे नशीली वस्तुओं का सेवन नहीं करे |
    अल्पेश कोठारी ने कहा कि आदर्श महाविद्यालय सन 2012 से 100 प्रतिशत रिजल्ट दे रहा है, जिनके माता-पिता नहीं होते है उनको हम शिक्षा निःशुल्क देते हैं, कक्षा में उच्च स्थान प्राप्त करने वालों का सम्मान किया गया, इस सभा में गायत्री परिवार के सदस्य, जैन महिला मंडल अध्यक्ष गुंजन शाह, नगर सेठ राजमल सेठ ,अल्पेश कोठारी , यश शाह, वैभव घाटालिया आदि उपस्थित रहे|

  2. घाटोल  29-10-2023
     
    *आर.एस.एस के कार्यक्रम में मुनि संघ का सानिध्य प्राप्त हुआ* 
     
     *100 प्रतिशत मतदान हो यह हमारी जिम्मेदारी है,* 
     
      *विश्व एक परिवार है जिसमें सबको जीने का अधिकार है* 
      
     *शरीर राष्ट्रीय संपत्ति है* 
     
     *ऑक्सीजन के लिए वृक्ष जरुर लगाए* 

     *देश को पर्यावरण की रक्षा के लिए प्लास्टिक मुक्त करना होगा

     सर्वश्रेष्ठ साधक आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के शिष्य  
    मुनि श्री विमल सागर जी महाराज
    मुनि श्री अनंत सागर जी महाराज
    मुनि श्री धर्म सागर जी महाराज
    मुनि श्री भाव सागर जी महाराज
      के सानिध्य में हनुमान मंदिर नेगरेड़ परिसर मे
      29 अक्टूबर 2023 को राष्ट्रीय स्वयं सेवा संघ का कार्यक्रम  हुआ 31 अक्टूबर को दोपहर 1 बजे  आदर्श विद्यालय में मुनिश्री के द्वारा बच्चों को सर्वश्रेष्ठ शिक्षा के लिए टिप्स दिए जाएंगे

     इस अवसर पर  सभा को संबोधित करते हुए  मुनि श्री विमल सागर जी महाराज ने कहा कि राष्ट्र के लिए समर्पित है राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सभी सदस्य, भारत का उत्थान कैसे हो हमारे गुरुदेव ने 7 सूत्र दिए हैं, स्वस्थ तन शाकाहार से ही संभव है ,अपने जीवन में शाकाहार अपनाओ, स्वयंसेवकों को यह स्वयं को मजबूत बनाता है देश की रक्षा के लिए तत्पर रहे, सभी निरोगी बने ,किसी को कष्ट ना हो ऐसी भावना रखना चाहिए, विश्व एक परिवार है जिसमें सबको जीने का अधिकार है ,भारतीय संस्कृति को संत ही बचा कर रखे हैं, भारत की धरती पर करोड़ों गोकुल होते थे ,गौ माता बड़ी सयानी है, गाये कभी मांस नहीं खाती है, खाद्य पदार्थों में सूअर का मांस डल रहा है, गायो की रक्षा करे गौशालाओ में भेजे, राष्ट्र की रीढ़ गाय हैं, भारत देश गायों का रव सुनकर गौरव मानता था, गाय का पालन करें यह चेतन धन है सर्वश्रेष्ठ संपदा है, गाय चेतन धन है इसकी सुरक्षा करें ,शरीर राष्ट्रीय संपत्ति है ,इसका सही उपयोग करें, ऑक्सीजन के लिए वृक्ष जरुर लगाए, विदेशी लोग कम थे फिर भी राज करके चले गए एक वक्ता ने कहा कि सन 1925 से शुरुआत हुई थी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की 2 वर्ष बाद शताब्दी पूरी होगी ,आज सांस्कृतिक गौरव लौट रहा है , हिन्दी भाषा को गौरव प्राप्त हो रहा है, योग को विश्व में मान्यता मिल रही है, भारत को वैभवशाली बनाने के लिए प्रयत्न किया जा रहा हैं, पारिवारिक वातावरण टीवी मोबाइल से बिगड़ रहा है, देश को पर्यावरण की रक्षा के लिए प्लास्टिक मुक्त करना होगा ,एक पौधा अपने जन्मदिन पर जरूर लगाएं ,स्वदेशी की ओर बढे विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करें, देश का पैसा देश में रहे ,आने वाले समय में हमारा भारत फिर से विश्व गुरु बने ,युद्ध के समय में भारत ही कुछ दे सकता है ,100 प्रतिशत मतदान हो यह हमारी जिम्मेदारी है, राष्ट्रीय हित में मतदान हो पूज्य मुनिश्री ने हमें सानिध्य प्रदान किया हम आभार व्यक्त करते हैं.

  3. घाटोल  28-10-2023

     *आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज का 77 वां अवतरण दिवस धूमधाम से मनाया गया* 

     
     *आचार्य श्री की 1500 पूजन लिखी गई है जो वर्ल्ड रिकॉर्ड है* 
     
     *हमारे साथ सर्प विश्राम करते है* 
      
     **भारत को उन्नत बनाने के लिए सूत्र देते रहते है* 

     *30 घंटे खड़े होकर ध्यान लगाया* 

     *हथकरघा के माध्यम से कैदियों को बुरी आदतों  से दूर करके आजीविका का साधन प्रदान किया

    श्री वासूपूज्य दिगंबर जैन मंदिर घाटोल जिला बांसवाड़ा राजस्थान में सर्वश्रेष्ठ साधक आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के शिष्य  
    मुनि श्री विमल सागर जी महाराज
    मुनि श्री अनंत सागर जी महाराज
    मुनि श्री धर्म सागर जी महाराज
    मुनि श्री भाव सागर जी महाराज
      के सानिध्य में  
     सर्वश्रेष्ठ साधक परम पूज्य आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज का 77 वां अवतरण दिवस 28 अक्टूबर 2023 को  पूरे विश्व सहित घाटोल में शनिवार को  प्रातः काल की बेला में आचार्य श्री की महापूजन ,शास्त्र अर्पण ,पाद प्रक्षालन. सांस्कृतिक कार्यक्रम,वृक्षारोपण, गरीबों को भोजन,औषधि,वस्त्रदान, मिष्ठान वितरण     के साथ  मनाया गया, पंचमहागुरू ग्रुप का गठन किया गया  ,इस अवसर पर धर्म सभा को संबोधित करते हुए  मुनि श्री विमल सागर जी महाराज ने कहा कि 77 का अंक महत्वपूर्ण है, आचार्य श्री ने नैनागिर में कहा था कि हमारे साथ सर्प विश्राम करते है ,आचार्य श्री की महान तपस्या, साधना है, जन्म की शुरुआत खोटे कार्यों से करेंगे तो वर्ष खराब होगा ,जैसा मुनि श्री भाव सागर जी महाराज ने बताया है कि विद्याधर के जन्म होने के बाद देश स्वतंत्र हो गया था ,इस जगत में प्रभु और गुरु महत्वपूर्ण है और सर्वश्रेष्ठ है ,गुरुदेव ने इतना बड़ा उपहार दिया है ,भारत को उन्नत बनाने के लिए सूत्र देते रहते है, 
    मुनि श्री अनंत सागर जी महाराज ने कहा कि आचार्य श्री ज्ञान सागर जी महाराज ने कहा था कि विद्या सागर जी एक नया इतिहास रचेंगे, एक बार आचार्य श्री ने 30 घंटे खड़े होकर ध्यान लगाया था ,
    मुनि श्री भाव सागर जी महाराज ने कहा कि आचार्य श्री ने जन्म लेकर इस धरती को धन्य किया, आचार्य श्री के जन्म होने के बाद देश आजाद हुआ ,आचार्य श्री अध्यात्म के ऐसे प्रखर वक्ता है जिन्होंने अपने कृतित्व से साधुता को सार्थक करते हुए भारतीय संस्कृति की गरिमा को अक्षुण्ण बना रखा है, विद्याधर  बचपन से ही अपनी बंद मुट्ठियों में अद्भुत आत्म संपदा और सुकोमल पगतलियों से सारा मोक्षमार्ग पांव पांव चलकर तय करने की क्षमता लेकर जन्मे थे, जो संतो के हिमालय है,  उनके यश के फैलाव के समक्ष एशिया महाद्वीप का क्षेत्रफल छोटा लगने लगता है, उनकी चिंतन मनन की गंभीरताए 
    प्रशांत सागर को उथला कर देती है ,उन्होंने हिंसा के तांडव के बीच गौशालाये खोलकर अहिंसा का शंखनाद किया ,हथकरघा के माध्यम से कैदियों को बुरी आदतों  से दूर करके आजीविका का साधन प्रदान किया, आचार्य श्री ने 51 हजार किलोमीटर की पद यात्रा की है ,1100 गायों की रक्षा के लिए रोग में कष्ट होने पर भी देखने गए ,आचार्य श्री की 1500 पूजन लिखी गई है जो वर्ल्ड रिकॉर्ड है।

  4. घाटोल  25-10-2023

     *कोल्डड्रिंक से होती है खतरनाक बीमारियां — मुनि श्री* 
     *


     
     *आर .एस .एस .के सदस्यों ने होने वाले कार्यक्रम के लिए मुनि संघ को आमंत्रण दिया* 
    *

    **पंचकल्याणक की तैयारियों को लेकर  समाज की बैठक संपन्न हुई

    श्री वासूपूज्य दिगंबर जैन मंदिर में आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के शिष्य  
    मुनि श्री विमल सागर जी महाराज ससंघ के सानिध्य में  25 अक्टूबर को घाटोल में पंचकल्याणक की तैयारियों को लेकर  समाज की बैठक संपन्न हुई जिसमे पंचकल्याणक समिति  बनायी गई और भी पदो का वितरण किया गया, आर एस एस के सदस्यों ने 29 अक्टूबर को होने वाले कार्यक्रम के लिए मुनि संघ को आमंत्रण दिया ,
    , इस अवसर पर धर्म सभा को ,संबोधित करते हुए मुनि श्री भाव सागर जी महाराज ने कहा कि
    एक  अध्ययन की  रिपोर्ट में   खुलासा किया गया था कि कोल्डड्रिंक, साफ्ट ड्रिंक  या डिब्बा बंद फलों के रस पीते है तो आप  
    , घर बैठे डायबिटीज और दिल की बीमारियों को न्यौता दे रहे है   अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन की वार्षिक कांफ्रेंस में यह दावा किया गया था यह दावा किया गया  था और कांफ्रेंस में कहा गया था कि कोल्डड्रिंक पीने की  आदत में बढ़ोत्तरी के चलते अब  दिल की बीमारियों के हजारों नए मामले सामने आ रहे है
    अध्ययन के मुताबिक, अमेरिका में एक लाख तीस हजार अतिरिक्त मौतें हुईं
    दिल की बीमारियों के 14 हजार नए मामले सामने आए।  फलों के ताजे रस को छोड़ कर कोई भी ड्रिंक मोटापा बढ़ाता है, इसके कारण अमेरिका में 6000 अतिरिक्त मौते हुई इसलिए कोल्डड्रिंक का त्याग करना चाहिए 

    मुनि श्री विमल सागर जी महाराज ने जीवन उपयोगी सूत्र बताए

  5. घाटोल 22-10-2023

    *ईर्ष्या करने से होती है खतरनाक बीमारियां*


    श्री वासूपूज्य दिगंबर जैन मंदिर घाटोल जिला बांसवाड़ा राजस्थान में आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के शिष्य   
        मुनि श्री भावसागर जी महाराज ने कहा कि
    दुर्भावना का शरीर पर विशेष प्रभाव पड़ता है 

    अपने स्वरूप में मानव मन जितना पावन होता है उतना ही इस मन में दुर्भावनाओं का गहरा प्रभाव भी प्रायः हो जाता है। जिनसे मन विकृत होता है इस मन विकृति का दुष्प्रभाव शरीर की नियमित और स्वस्थ प्रक्रिया पर अवश्य ही पड़ता है।  वर्तमान युग वैज्ञानिक होने के कारण अब उन तथ्यों की गहराई तक पहुँचना संभव हो सका है जिससे मन की दुर्भावनाओं का शरीर की प्रक्रिया पर पड़ा हुआ दुष्प्रभाव और उनके कारणों को स्पष्ट किया जा सकता है। अनेक वैज्ञानिक शोधों के उपरांत यह प्रमाणित हुआ है। कि घृणा, ईर्ष्या, बेइमानी, चिंता, कंजूसी, अकड़, प्रमाद और अहम का मानव हार्मोस पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। जिससे अनेक प्रकार की बीमारियाँ भी शरीर पर अपना कब्जा कर लेती है। किस दुर्भावना का कौनसे हार्मोंस पर प्रभाव पड़ता है और उससे यह बीमारियाँ हो सकती हैं। 
    चालाकी से थाइरोक्सिन, इंसुलिन, एड्रीनोलिन का अल्पस्राव, प्रभाव-थाइराइड, डायबटीज, कैंसर, उच्च रक्तचाप, एलर्जी

    दुर्भावना-घृणा, ईर्ष्या, जलन, चिंता बेइमानी,
    हार्मोन-वसोप्रेसिन टेस्टोस्टेरान एण्ड्रोजन गोंडा ट्रापित आक्सीटोसिन का अल्प स्राव
    प्रभाव-नपुंसकता, बांझपन, शीघ्र स्खलन, चिड़चिड़ाहट, अनिद्रा जिद्दी स्वभाव, दुर्बलता

    दुर्भावना-कंजूसी, आलस्य, प्रमाद, हार्मोन-हाइपोथेलेमस, अक्रिपमिस्सीमीडिमा सेलोनिम सेरोटोनिन का अल्प स्राव,प्रभाव- कब्ज, अल्सर, एसीडिटी, डिप्रेशन, हाथ-पैरों में दर्द मोटापा

    दुर्भावना-अकड़, अहंकार
    हार्मोन-पेराथेमिन केलेटोनोमिन थायरोक्सिन वेसीप्रेसिन ग्लकोकार्टिको स्टेराइड का अल्प स्राव,प्रभाव-ऑस्टियोपोरोसिस, गठिया, प्रोस्टेट, किडनी समस्या, मोटापा

    इस सब तथ्यों के आधार पर अब यह कहना बाकी नहीं रह जाता कि दुर्भावना का स्वास्थ्य और शरीर पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। इस तरह के वैज्ञानिक शोधों के माध्यम से आए हुए प्रतिवेदनों पर भरोसा करने के बाद यह बात भी हमें स्वीकार करनी होगी कि हजारों वर्ष पहले दिगम्बर जैन आचार्यों ने दुर्भावना के जो दुष्परिणाम बताए थे वे भी सदैव प्रासंगिक रहेंगे।

  6. घाटोल 20-10-2023

     *किसी की जिंदगी में कड़वाहट न घोलें* 

    *जैन समाज खुणादरी ने पंचकल्याणक कराने हेतु श्रीफल अर्पण किया*

    *पंचकल्याणक की तैयारियों को लेकर पूरी समाज की बैठक संपन्न हुई अध्यक्ष का चयन हुआ*

    श्री वासूपूज्य दिगंबर जैन मंदिर में आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के शिष्य  
    मुनि श्री विमल सागर जी महाराज ससंघ के सानिध्य में  20 अक्टूबर को सकल दिगंबर जैन समाज खुणादरी जिला डूंगरपुर ने पंचकल्याणक कराने हेतु श्रीफल अर्पण किया ज्ञात हो कि आर्यिका श्री पूर्णमति माताजी ससंघ के मार्गदर्शन में मंदिर का कार्य चल रहा है इसी क्रम में निंबाहेड़ा जिला चित्तौड़गढ़ राजस्थान में भी पंचकल्याणक होना है वहां  के लोगो ने भी श्रीफल अर्पण किया था इस मंदिर का मुनि श्री प्रमाण सागर जी महाराज के निर्देशन में कार्य चल रहा है घाटोल में पंचकल्याणक की तैयारियों को लेकर पूरी समाज की बैठक संपन्न हुई जिसमे पंचकल्याणक समिति का अध्यक्ष धनपाल लालावत को बनाया गया और भी पदो का वितरण किया जाएगा, आकाश जैन स्काइकिंग इंदौर ने हजार वर्ष तक सुरक्षित रहने वाले ताड़ पत्र पर उत्कीर्ण ग्रंथ के बारे में जानकारी दी

     इस अवसर पर धर्म सभा को संबोधित करते हुए मुनि श्री भाव सागर जी महाराज ने कहा कि अच्छा जीवन जीना स्वयं में बहुत बड़ी कला है और मीठा बोलना उस कला का महत्वपूर्ण हिस्सा है। क्योंकि बोलने की कला में ही लोकप्रियता का राज छिपा हुआ है । कुछ 'लोग वाणी के कारण औरों के दिलों से उतर जाते हैं तो कुछ इसी वाणी के चलते औरों के दिलों में बस जाया करते हैं। हम इस तरह बोलें कि दूसरों का दिल आग आग नहीं, बाग- बाग हो जाए। याद रखें, चेहरे की सुंदरता पाउडर लगाने से नहीं मधुर मुस्कान और मीठी जुबान से होती है ।

    आदमी की पहचान परिधान से नहीं, जुबान से होती है। अगर जबान पर घाव लग जाए तो 24 घंटे में ठीक हो जाता है, पर जबान से घाव लग जाए तो ठीक होने में 24 वर्ष भी कम पड़ जाते हैं। शरीर में सबसे अच्छी चीज भी जबान है और बुरी चीज भी जबान है । यह जबान कैंची भी है और सुई धागा भी । हम जबान से कैंची की तरह रिश्तों को काटे नहीं वरन सुई-धागे की तरह टूटे रिश्तों को साधने की कोशिश करें । इतिहास इस बात का गवाह "है कि जहाँ रावण ने कड़वे वचनों के कारण अपने प्रिय धर्मात्मा भाई विभीषण को खो दिया था वहीं विभीषण ने मीठे वचनोंको से भाई के शत्रु राम को भी अपना बना लिया था ।
     माता-पिता को चाहिए कि वे अपने बच्चों को केवल चलना ही न सिखाएं वरन् बोलना भी सिखाए।
    परिवार में सास-बहू, पिता- पुत्र, भाई-भाई, देवरानी-जेठानी के बीच होने वाले झगड़े धन-दौलत जमीन-जायदाद के कारण कम, कड़वी जबान के कारण ज्यादा होते हैं। अगर आप काले हैं तो इस तरह बोलें कि आपका सांवलापन ढंक जाए और आप गोरे हैं तो इस तरह बोलें कि आपके रंग में चार चांद लग जाएँ। गोरा व्यक्ति भी अगर कड़वा बोलेगा तो दुत्कारा जाएगा, पर काला व्यक्ति भी अगर मीठा बोलेगा तो हर जगह आदर पाएगा।

    जैसा बोलेंगे वैसा मिलेगा दुनिया एक अनुगूंज है । यहाँ व्यक्ति को वही मिलता है जैसा वह औरों को दिया करता है। यहाँ मिठास के बदले मिठास और खटास के बदले खटास लौटकर आती है। अगर हम सबसे मिठास पाना चाहते हैं तो सबको मिठास देना शुरु कर दें। हमसे धर्म-कर्म हो तो अच्छी बात है और न हो तो भी कोई दिक्कत नहीं, पर भूल चूककर भी किसी की जिंदगी में कड़वाहट न घोलें क्योंकि इससे बढ़कर कोई पाप नहीं होता।
     लोकप्रिय बनना है तो बोलना सीखें। जब भी बोलें आदर -अदब से बोलें। छोटों को भी आप कहकर बुलाएं। बड़ों के नाम से पहले श्री व बाद में जी लगाएं। जब भी बोलें आत्म-विश्वास के साथ व श्रेष्ठ बुद्धि का इस्तेमाल करते हुए बोलें। मिठास से व मुस्कुराते हुए बोलें । औरों की प्रशंसा करते हुए बोलें। सासुएं बहुओं को डांटना बंद करें और उनकी प्रशंसा करना शुरू करें। 
    मुनि श्री धर्म सागर जी महाराज ने जीवन उपयोगी सूत्र बताए 
    मुनि श्री अनंत सागर जी महाराज ने जीवन में अध्यात्म केसे लाए यह बताया 
    मुनि श्री विमल सागर जी महाराज ने कहा कि खुणादरी के श्री आदिनाथ भगवान अतिशयकारी है आप लोग माला फेरे जिससे जल्दी से जल्दी पंचकल्याणक आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के आशीर्वाद से संपन्न हो।

  7. *आचार्य श्री विद्यासागर जी का अवतरण दिवस पूरे विश्व सहित मनाया जाएगा* सर्वश्रेष्ठ साधक परम पूज्य आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज का अवतरण दिवस पूरे विश्व में 28 अक्टूबर 2023 को मनाया जाएगा   इसके अंतर्गत आचार्य श्री की महापूजन, सांस्कृतिक के साथ मनाया जाए वृक्षारोपण, गरीबों को भोजन,औषधि,वस्त्रदान, मिष्ठान वितरण,भी किया जाए

  8. घाटोल 12/10/23
    श्री वासुपूज्य दिगंबर जैन मंदिर घाटोल जिला बांसवाड़ा राजस्थान मे परम पूज्य सर्वश्रेष्ठ साधक आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के शिष्य मुनि श्री भाव सागर जी महाराज ने कहा कि

    *पिच्छिका परिवर्तन इसलिए होता है

    मोर का औसतन जीवन काल 10 से 25 वर्ष होता है मोर के पंख अगस्त या कार्तिक महीने में झड़ जाते हैं गर्मी आने से पहले यह पंख फिर से आ जाते हैं एक गुच्छे में 150 पंख होते है पिच्छिका और कमंडल मुनि के स्वावलंबन के दो हाथ हैं ,मुनिराज की पिच्छिका में 900 पंख लगते है और   आर्यिका की पिच्छिका मे 600 से 750 पखं लगते हैं,
     दिगम्बर।साधु अपने पास केवल ज्ञान उपकरण के रूप में शास्त्र, शौच उपकरण के रूप में कमंडल व संयम उपकरण के रूप में पिच्छिका को ही रख सकते है। शास्त्र, श्रमण के ज्ञान को बढ़ाने में सहायक होते है, वहीं शौच आदि शरीर शुद्धि क्रिया के लिए कमंडल का उपयोग किया जाता है। दिगम्बर श्रमण (साधु) संयमी जीवन शैली व अहिंसा महाव्रत के निर्दोष पालन करने के लिए मयूर पिच्छिका को हमेशा अपने साथ रखते है। मयूर पिच्छिका का इतना महत्व है कि साधुजन आवश्यकता न होने पर बिना कमंडल व शास्त्र के तो अपनी अन्य क्रियाऐं कर सकते है परंतु बिना पिच्छिका के सात कदम भी नही चल सकते है। 

    *पिच्छिका का उपयोग ऐसे करते*

     दिगम्बर जैन श्रमण संयम उपकरण पिच्छिका का उपयोग अपनी दिनचर्या में प्रतिपल करते है। उठते बैठते, विश्राम करते, चलते, आहार आदि समस्त क्रियाओं में | निरंतर परिमार्जन के लिए पिच्छिका सहायक होती है। अतः जब मयूर पंख की कोमलता कम हो जाती है अर्थात मयूर पंख का स्पर्श करने पर हल्के से कठोर लगने लगते है तब ही पिच्छिका को परिवर्तित किया जाता है।

        *पिच्छिका परिवर्तन कब  किया जाता*

    अधिकतर श्रावकजन की सोच होती है कि चातुर्मास समाप्त होने पर दिगम्बर श्रमण की पिच्छिका का परिवर्तन होता है, अपितु यह भ्रांति मात्र है। अर्थात् जब मयूर पंख का स्पर्श करने पर हल्की सी चुभन होती है तब यह पिच्छिका वर्ष भर में कभी भी परिवर्तित की जा सकती है। जब पिच्छिका से परिमार्जन करने में छोटे-छोटे 
    जीवो की रक्षा नहीं होती  हैऐसा विकल्प मानकरपिछिका को आवश्यकता अनुसार कभी भी परिवर्तित किया जा सकता है आवश्यकता होने पर वर्ष में दो बार भी परिवर्तित किया जा सकता है यदि पिचका में मृदुता है तो 2 वर्ष तक नहीं बदलने में भी कोई दोष नहीं है 

    *पिच्छिका परिवर्तन कार्यक्रम का आयोजन बड़े पैमाने पर क्यो किया जाता*  

     नवयुवाओं में धर्म के प्रति आस्था जागृत करने के लिए, बालकों में जैन संस्कारों के बीजारोपण के लिए, वर्तमान के हिंसात्मक वातावरण में अहिंसा के महत्व को दर्शाने के निमित्त से ही पिच्छिका परिवर्तन कार्यक्रम का आयोजन बड़े पैमाने पर किया जाता है।

    *पिच्छिका परिवर्तन कार्यक्रम चातुर्मास समाप्ति पर ही क्यों होते हैं*

    चातुर्मास निष्ठापन के समय ही कार्तिक मास के आसपास मोर भी अपने पंखों - को स्वतः छोड़ते हैं। जिससे चातुर्मास के निष्ठापन पर नई पिच्छिका के निर्माण के लिए • आसानी से मयूर पंख उपलब्ध हो जाते है, साथ ही साथ चातुर्मास अवधि में समाज द्वारा  पिच्छिका परिवर्तन का कार्यक्रम किसी अन्य समय व शहर में करवाना पसंद नहीं करते इसीलिए भी अधिकतर पिच्छिका परिवर्तन कार्यक्रम चातुर्मास समाप्ति पर ही होते हैं। 

     *पिच्छिका के लिए मयूर पंख ही क्यों* 

    मयूर पंख में विद्यमान 5 गुणों के साथ ही आगम (शास्त्र) में आचार्य कुंद-कुंद स्वामी जी ने दिगम्बर श्रमणों के लिए मयूर पंख से निर्मित पिच्छिका का ही उल्लेख किया। है। मोर एक ऐसा पक्षी है जो कार्तिक मास के आसपास स्वतः ही अपने पंखो को छोड़ देता है, अतः मोर को बिना घात किए हुए व पूर्णतः अहिंसा के साथ ये पंख उपलब्ध हो जाते है। इसलिए इन मयूर पंखो से ही पिच्छिका का निर्माण किया जाता है। इसके अलावा मोर एक ऐसा पक्षी है जो बिना किसी विषय वासना के ही अपना जीवन  बिताता है। भावअतिरेक होने के कारण जब मोर के आंख में आंसू आ जाते है तब मोरनी इन आंसुओं को ग्रहण कर लेती है, जिससे उसे गर्भधारण हो जाता है अर्थात मोर को अपने वंश को बढ़ाने के लिए मोरनी के साथ कोई विषय वासना की आवश्यकता नही होती. इसलिए भी मोर पंख ज्यादा अच्छा माना जाता है।

     *मयूर पिच्छिका के 5 गुण कौन-कौन से है* 

    मोर पंख देखने में तो अत्यंत सुंदर होता ही है, साथ-साथ इसमें निम्नलिखित 5 गुण पाए जाते है 
    1. मृदुता मयूर पंख अत्यंत मृदु होता है किसी कारण से हमारी आंख में कोई छोटा सा तिनका भी चला जाता है तो हमारी आंखों से आंसू आने लगते है परंतु मयूर पंख इतना मृदु होता है कि आंखों में जाने पर भी कोई चुभन नही होती।
    2. सुकुमारता मयूर पंख अत्यंत कोमल होता है। इनकी कोमलता के कारण ही परिमार्जन करते समय जो जीव हमें सूनी आंखो से नहीं दिखाई देते उन जीवों की भी | रक्षा करते हुए अहिंसा महाव्रत का पालन किया जा सकता है। 
    3. रज ग्रहण नही करती दिगम्बर साधु प्रत्येक क्रिया से पूर्व परिमार्जन करते है अर्थात 
    जो भी वस्तु को उठाते रखते है तब पिच्छिका का उपयोग करते हैं, तब पिच्छिका उस धूल को तो हटा देती है परंतु मयूर पंख उस धूल को ग्रहण नही करते।
    4. पसीना ग्रहण नही करती • जब श्रमण, परिमार्जन के दौरान अपने शरीर से पिच्छिका
    का उपयोग करते है तब मयूर पंख पसीने को ग्रहण नहीं करते। 
    5. हल्के - मयूर पंख सुंदर होने के साथ-साथ हल्के भी होते है अर्थात पिच्छिका के रूप में | इनका भार ज्यादा नही होने के कारण ही दिगम्बर साधु इनका उपयोग आसानी से करते है।

     *पिच्छिका परिवर्तन पहले ऐसे होता था* 

    चातुर्मास के बाद दिगंबर जैन पिच्छीधारी साधु पिच्छिका का परिवर्तन करते हैं । यह पिच्छिका मयूर के पंखों एंव बेंत की लकड़ी से डंडी और रस्सी से बनती है। मोर अपने पंख अपने आप छोड़ती है और श्रावक उठा लाते हैं फिर श्रावक पिच्छी बनाकर साधु को देता है और ब्रह्मचर्य व्रत, रात्रि भोजन त्याग, पूजन आदि का नियम लेकर श्रावक-श्राविका आदि देते हैं और पुरानी ले लेते हैं। यह वर्ष में एक बार परिवर्तन होता है। विशेष परिस्थयों में बीच मे भी हो जाता है । यह मृदु होते हैं पंख आँख मे जाने पर भी पीड़ा नहीं होती है। रज को ग्रहण नहीं करते है। सूक्ष्म जीवो को भी कष्ट नहीं होता है। यह साधु का चिन्ह है । (सिम्बाल है) इस पिच्छी के बिना करीब 5-7 हाथ ही चल सकते हैं साधु ज्यादा नहीं। यह सयंम का उपकरण श्रावक पुराना घर मे रखते है जिसे देखकर साधु बनने की प्रेरणा मिलती रहती है ।
    पहले बुंदेलखण्ड में प्रत्येक घर में श्रावक पिच्छी बनाकर रखते थे कोई साधु चातुर्मास के बाद आते थें विहार करते हुये तो चौके में परिवर्तन कर देते थे वर्तमान में आचार्यो, मुनिराजों, पिच्छीधारी साधुओं से निवेदन है की वर्ष में एक बार ही पिच्छी का परिवर्तन करें जिससे पंखों का प्रयोग कम करना पड़े जरूरत पड़े तो पिच्छी 4-6 महीनें में पलट सकतें है जिससे यह परंपरा हमेशा सुरक्षित रहें ।
    *पिच्छिका से परिमार्जन कब किया जाता है*  

     आगमानुसार प्रत्येक आचार्य संघ, मुनिजन, माताजी को आदान निक्षेपण समिति का पालन करते समय कमंडल को उठाते व रखते समय शरीर को उठाते-बिठाते, लिटाते, करवट बदलते समय, धूप से छांव और छांव से धूप मे आते समय शरीर को पिच्छिका से प्रमार्जित करते है साथ ही देवों के समकक्ष गिने/ माने जाने वाले शास्त्रों को उठाते, विराजमान करते समय, शास्त्र को खोलते व बंद करते समय प्रमार्जित करते है। इसके अलावा अन्य दैनिक चर्या को निर्दोष पालन करने में भी पिच्छिका से परिमार्जन किया जाता है।

     *मयूर पिच्छिका के क्या उपयोग हैं* 

    दिगम्बर जैन श्रमण संस्कृति में प्रत्येक आचार्य, साधु, आर्यिका एलक, क्षुल्लक, क्षुल्लिकाजी के लिए संयम उपकरण के रूप में मयूर पिच्छिका अत्यंत आवश्यक व उपयोगी है। दैनिक क्रियाओं में परिमार्जन मंगलाचरण, सामायिक, प्रतिक्रमण, आहार, विहार आदि समस्त क्रियाऐं बिना पिच्छिका के संभव ही नही है। किसी भी परिस्थिति में साधुजन बिना पिच्छिका के एक कदम भी नही चल सकते है और यदि बिना पिच्छिका के 7 कदम तक की दूरी तय कर भी ले तो आगमानुसार इसके लिए उन्हें अपने गुरु से प्रायश्चित भी लेना पड़ता है।

     *पिच्छिका भी आहारचर्या के दौरान अंतराय का कारण हो सकती है* 

    संयम का साधन होने से एवं लोक व्यवहार से पिच्छिका को पवित्र उपकरण माना जाता है। आहारचर्या के समय सामान्यतः भोजन में मनुष्य या अन्य पशुपक्षी के बाल आ जाने के कारण मुनि / आर्यिका के लिए अंतराय का कारण बन जाते है फिर तो मयूर पिच्छिका भी मोर के पंख के द्वारा निर्मित होती है। अतः दिगम्बर श्रमण आहारचर्या में | आसान पर बैठने से पहले परिमार्जन करते है और पिच्छिका को 2-3 हाथ की दूरी पर | कायोत्सर्ग करने के बाद ही आहार ग्रहण करते है। आहर के दौरान भोजन में मयूर पंख के आ जाने पर या हवा करने के निमित्त से यदि पिच्छिका का स्पर्श हो जाए तो साधुजन को अंतराय माना जाता है इसलिए आपने कभी ध्यान दिया हो तो प्रत्येक मुनि आर्यिका आहार के समय अपनी पिच्छिका हमेशा 2-3 हाथ की दूरी पर ही रखते है।

  9. *विशेष तिथियों की जानकारी सन् 2024

    (आचार्य श्री विद्यासागर जी संघ संबंधी)

    (1).श्री आदिनाथ जी निर्वाणोत्सव
    8.02.2024 गुरुवार माघ कृष्ण तेरस/ चतुदर्शी

    (2).अष्टान्हिका पर्व 
    17.03.2024 से 25.03 2024 तक रविवार से सोमवार तक
    फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से पूर्णिमा तक


    (3). निर्यापक मुनि श्री समयसागर जी मुनि दीक्षा दिवस  31.03.2024 रविवार चैत्र कृष्ण छठ

    (4).श्री आदिनाथ जी जयंती तीर्थंकर दिवस 03.04.2024 बुधवार  चैत्र कृष्ण नवमी

     (5).श्री महावीर जयंती 21.04.2024 रविवार चैत्र शुक्ल तेरस

    (6). निर्यापक मुनि श्री योगसागर जी, नियमसागर जी दीक्षा दिवस 08.05.2024 बुधवार वैशाख कृष्ण अमावस्या/एकम

    (7). तृतीया ( दान दिवस) 10.05.2024 शुक्रवार वैशाख शुक्ल तृतीया

    (8).26 वां. मुनि दीक्षा दिवस (23 मुनिराज नेमावर)
    14.05.2024 मंगलवार वैशाख शुक्ल सप्तमी

    (9). शांतिनाथ भ का जन्म, तप, मोक्ष क. (शांतिधारा दिवस) 05.06.2024 बुधवार ज्येष्ठ कृष्ण चतुर्दशी

    (10). समाधि दिवस महाकवि आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज- 06.06.2024 गुरुवार ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या

    (11).श्रुत पंचमी (जिनवाणी दिवस) 11.06.2024 मंगलवार ज्येष्ठ शुक्ल पंचमी

    (12).57 वां मुनि दीक्षा दिवस (आ. श्री विद्यासागर जी महाराज) 11.07.2024 गुरुवार आषाढ़ शुक्ल पंचमी

    (13).अष्टान्हिका पर्व 14.07.2024 रविवार से 21.07.2024 रविवार तक 
    आषाढ़ शुक्ल अष्ठमी से पूर्णिमा तक

    (14).चातुर्मास स्थापना
    20 जुलाई 2024, शनिवार आषाढ़ शुक्ल चतुर्दशी

    (15).गुरु पूर्णिमा
    21 जुलाई 2024 रविवार आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा

     (16).वीर शासन जयंती युग परिवर्तन दिवस
    22 जुलाई 2024 सोमवार श्रावण कृष्ण एकम

    (17).24 मुनिराज मुनि दीक्षा दिवस ( रामटेक दीक्षा) 08-08-2024 गुरुवार श्रावण शुक्ल चौथ

    (18). निर्यापक मुनि श्री वीर सागर जी महाराज आदि  का 21 वाँ मुनि दीक्षा दिवस 
    (भ. श्री नेमिनाथ जी जन्म एवं तप कल्याणक)
    10--08--2024 शनिवार श्रावण शुक्ल छठ

    (19).मोक्ष सप्तमी
    (भगवान श्री पार्श्वनाथ जी मोक्ष कल्याणक)
    11-08-2024  रविवार श्रावण शुक्ल सप्तमी

    (20).रक्षाबंधन (श्रमण संस्कृति रक्षक दिवस)
    19 अगस्त 2024 सोमवार श्रावण शुक्ल पूर्णिमा

    (21).दशलक्षण पर्व
    8-09-2024 से 17-09-2024 तक रविवार से मंगलवार  तक भाद्रपद शुक्ल पंचमी से भाद्रपद शुक्ल चतुर्दशी/पूर्णिमा तक

    (22).विश्व अहिंसा दिवस
    2 अक्टूबर 2024 बुधवार

    (23).मुनि दीक्षा दिवस 19-09-2024 गुरुवार आश्विन कृष्ण एकम

    (24).मुनि दीक्षा दिवस गुरु उपकार महोत्सव
    (शरद पूर्णिमा ) 17-10-2024 गुरुवार आश्विन शुक्ल पूर्णिमा 

    (25).महावीर निर्वाणोत्सव
    (दीपावली) एवं चातुर्मास निष्ठापन
    31 -10-2024 गुरुवार कार्तिक कृष्ण अमावस्या
    🌹🌿🌷☘️🌻🍀🌼🌲

    (26).53वाँ आचार्य पदारोहण दिवस (आ. श्री विद्यासागर जी महा. 17.11.2024 रविवार
    मार्गशीर्ष कृष्ण 2
    .........…...................................................
     ( साभार :- तीर्थंकर वर्धमान जैन पंचाग इन्दौर 2024)

  10. घाटोल 12/10/23
    श्री वासुपूज्य दिगंबर जैन मंदिर घाटोल जिला बांसवाड़ा राजस्थान मे परम पूज्य सर्वश्रेष्ठ साधक आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के शिष्य मुनि श्री भाव सागर जी महाराज ने कहा कि

    *पिच्छिका परिवर्तन इसलिए होता है* 

    मोर का औसतन जीवन काल 10 से 25 वर्ष होता है मोर के पंख अगस्त या कार्तिक महीने में झड़ जाते हैं गर्मी आने से पहले यह पंख फिर से आ जाते हैं एक गुच्छे में 150 पंख होते है पिच्छिका और कमंडल मुनि के स्वावलंबन के दो हाथ हैं ,मुनिराज की पिच्छिका में 900 पंख लगते है और   आर्यिका की पिच्छिका मे 600 से 750 पखं लगते हैं,
     दिगम्बर।साधु अपने पास केवल ज्ञान उपकरण के रूप में शास्त्र, शौच उपकरण के रूप में कमंडल व संयम उपकरण के रूप में पिच्छिका को ही रख सकते है। शास्त्र, श्रमण के ज्ञान को बढ़ाने में सहायक होते है, वहीं शौच आदि शरीर शुद्धि क्रिया के लिए कमंडल का उपयोग किया जाता है। दिगम्बर श्रमण (साधु) संयमी जीवन शैली व अहिंसा महाव्रत के निर्दोष पालन करने के लिए मयूर पिच्छिका को हमेशा अपने साथ रखते है। मयूर पिच्छिका का इतना महत्व है कि साधुजन आवश्यकता न होने पर बिना कमंडल व शास्त्र के तो अपनी अन्य क्रियाऐं कर सकते है परंतु बिना पिच्छिका के सात कदम भी नही चल सकते है। 

    पिच्छिका का उपयोग ऐसे करते

     दिगम्बर जैन श्रमण संयम उपकरण पिच्छिका का उपयोग अपनी दिनचर्या में प्रतिपल करते है। उठते बैठते, विश्राम करते, चलते, आहार आदि समस्त क्रियाओं में | निरंतर परिमार्जन के लिए पिच्छिका सहायक होती है। अतः जब मयूर पंख की कोमलता कम हो जाती है अर्थात मयूर पंख का स्पर्श करने पर हल्के से कठोर लगने लगते है तब ही पिच्छिका को परिवर्तित किया जाता है।

        *पिच्छिका परिवर्तन कब  किया जाता*

    अधिकतर श्रावकजन की सोच होती है कि चातुर्मास समाप्त होने पर दिगम्बर श्रमण की पिच्छिका का परिवर्तन होता है, अपितु यह भ्रांति मात्र है। अर्थात् जब मयूर पंख का स्पर्श करने पर हल्की सी चुभन होती है तब यह पिच्छिका वर्ष भर में कभी भी परिवर्तित की जा सकती है। जब पिच्छिका से परिमार्जन करने में छोटे-छोटे 
    जीवो की रक्षा नहीं होती  हैऐसा विकल्प मानकरपिछिका को आवश्यकता अनुसार कभी भी परिवर्तित किया जा सकता है आवश्यकता होने पर वर्ष में दो बार भी परिवर्तित किया जा सकता है यदि पिचका में मृदुता है तो 2 वर्ष तक नहीं बदलने में भी कोई दोष नहीं है 

    *पिच्छिका परिवर्तन कार्यक्रम का आयोजन बड़े पैमाने पर क्यो किया जाता*  

     नवयुवाओं में धर्म के प्रति आस्था जागृत करने के लिए, बालकों में जैन संस्कारों के बीजारोपण के लिए, वर्तमान के हिंसात्मक वातावरण में अहिंसा के महत्व को दर्शाने के निमित्त से ही पिच्छिका परिवर्तन कार्यक्रम का आयोजन बड़े पैमाने पर किया जाता है।

    *पिच्छिका परिवर्तन कार्यक्रम चातुर्मास समाप्ति पर ही क्यों होते हैं*

    चातुर्मास निष्ठापन के समय ही कार्तिक मास के आसपास मोर भी अपने पंखों - को स्वतः छोड़ते हैं। जिससे चातुर्मास के निष्ठापन पर नई पिच्छिका के निर्माण के लिए • आसानी से मयूर पंख उपलब्ध हो जाते है, साथ ही साथ चातुर्मास अवधि में समाज द्वारा  पिच्छिका परिवर्तन का कार्यक्रम किसी अन्य समय व शहर में करवाना पसंद नहीं करते इसीलिए भी अधिकतर पिच्छिका परिवर्तन कार्यक्रम चातुर्मास समाप्ति पर ही होते हैं। 

     *पिच्छिका के लिए मयूर पंख ही क्यों* 

    मयूर पंख में विद्यमान 5 गुणों के साथ ही आगम (शास्त्र) में आचार्य कुंद-कुंद स्वामी जी ने दिगम्बर श्रमणों के लिए मयूर पंख से निर्मित पिच्छिका का ही उल्लेख किया। है। मोर एक ऐसा पक्षी है जो कार्तिक मास के आसपास स्वतः ही अपने पंखो को छोड़ देता है, अतः मोर को बिना घात किए हुए व पूर्णतः अहिंसा के साथ ये पंख उपलब्ध हो जाते है। इसलिए इन मयूर पंखो से ही पिच्छिका का निर्माण किया जाता है। इसके अलावा मोर एक ऐसा पक्षी है जो बिना किसी विषय वासना के ही अपना जीवन  बिताता है। भावअतिरेक होने के कारण जब मोर के आंख में आंसू आ जाते है तब मोरनी इन आंसुओं को ग्रहण कर लेती है, जिससे उसे गर्भधारण हो जाता है अर्थात मोर को अपने वंश को बढ़ाने के लिए मोरनी के साथ कोई विषय वासना की आवश्यकता नही होती. इसलिए भी मोर पंख ज्यादा अच्छा माना जाता है।

     *मयूर पिच्छिका के 5 गुण कौन-कौन से है* 

    मोर पंख देखने में तो अत्यंत सुंदर होता ही है, साथ-साथ इसमें निम्नलिखित 5 गुण पाए जाते है 
    1. मृदुता मयूर पंख अत्यंत मृदु होता है किसी कारण से हमारी आंख में कोई छोटा सा तिनका भी चला जाता है तो हमारी आंखों से आंसू आने लगते है परंतु मयूर पंख इतना मृदु होता है कि आंखों में जाने पर भी कोई चुभन नही होती।
    2. सुकुमारता मयूर पंख अत्यंत कोमल होता है। इनकी कोमलता के कारण ही परिमार्जन करते समय जो जीव हमें सूनी आंखो से नहीं दिखाई देते उन जीवों की भी | रक्षा करते हुए अहिंसा महाव्रत का पालन किया जा सकता है। 
    3. रज ग्रहण नही करती दिगम्बर साधु प्रत्येक क्रिया से पूर्व परिमार्जन करते है अर्थात 
    जो भी वस्तु को उठाते रखते है तब पिच्छिका का उपयोग करते हैं, तब पिच्छिका उस धूल को तो हटा देती है परंतु मयूर पंख उस धूल को ग्रहण नही करते।
    4. पसीना ग्रहण नही करती • जब श्रमण, परिमार्जन के दौरान अपने शरीर से पिच्छिका
    का उपयोग करते है तब मयूर पंख पसीने को ग्रहण नहीं करते। 
    5. हल्के - मयूर पंख सुंदर होने के साथ-साथ हल्के भी होते है अर्थात पिच्छिका के रूप में | इनका भार ज्यादा नही होने के कारण ही दिगम्बर साधु इनका उपयोग आसानी से करते है।

     *पिच्छिका परिवर्तन पहले ऐसे होता था* 

    चातुर्मास के बाद दिगंबर जैन पिच्छीधारी साधु पिच्छिका का परिवर्तन करते हैं । यह पिच्छिका मयूर के पंखों एंव बेंत की लकड़ी से डंडी और रस्सी से बनती है। मोर अपने पंख अपने आप छोड़ती है और श्रावक उठा लाते हैं फिर श्रावक पिच्छी बनाकर साधु को देता है और ब्रह्मचर्य व्रत, रात्रि भोजन त्याग, पूजन आदि का नियम लेकर श्रावक-श्राविका आदि देते हैं और पुरानी ले लेते हैं। यह वर्ष में एक बार परिवर्तन होता है। विशेष परिस्थयों में बीच मे भी हो जाता है । यह मृदु होते हैं पंख आँख मे जाने पर भी पीड़ा नहीं होती है। रज को ग्रहण नहीं करते है। सूक्ष्म जीवो को भी कष्ट नहीं होता है। यह साधु का चिन्ह है । (सिम्बाल है) इस पिच्छी के बिना करीब 5-7 हाथ ही चल सकते हैं साधु ज्यादा नहीं। यह सयंम का उपकरण श्रावक पुराना घर मे रखते है जिसे देखकर साधु बनने की प्रेरणा मिलती रहती है ।
    पहले बुंदेलखण्ड में प्रत्येक घर में श्रावक पिच्छी बनाकर रखते थे कोई साधु चातुर्मास के बाद आते थें विहार करते हुये तो चौके में परिवर्तन कर देते थे वर्तमान में आचार्यो, मुनिराजों, पिच्छीधारी साधुओं से निवेदन है की वर्ष में एक बार ही पिच्छी का परिवर्तन करें जिससे पंखों का प्रयोग कम करना पड़े जरूरत पड़े तो पिच्छी 4-6 महीनें में पलट सकतें है जिससे यह परंपरा हमेशा सुरक्षित रहें ।
    *पिच्छिका से परिमार्जन कब किया जाता है*  

     आगमानुसार प्रत्येक आचार्य संघ, मुनिजन, माताजी को आदान निक्षेपण समिति का पालन करते समय कमंडल को उठाते व रखते समय शरीर को उठाते-बिठाते, लिटाते, करवट बदलते समय, धूप से छांव और छांव से धूप मे आते समय शरीर को पिच्छिका से प्रमार्जित करते है साथ ही देवों के समकक्ष गिने/ माने जाने वाले शास्त्रों को उठाते, विराजमान करते समय, शास्त्र को खोलते व बंद करते समय प्रमार्जित करते है। इसके अलावा अन्य दैनिक चर्या को निर्दोष पालन करने में भी पिच्छिका से परिमार्जन किया जाता है।

     *मयूर पिच्छिका के क्या उपयोग हैं* 

    दिगम्बर जैन श्रमण संस्कृति में प्रत्येक आचार्य, साधु, आर्यिका एलक, क्षुल्लक, क्षुल्लिकाजी के लिए संयम उपकरण के रूप में मयूर पिच्छिका अत्यंत आवश्यक व उपयोगी है। दैनिक क्रियाओं में परिमार्जन मंगलाचरण, सामायिक, प्रतिक्रमण, आहार, विहार आदि समस्त क्रियाऐं बिना पिच्छिका के संभव ही नही है। किसी भी परिस्थिति में साधुजन बिना पिच्छिका के एक कदम भी नही चल सकते है और यदि बिना पिच्छिका के 7 कदम तक की दूरी तय कर भी ले तो आगमानुसार इसके लिए उन्हें अपने गुरु से प्रायश्चित भी लेना पड़ता है।

     *पिच्छिका भी आहारचर्या के दौरान अंतराय का कारण हो सकती है* 

    संयम का साधन होने से एवं लोक व्यवहार से पिच्छिका को पवित्र उपकरण माना जाता है। आहारचर्या के समय सामान्यतः भोजन में मनुष्य या अन्य पशुपक्षी के बाल आ जाने के कारण मुनि / आर्यिका के लिए अंतराय का कारण बन जाते है फिर तो मयूर पिच्छिका भी मोर के पंख के द्वारा निर्मित होती है। अतः दिगम्बर श्रमण आहारचर्या में | आसान पर बैठने से पहले परिमार्जन करते है और पिच्छिका को 2-3 हाथ की दूरी पर | कायोत्सर्ग करने के बाद ही आहार ग्रहण करते है। आहर के दौरान भोजन में मयूर पंख के आ जाने पर या हवा करने के निमित्त से यदि पिच्छिका का स्पर्श हो जाए तो साधुजन को अंतराय माना जाता है इसलिए आपने कभी ध्यान दिया हो तो प्रत्येक मुनि आर्यिका आहार के समय अपनी पिच्छिका हमेशा 2-3 हाथ की दूरी पर ही रखते है।

  11. *पिच्छिका परिवर्तन इसलिए होता है
    मोर का औसतन जीवन काल 10 से 25 वर्ष होता है मोर के पंख अगस्त या कार्तिक महीने में झड़ जाते हैं गर्मी आने से पहले यह पंख फिर से आ जाते हैं एक गुच्छे में 150 पंख होते है पिच्छिका और कमंडल मुनि के स्वावलंबन के दो हाथ हैं ,मुनिराज की पिच्छिका में 900 पंख लगते है और   आर्यिका की पिच्छिका मे 600 से 750 पखं लगते हैं,
     दिगम्बर।साधु अपने पास केवल ज्ञान उपकरण के रूप में शास्त्र, शौच उपकरण के रूप में कमंडल व संयम उपकरण के रूप में पिच्छिका को ही रख सकते है। शास्त्र, श्रमण के ज्ञान को बढ़ाने में सहायक होते है, वहीं शौच आदि शरीर शुद्धि क्रिया के लिए कमंडल का उपयोग किया जाता है। दिगम्बर श्रमण (साधु) संयमी जीवन शैली व अहिंसा महाव्रत के निर्दोष पालन करने के लिए मयूर पिच्छिका को हमेशा अपने साथ रखते है। मयूर पिच्छिका का इतना महत्व है कि साधुजन आवश्यकता न होने पर बिना कमंडल व शास्त्र के तो अपनी अन्य क्रियाऐं कर सकते है परंतु बिना पिच्छिका के सात कदम भी नही चल सकते है। 

    *पिच्छिका का उपयोग ऐसे करते*

     दिगम्बर जैन श्रमण संयम उपकरण पिच्छिका का उपयोग अपनी दिनचर्या में प्रतिपल करते है। उठते बैठते, विश्राम करते, चलते, आहार आदि समस्त क्रियाओं में | निरंतर परिमार्जन के लिए पिच्छिका सहायक होती है। अतः जब मयूर पंख की कोमलता कम हो जाती है अर्थात मयूर पंख का स्पर्श करने पर हल्के से कठोर लगने लगते है तब ही पिच्छिका को परिवर्तित किया जाता है।

        *पिच्छिका परिवर्तन कब  किया जाता*

    अधिकतर श्रावकजन की सोच होती है कि चातुर्मास समाप्त होने पर दिगम्बर श्रमण की पिच्छिका का परिवर्तन होता है, अपितु यह भ्रांति मात्र है। अर्थात् जब मयूर पंख का स्पर्श करने पर हल्की सी चुभन होती है तब यह पिच्छिका वर्ष भर में कभी भी परिवर्तित की जा सकती है। जब पिच्छिका से परिमार्जन करने में छोटे-छोटे 
    जीवो की रक्षा नहीं होती  हैऐसा विकल्प मानकरपिछिका को आवश्यकता अनुसार कभी भी परिवर्तित किया जा सकता है आवश्यकता होने पर वर्ष में दो बार भी परिवर्तित किया जा सकता है यदि पिचका में मृदुता है तो 2 वर्ष तक नहीं बदलने में भी कोई दोष नहीं है 

    *पिच्छिका परिवर्तन कार्यक्रम का आयोजन बड़े पैमाने पर क्यो किया जाता*  

     नवयुवाओं में धर्म के प्रति आस्था जागृत करने के लिए, बालकों में जैन संस्कारों के बीजारोपण के लिए, वर्तमान के हिंसात्मक वातावरण में अहिंसा के महत्व को दर्शाने के निमित्त से ही पिच्छिका परिवर्तन कार्यक्रम का आयोजन बड़े पैमाने पर किया जाता है।

    *पिच्छिका परिवर्तन कार्यक्रम चातुर्मास समाप्ति पर ही क्यों होते हैं*

    चातुर्मास निष्ठापन के समय ही कार्तिक मास के आसपास मोर भी अपने पंखों - को स्वतः छोड़ते हैं। जिससे चातुर्मास के निष्ठापन पर नई पिच्छिका के निर्माण के लिए • आसानी से मयूर पंख उपलब्ध हो जाते है, साथ ही साथ चातुर्मास अवधि में समाज द्वारा  पिच्छिका परिवर्तन का कार्यक्रम किसी अन्य समय व शहर में करवाना पसंद नहीं करते इसीलिए भी अधिकतर पिच्छिका परिवर्तन कार्यक्रम चातुर्मास समाप्ति पर ही होते हैं। 

     *पिच्छिका के लिए मयूर पंख ही क्यों* 

    मयूर पंख में विद्यमान 5 गुणों के साथ ही आगम (शास्त्र) में आचार्य कुंद-कुंद स्वामी जी ने दिगम्बर श्रमणों के लिए मयूर पंख से निर्मित पिच्छिका का ही उल्लेख किया। है। मोर एक ऐसा पक्षी है जो कार्तिक मास के आसपास स्वतः ही अपने पंखो को छोड़ देता है, अतः मोर को बिना घात किए हुए व पूर्णतः अहिंसा के साथ ये पंख उपलब्ध हो जाते है। इसलिए इन मयूर पंखो से ही पिच्छिका का निर्माण किया जाता है। इसके अलावा मोर एक ऐसा पक्षी है जो बिना किसी विषय वासना के ही अपना जीवन  बिताता है। भावअतिरेक होने के कारण जब मोर के आंख में आंसू आ जाते है तब मोरनी इन आंसुओं को ग्रहण कर लेती है, जिससे उसे गर्भधारण हो जाता है अर्थात मोर को अपने वंश को बढ़ाने के लिए मोरनी के साथ कोई विषय वासना की आवश्यकता नही होती. इसलिए भी मोर पंख ज्यादा अच्छा माना जाता है।

     *मयूर पिच्छिका के 5 गुण कौन-कौन से है* 

    मोर पंख देखने में तो अत्यंत सुंदर होता ही है, साथ-साथ इसमें निम्नलिखित 5 गुण पाए जाते है 
    1. मृदुता मयूर पंख अत्यंत मृदु होता है किसी कारण से हमारी आंख में कोई छोटा सा तिनका भी चला जाता है तो हमारी आंखों से आंसू आने लगते है परंतु मयूर पंख इतना मृदु होता है कि आंखों में जाने पर भी कोई चुभन नही होती।
    2. सुकुमारता मयूर पंख अत्यंत कोमल होता है। इनकी कोमलता के कारण ही परिमार्जन करते समय जो जीव हमें सूनी आंखो से नहीं दिखाई देते उन जीवों की भी | रक्षा करते हुए अहिंसा महाव्रत का पालन किया जा सकता है। 
    3. रज ग्रहण नही करती दिगम्बर साधु प्रत्येक क्रिया से पूर्व परिमार्जन करते है अर्थात 
    जो भी वस्तु को उठाते रखते है तब पिच्छिका का उपयोग करते हैं, तब पिच्छिका उस धूल को तो हटा देती है परंतु मयूर पंख उस धूल को ग्रहण नही करते।
    4. पसीना ग्रहण नही करती • जब श्रमण, परिमार्जन के दौरान अपने शरीर से पिच्छिका
    का उपयोग करते है तब मयूर पंख पसीने को ग्रहण नहीं करते। 
    5. हल्के - मयूर पंख सुंदर होने के साथ-साथ हल्के भी होते है अर्थात पिच्छिका के रूप में | इनका भार ज्यादा नही होने के कारण ही दिगम्बर साधु इनका उपयोग आसानी से करते है।

     *पिच्छिका परिवर्तन पहले ऐसे होता था* 

    चातुर्मास के बाद दिगंबर जैन पिच्छीधारी साधु पिच्छिका का परिवर्तन करते हैं । यह पिच्छिका मयूर के पंखों एंव बेंत की लकड़ी से डंडी और रस्सी से बनती है। मोर अपने पंख अपने आप छोड़ती है और श्रावक उठा लाते हैं फिर श्रावक पिच्छी बनाकर साधु को देता है और ब्रह्मचर्य व्रत, रात्रि भोजन त्याग, पूजन आदि का नियम लेकर श्रावक-श्राविका आदि देते हैं और पुरानी ले लेते हैं। यह वर्ष में एक बार परिवर्तन होता है। विशेष परिस्थयों में बीच मे भी हो जाता है । यह मृदु होते हैं पंख आँख मे जाने पर भी पीड़ा नहीं होती है। रज को ग्रहण नहीं करते है। सूक्ष्म जीवो को भी कष्ट नहीं होता है। यह साधु का चिन्ह है । (सिम्बाल है) इस पिच्छी के बिना करीब 5-7 हाथ ही चल सकते हैं साधु ज्यादा नहीं। यह सयंम का उपकरण श्रावक पुराना घर मे रखते है जिसे देखकर साधु बनने की प्रेरणा मिलती रहती है ।
    पहले बुंदेलखण्ड में प्रत्येक घर में श्रावक पिच्छी बनाकर रखते थे कोई साधु चातुर्मास के बाद आते थें विहार करते हुये तो चौके में परिवर्तन कर देते थे वर्तमान में आचार्यो, मुनिराजों, पिच्छीधारी साधुओं से निवेदन है की वर्ष में एक बार ही पिच्छी का परिवर्तन करें जिससे पंखों का प्रयोग कम करना पड़े जरूरत पड़े तो पिच्छी 4-6 महीनें में पलट सकतें है जिससे यह परंपरा हमेशा सुरक्षित रहें ।
    *पिच्छिका से परिमार्जन कब किया जाता है*  

     आगमानुसार प्रत्येक आचार्य संघ, मुनिजन, माताजी को आदान निक्षेपण समिति का पालन करते समय कमंडल को उठाते व रखते समय शरीर को उठाते-बिठाते, लिटाते, करवट बदलते समय, धूप से छांव और छांव से धूप मे आते समय शरीर को पिच्छिका से प्रमार्जित करते है साथ ही देवों के समकक्ष गिने/ माने जाने वाले शास्त्रों को उठाते, विराजमान करते समय, शास्त्र को खोलते व बंद करते समय प्रमार्जित करते है। इसके अलावा अन्य दैनिक चर्या को निर्दोष पालन करने में भी पिच्छिका से परिमार्जन किया जाता है।

     *मयूर पिच्छिका के क्या उपयोग हैं* 

    दिगम्बर जैन श्रमण संस्कृति में प्रत्येक आचार्य, साधु, आर्यिका एलक, क्षुल्लक, क्षुल्लिकाजी के लिए संयम उपकरण के रूप में मयूर पिच्छिका अत्यंत आवश्यक व उपयोगी है। दैनिक क्रियाओं में परिमार्जन मंगलाचरण, सामायिक, प्रतिक्रमण, आहार, विहार आदि समस्त क्रियाऐं बिना पिच्छिका के संभव ही नही है। किसी भी परिस्थिति में साधुजन बिना पिच्छिका के एक कदम भी नही चल सकते है और यदि बिना पिच्छिका के 7 कदम तक की दूरी तय कर भी ले तो आगमानुसार इसके लिए उन्हें अपने गुरु से प्रायश्चित भी लेना पड़ता है।

     *पिच्छिका भी आहारचर्या के दौरान अंतराय का कारण हो सकती है* 

    संयम का साधन होने से एवं लोक व्यवहार से पिच्छिका को पवित्र उपकरण माना जाता है। आहारचर्या के समय सामान्यतः भोजन में मनुष्य या अन्य पशुपक्षी के बाल आ जाने के कारण मुनि / आर्यिका के लिए अंतराय का कारण बन जाते है फिर तो मयूर पिच्छिका भी मोर के पंख के द्वारा निर्मित होती है। अतः दिगम्बर श्रमण आहारचर्या में | आसान पर बैठने से पहले परिमार्जन करते है और पिच्छिका को 2-3 हाथ की दूरी पर | कायोत्सर्ग करने के बाद ही आहार ग्रहण करते है। आहर के दौरान भोजन में मयूर पंख के आ जाने पर या हवा करने के निमित्त से यदि पिच्छिका का स्पर्श हो जाए तो साधुजन को अंतराय माना जाता है इसलिए आपने कभी ध्यान दिया हो तो प्रत्येक मुनि आर्यिका आहार के समय अपनी पिच्छिका हमेशा 2-3 हाथ की दूरी पर ही रखते है।

  12. घाटोल 12/10/2023


    *पटाखे चलाने से होती है बीमारियॉ*मुनि श्री


    पटाखो से लाखों करोड़ों रुपयों का नुकसान होता है।

    गरीब लोगों को मिठाई, वस्त्र, औषधि और अन्य वस्तुएं अर्पण करे

    श्री वासुपूज्य दिगंबर जैन मंदिर घाटोल जीला.बाँसवाड़ा राजस्थान मे परम पूज्य सर्वश्रेष्ठ साधक
    आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के 
    शिष्य
    मुनि श्री भाव सागर जी ने कहा कि पटाखों से हमे आर्थिक नुकसान के साथ साथ शारीरिक हानि भी पहुँचती है। बेजुबान पशु पक्षी पीडित भयभीत होते है। प्रतिवर्ष कई अग्निकांड होते हैं। लाखों करोड़ों रुपयों का नुकसान होता है। इसके निर्माण में कई मासूम भोले बच्चे अपनी जीवन लीला समाप्त कर देते हैं और हमारे लिए पटाखे तैयार करते हैं। पटाखों का  त्याग करेंगे तो स्वच्छ सुंदर वातावरण पर्यावरण मिलेगा। हमारी गली,मोहल्ला,नगर,शहर, गांव ,कॉलोनी स्वस्थ बनेगी। रासायनिक जहरीली गैसों व धुंए के प्रदूषण से बचाव होगा।पटाखे खरीदने, बेचने, फोड़ने का त्याग करते हैं तो असंख्यात जीवो की हिंसा के पाप से बच सकते हैं। करोड़ो सूक्ष्म जीवों ने हमारा और आपका क्या बिगाड़ा है। हम पटाखे फोड़ कर उन सूक्ष्म जीवों को क्यों मारे क्यो लाखो भवो के बैर का बंध करे और करोड़ो जीवो को अभयदान दे। हम इसके बिना भी दीपावली मना सकते हैं पटाखों की आवाज इतनी तेज होती है कि  सुनने की क्षमता भी बाधित होती है खासकर बच्चों बुजुर्गों पर इन पटाखों की आवाज का कुछ ज्यादा ही असर पड़ता है ,जिन पटाखों को चलाकर हम इतने सारे जीवो की हिंसा करते है वह धन बचा कर हम गरीब लोगों को मिठाई, वस्त्र, औषधि और अन्य वस्तुएं अर्पण कर सकते हैं। पटाखों का धुआं बादल बनकर हमारे वायुमंडल को नुकसान पहुँचा रहा है। ऐसे कितने घर हैं जहां आर्थिक तंगी के कारण घरो मैं चिराग तक नहीं जल पाते हैं और हम पटाखे चलाते है। दीपावली में हो रही हजारों दुर्घटनाओं का कारण पटाखे है। कितने बच्चे युवा अपंग हो रहे हैं प्रतिवर्ष देश भर में 6000 करोड रुपए से अधिक के पटाखे फोड़े जाते हैं। पटाखों के धुए से वायुमंडल में सल्फर डाइऑक्साइड और कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा कई गुना बढ़ जाती है सभी के स्वास्थ्य के लिए घातक है। बच्चे बुजुर्ग बीमार व्यक्ति इससे ज्यादा प्रभावित होते हैं।

  13. घाटोल 10/10/23

    *सूर्य की किरणें विशेष स्वास्थ्यवर्धक होतीं हैं*
    *डूँगरपुर की समाज ने श्रीफल अर्पण कर के मुनि संघ को आमंत्रण दिया*


    *आचार्य श्री विद्यासागर जी का अवतरण दिवस पूरे विश्व सहित मनाया जाएगा*
    श्री वासुपूज्य दिगंबर जैन मंदिर मे परम पूज्य सर्वश्रेष्ठ साधक
    आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के 
    शिष्य मुनि श्री विमल सागर जी महाराज ससंघ के सानिध्य में सर्वश्रेष्ठ साधक परम पूज्य आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज का अवतरण दिवस पूरे विश्व सहित घाटोल में 28 अक्टूबर 2023 को मनाया जाएगा   इसके अंतर्गत आचार्य श्री की महापूजन,पाद प्रक्षालन,शास्त्रअर्पण, सांस्कृतिक कार्यक्रम,मुनि राजों के प्रवचन के साथ मनाया जाएगा वृक्षारोपण, गरीबों को भोजन,औषधि,वस्त्रदान, मिष्ठान वितरण,भी किया जाएगा डूँगरपुर की समाज ने श्रीफल अर्पण कर के मुनि संघ को आमंत्रण दिया
    इस अवसर पर  मुनि श्री विमल सागर जी महाराज ने कहा कि  प्रभु के सामने बालक बनकर अपनी आलोचना करना 
      मुनि श्री अनंत सागर जी महाराज ने इष्टोंपदेश ग्रंथ की व्याख्या करते हुए अनेक धार्मिक क्रियाओं के बारे में बताया 
    मुनि श्री धर्म सागर जी महाराज ने संस्कारों के बारे में बताया 
     मुनि श्री भाव सागर जी महाराज ने कहा कि सूर्य ताप, प्रकाश एवं ऊर्जा का सबसे बडा प्राकृतिक स्रोत है। हम सूर्य की ऊर्जा का लाभ लेना नहीं जानते । घर एवं व्यवसायिक स्थलों पर दरवाजे बंद कर पर्दे लगाए जाते हैं और बिजली की रोशनी में कार्य करने का प्रचलन बढ़ता जा रहा है। जिसके परिणाम स्वरूप वहाँ रहने एवं कार्य करने वालों की रोग प्रतिरोधक क्षमता  क्षीण होती जा रही है। यदि सौर ऊर्जा का नियमित विधिवत् आवश्यकतानुसार प्रयोग कर मस्तिष्क को सौर ऊर्जा से उत्प्रेरित कर दिया जाये तो मानव जीवन की अधिकांश समस्याओं का समाधान सहज हो सकता है और हमारे जीवन में सकारात्मक सोच, आत्म विश्वास में वृद्धि, तनाव एवं भय से मुक्ति हो जाती है। भूख एवं अन्य कामनाओं पर सरलता से विजय प्राप्त की जा सकती है । सूर्योदय के समय वायुमण्डल में अदृश्य परा बैंगनी किरणों का विशेष प्रभाव होता है, जो विटामिन डी का श्रोत होतीं हैं। ये किरणें रक्त में लाल और श्वेत रक्त कणिकाओं की वृद्धि करती हैं। श्वेत कणिकाएँ बढ़ने से शरीर में रोग प्रतिकारात्मक शक्ति बढने लगती है। सीमित परा बैंगनी किरणें तपेदिक, हिस्टेरिया,  मधुमेह,  सम्बन्धी रोगों में लाभकारी होती हैं। ये शरीर में विकारनाशक शक्ति पैदा करती है। तथा रक्त में कैल्सियम की मात्रा भी बढ़ाती हैं जिससे शरीर में हड्डियाँ मजबूत होती हैं। आंतों में अम्ल, क्षार का संतुलन एवं शरीर में फॉस्फोरस, कैल्सियम का संतुलन बना रहता है। सूर्य किरणें गन्दगी और दुर्गन्धता दूर करतीं हैं, वास्तव में सूर्य के अभाव में स्वस्थ जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। प्रातः कालीन सूर्योदय की किरणें विशेष स्वास्थ्यवर्धक होतीं हैं। जिस घर में उन किरणों का बाहुल्य होता है, वहां संक्रामक रोग होने की संभावना कम हो जाती है। प्रातः कालीन सूर्योदय के सामने चन्द मिनटों तक देखने से नेत्र ज्योति बढ़ती है, परन्तु सूर्योदय के 40-45 मिनिट पश्चात् सूर्य को खुले नेत्रों से देखना हानिप्रद हो सकता है। उदित होते हुए सूर्य को देखने से शरीर के सभी आवश्यक तत्त्वों का पोषण होता है। हृदय रोग, मस्तिष्क विकार, आँखों का विकार, आदि अन्य व्याधियाँ दूर होती हैं। प्रातः कालीन हल्की धूप में सूर्य की तरफ मुख कर तथा आँखें बंद कर शरीर को दाएँ-बाएँ, आगे-पीछे, धीरे-धीरे चारों तरफ घुमाने से गर्दन के रोग दूर होते हैं। मस्तिष्क में रक्त का संचार सुव्यवस्थित होता है तथा तनाव दूर होता है। सूर्य किरणें जीवनी शक्ति बढ़ाती है, स्नायु दुर्बलता कम करती हैं। पाचन  की क्रियाओं को बल देती हैं, पेट की जठराग्नि प्रदीप्त करतीं है। रक्त परिसंचरण संतुलित रखतीं है, अन्त:स्रावी ग्रन्थियों का स्राव बनाने में सहयोग करती है। इससे प्राणवायु की मात्रा बढ़ जाती है। जो कार्य क्षमता बढ़ाने में सहायक होती है। इससे पाचन शक्ति सुधरती है। सूर्य की रोशनी में अनेक सूक्ष्म जीवों की उत्पत्ति नहीं हो सकती जो स्वास्थ्य के लिये हानिकारक होते हैं।  सात रंगों से बनी सूर्य की किरणें मानव के लिये आरोग्यप्रद होती है। तथा रंग चिकित्सा के सिद्धान्तानुसार सूर्य की किरणों से बहुत से असाध्य रोग पूर्णतया ठीक हो सकते हैं। सौर ऊर्जा ही एक ऐसा माध्यम है। जिसकी किरणों के विधिवत् नियमित सेवन से मस्तिष्क रूपी सुपर कम्प्यूटर को अधिक व्यवस्थित ढंग से संचालित किया जा सकता है।
     गुनगुनी धूप जब आपकी त्वचा पर पड़ती है तो इससे सूजन, हाई ब्लड प्रेशर में कमी आती है और दिल के दौरे तथा स्टोक का खतरा भी नहीं रहता, कोलेस्टॉल भी कम होता है। सूर्य हमेशा हमें जीवनदायिनी ऊर्जा देता आया है। अगर आप नियमित रूप से धूप स्नान करते हैं तो इससे न केवल दांत मजबूत रहेंगे बल्कि बालों की ग्रोथ भी बरकरार रहेगी, तनाव भी नहीं रहेगा।

  14. घाटोल 09/10/23
    *ताली बजाने से होते है रोग ठीक*


    *आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज से महामहोत्सव के लिए आशीर्वाद लेने प्रमुख लोग पहुँचे*

    *आचार्य श्री विद्यासागर जी का अवतरण दिवस पूरे विश्व सहित मनाया जाएगा*
    श्री वासुपूज्य दिगंबर जैन मंदिर मे परम पूज्य सर्वश्रेष्ठ साधक
    आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के 
    शिष्य मुनि श्री विमल सागर जी महाराज,मुनि श्री अनन्तसागर जी महाराज, मुनि श्री धर्मसागर जी महाराज,मुनि श्री भावसागर जी महाराज के सानिध्य में सर्वश्रेष्ठ साधक परम पूज्य आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज का अवतरण दिवस पूरे विश्व सहित घाटोल में 28 अक्टूबर 2023 को मनाया जाएगा   इसके अंतर्गत आचार्य श्री की महापूजन,पाद प्रक्षालन,शास्त्रअर्पण, सांस्कृतिक कार्यक्रम,मुनि राजों के प्रवचन के साथ मनाया जाएगा वृक्षारोपण, गरीबों को भोजन,औषधि,वस्त्रदान, मिष्ठान वितरण,भी किया जाएगा 8 अक्टूबर को डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में ,आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज से महामहोत्सव के लिए आशीर्वाद लेने प्रमुख लोग पहुँचे
    इस अवसर पर  मुनि श्री विमल सागर जी महाराज ने कहा कि भगवान की भक्ति करने से सभी परेशानियाँ दूर हो जाती है 
      मुनि श्री अनंत सागर जी महाराज ने कहा कि अध्यात्म का सहारा लेने से वैराग्य मज़बूत होता है 
    मुनि श्री धर्म सागर जी महाराज ने जीवन में कैसे धार्मिक क्रियाएँ की जाये यह बताया 
     मुनि श्री भाव सागर जी महाराज ने कहा कि ताली बजाने से लाभ हैं धार्मिक क्रियाओं में फ़ायदा तो होता ही है अच्छे कार्य की अनुमोदना होती है माहोल भी अच्छा बनता है और कई रोगों में फ़ायदा होता है । आपको लगता है कि “ताली” बस "एक सरल प्रहार है, परन्तु इसके अनगिनत लाभ हैं। आम तौर पर लोग दूसरों के अच्छे काम करने पर या उनकी उपलब्धियों के लिए, उनको सराहने के लिए ताली बजाते हैं। यह वैज्ञानिक रूप से साबित हो गया है कि ताली बजाना कई मानव रोगों के इलाज के लिए बहुत प्रभावी व्यायाम है। ताली बजाना हथेलियों के आरोह को सक्रिय करता है, जिससे मस्तिष्क के बड़े क्षेत्र की सक्रियता के कारण स्वास्थ्य में सुधार होता है हमारी हथेली में लगभग सभी अंगों के 36 भिन्न-भिन्न एक्युप्रेशर बिंदु होते हैं, जो ताली बजाने से सक्रिय हो जाते हैं। वह इस कार्रवाई से धीरे-धीरे, परन्तु प्रभावी ढंग से, आपके स्वास्थ्य को बेहतर बनाते हैं सुबह के समय प्रतिदिन 10-20 मिनट ताली बजाने से आप स्वस्थ और सक्रिय रहते हैं ।
    जो व्यक्ति पाचन विकार से ग्रस्त है, उसके लिए ताली बजाना एक प्रभावी दवा है।
    पीठ दर्द, और जोड़ों के दर्द के लिए सबसे अच्छा इलाज है। गठिया  पुरानी उम्र के लोगों के साथ एक आम समस्या है और इसे ताली बजाने से आसानी से ठीक किया जा सकता है
    निम्न रक्तचाप के रोगी के लिए उपयोगी है। किसी को किसी भी हृदय और फेफड़ों से संबंधित बीमारी है, तो ताली इन रोगों का इलाज करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है ताली बजाना मुख्य और साथ  से बाधाओं को दूर करता है और आप फ़िट और स्वस्थ रहते हैं।
    जो बच्चे दैनिक ताली बजाने का व्यायाम रूपी अभ्यास करते वह बहुत कम लेखन के कार्यों में ग़लती करते हैं और दूसरों की तुलना में कर्मठ कार्यकर्ता होते हैं। यह उनकी लिखावट में भी सुधार लाती है ऊपर दिए अंक के पूरे सार, बच्चों के मस्तिष्क में पैनापन लाने वाली ताली है।
    ताली रोगों के ख़िलाफ़ लड़ने के लिए मानव शरीर को शक्ति प्रदान करती है, जो व्यक्ति की प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि लाती है इस प्रकार से ताली बजाना फ़ायदे का कार्य है इससे एक साथ कई फ़ायदे है

  15. 🎊 *रजत संयोग वर्षायोग दिनचर्या 2023*🎊
    *आशीर्वाद* :- सर्वश्रेष्ठ साधक परम् पूज्य आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज
     
    🔅 *ऊर्जामयी सानिध्य* 🔅
     पपू मुनि श्री 108 विमल सागर जी महाराज ससंघ 
      पपू मुनि श्री 108 अनंतसागर जी महाराज   
    पपू मुनि श्री 108 धर्म सागर जी महाराज 
    पपू मुनि श्री 108 भावसागर जी महाराज 

    ☀️ *मुनि संघ की दिनचर्या* ☀️
    प्रातः 06:15 बजे आचार्य भक्ति
    प्रातः 06:30 बजे वन विहार
    प्रातः 07:00 बजे देव वंदना
    प्रातः 7: 30 बजे से 8:15 बजे : स्वाध्याय मुनि संघ व्यतिगत 
    प्रातः 8:30 बजे से आचार्य श्री की पूजन
    8:40 से 9:40 बजे तक एकीभाव स्रोत  स्वाध्याय कक्षा मुनि श्री विमल सागर जी द्वारा
    प्रातः 09:45 मुनि संघ की आहारचर्या
    दोपहर 11:30 मुनिसंघ की ईर्यापथ भक्ति
    दोपहर 12:00 -1:45 बजे तक सामायिक
    दोपहर 2:00 – 3:00 बजे मुनिसंघ का व्यक्तिगत स्वाध्याय
    दोपहर 3:00– 3:45 बजे तक इष्टोपदेश 
    स्वाध्याय कक्षा मुनि श्री अनंत सागर जी द्वारा
    दोपहर 03:45 से– 4:15 बजे तक  स्वाध्याय मुनि श्री भावसागर जी महाराज के द्वारा 
    शाम 5:45 बजे प्रतिक्रमण/देववन्दना
    शाम 6:15 आचार्यभक्ति
    शाम 6:30 बजे कक्षा मुनि श्री धर्म सागर जी द्वारा
    शाम : 6:45 बजे वैयावृत्ति
    रात्रि 7:30 बजे सामायिक
     
    नोट:-
    (1) इस कार्यक्रम में मौसम के अनुसार स्थिति, परिस्थिति, अनुसार परिवर्तन हो सकता है।
    (2) शाम को आचार्य भक्ति के बाद संत निवास में महिलाओं का प्रवेश निषेध है।
     
    *चातुर्मास स्थल* :
    श्री 1008 वासुपूज्य दिगम्बर जैन मंदिर ,घाटोल, जिला .बांसवाडा (राजस्थान) 
     
      आयोजक
    राजमल सेठ (नगर सेठ) सकल दिगंबर जैन समाज 9950424291
    अजित कुमार लालावत (अध्यक्ष मुनि त्यागी सेवा कमेटी ) 9928180361
    वैभव घाटलिया (अध्यक्ष जैन युवा संगठन )
    9983383474

  16. घाटोल 03-10-2023

    *ध्यान से मस्तिष्क के संवेदनशील विभागों में परिकंपनों का परिमार्जन होता है*

    *ध्यान वह चाबी है जिससे अंतःकरण का ताला खुलता है*

    श्री वासूपूज्य दिगंबर जैन मंदिर में आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के शिष्य  
    मुनि श्री भाव सागर जी महाराज ने प्रातः काल की बेला में पर्वत पर जहां मोर की। ध्वनि गुंजित होती है वहाँ लोगो को ध्यान की प्रक्रिया बतायी और कहा कि ध्यान अपने को खो देने की प्रक्रिया है ,अपने को मिटा देने का नाम है ,सब चीज़ों से निर्विचार होने का नाम है, आत्मा को परमात्मा बनाने का नाम है, अपने आप में डूबने का नाम है ,मन से अलग हो जाने का नाम है ,आत्मा से साक्षात्कार करने का नाम है, स्वयं अपने आप को देखने का नाम है, सुख शांति का अमोघ उपाय है, मन को  स्थिर करने की तकनीक है ,ज्ञान की उपयोगी क्रिया है ,जब ध्यान के फूल खिल जाते है तब आनंद की सुगंध फैल जाती है और जीवन का बगीचा महक उठता है ,आत्म मंदिर में ध्यान का दीपक जलता है ,योग से अयोग  होना ही ध्यान का लक्ष्य है ,ध्यान के द्वारा आत्मा में छिपी परमात्मा की आभा मुखरित होती है ,ध्यान वह चाबी है जिससे अंतःकरण का ताला खुलता है ,ध्यान का कार्यशेत्र है मन को शांत रखना है, ध्यान सत्य का अंतरदर्शन है ,ध्यान जीवन की समग्रता में प्रवेश है, ध्यान से मस्तिष्क के संवेदनशील विभागों में परिकंपनों का परिमार्जन होता है और हमारी प्रज्ञा प्रतिभा प्रखर हो उठती है ध्यान आत्मस्थ होने का मार्ग है।
    मुनि श्री विमल सागर जी महाराज ने एकी भाव स्त्रोत की व्याख्या करते हुए कहा कि भक्ति के माध्यम से रोग दूर हो जाते है

  17. घाटोल 02-10-2023

    *(विश्व अहिंसा दिवस 2 अक्टूबर पर आयोजित हुई सभा में दिया गया उद्बोधन)*

    *राष्ट्र अरबों लोगो की जिंदगी का नाम है*

    *रोको इस नुकसान को वीरो बहादुरों से भर दो हिंदुस्तान को*

    *देश के शहीद बड़े महान है क्योंकि वह देश की शान है*

    *राष्ट्र की मंगल कामना के बिना हमारी हर पूजा प्रार्थना अधूरी है*

    *वे सब अमर सेनानी है जिनकी देश के लिए जवानी है*

    *देश एक मंदिर है हम उसके पुजारी है*


    श्री वासूपूज्य दिगंबर जैन मंदिर में आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के शिष्य  
    मुनि श्री भाव सागर जी महाराज ने विश्व अहिंसा दिवस पर आयोजित सभा में कहा कि ट्रेनों में मांसाहारी और शाकाहारी भोजन एक साथ बनता है, इसी प्रकार से स्कूल,कॉलेज,ऑफिस में भी बनता है, अलग व्यवस्था होना चाहिए, वस्त्रों में मटनटेलो नाम का अशुद्ध पदार्थ डलता है,हथकरघा के वस्त्र शुद्ध होते है,आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के आशीर्वाद से भारत में 200 गौशालाए चल रही है,राष्ट्र की रक्षा व्यक्ति,परिवार,धर्म और संस्कृति की सुरक्षा है, राष्ट्र हमारा घर,परिवार,समाज है, राष्ट्र की रक्षा ही नागरिकों का धर्म है, आप राष्ट्र के पहरेदार बने, राष्ट्र अहिंसा का,शांति का दूत है,हमारी संस्कृति महान है हमारी सभ्यता दुनिया से निराली है,देश एक मंदिर है हम उसके पुजारी है अहिंसा का पालन कमजोर लोग नही कर सकते राष्ट्र अरबों लोगो की जिंदगी का नाम है अहिंसा की उपासना करने वाला देश है *वह सभी लोग सेनानी है देश के लिए जिनकी जवानी है* रोको इस नुकसान को वीरो बहादुरों से भर दो हिंदुस्तान को घर की खुशी आपके देश को खुशहाली पर डिपेंड है *देश के शहीद बड़े महान है क्योंकि वह देश को शान है* अपने देश को अपना घर मानिए,सेवा ईश्वर तक पहुंचने की पगडंडी है वह प्लानिंग प्रार्थना है जिसमे विश्व की शुभ भावना है राष्ट्र की मंगल कामना के बिना हमारी हर पूजा प्रार्थना अधूरी है देश की उन्नति में हर दम प्रयास रत रहो वे सब अमर सेनानी है जिनकी देश के लिए जवानी है युवाओं को नशे से बचाए संस्कारो के कोई इंजेक्शन नही होते है देश की गरीबी और भुखमरी पर कोई ध्यान नहीं है आतंकवाद मिटाना ही धर्म है।
    आतंकवाद को मिटाने में मीडिया भी महान कार्य कर  सकता है। देश के सभी अखबारों में हर दिन एक पन्ना, राष्ट्रीय विचारधारा, शहीदों की गाथाओं, बलिदानियों की कहानियों से भरा होना चाहिए। राष्ट्रीय लोकसेवा, सामाजिक लोकसेवा, परोपकार, बलिदान, देशप्रेम, वफादारी को पैदा करने वाली लेख माला हर अखबारों में प्रतिदिन आना चाहिए इससे भी लोगों के मन में राष्ट्र प्रेम जागेगा और लोग राष्ट्र की रक्षा के प्रति सजग होंगे । उनमें देश के प्रति सम्मान का भाव पैदा होगा।
    मुनि श्री विमल सागर जी महाराज ने कहा कि रोटी कपड़ा और मकान की शुद्धि आवश्यक है, जन्म से सभी जीव शाकाहारी होते है, शाकाहार का प्रचार प्रसार होना चाहिए, गौ पालन करो यह शास्त्रों में आया है, बेल्ट,पर्स आदि चमड़े की वस्तुएं इस्तेमाल नही करना चाहिए, आप लोगो को अहिंसा धर्म की रक्षा के लिए योजनाएं बनाना चाहिए, आगे और स्थिति और खराब होने वाली है, अहिंसक वीर होते है, ऐसे वीर होना चाहिए जो परिवार, देश और समाज की रक्षा कर सके ।

  18. घाटोल 01-10-2023
     *तीन संतान होना चाहिए एक देश के लिए, एक समाज के लिए, एक अपने लिए।* 

     *जिसके हृदय में प्रभु विराजमान रहते हैं डर समाप्त हो जाता है* 

     *देश का सबसे मूल्यवान खजाना होते हैं युवा* 

     *देश में नेतृत्व हमेशा लगभग 1% लोग करते हैं

    श्री वासूपूज्य दिगंबर जैन मंदिर में आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के शिष्य  
    मुनि श्री विमल सागर जी महाराज
    मुनि श्री अनंत सागर जी महाराज
    मुनि श्री धर्म सागर जी महाराज
    मुनि श्री भाव सागर जी महाराज के सानिध्य में मांगलिक क्रियाएं संपन्न हुई, 
    कमेटी ने जानकारी दी कि 1  अक्टूबर को 16 उपवास करने वालो का पारणा महोत्सव सम्पन्न हुआ जिसमे कई स्थानों से लोग शामिल हुए   थे  , दोपहर में श्री आदिनाथ मंदिर से  श्री वासुपूज्य मंदिर वापस आई इस अवसर पर धर्म सभा को संबोधित करते हुए मुनि श्री विमल सागर जी महाराज ने कहा कि पूजन से अष्टम वसुधा प्राप्त होती है, ऐसे लोग हैं जिन्होंने अपने जीवन में प्रथम बार 16 उपवास किए हैं, अच्छी क्रियाओं का लोप नहीं होना चाहिए, धूप चढ़ाने से पुण्य की वृद्धि होती है, दीपक से प्रकाश फैल जाता है, एक व्यापारी ने केसर की गाड़ी मंदिर की नींव में डलवा दी थी,यह कहलाती है भक्ति,   जिसके हृदय में प्रभु विराजमान रहते हैं डर समाप्त हो जाता है, पूजन के बिना भोजन नहीं करना चाहिए, एक दिन की पूजा का फल इतना मिलता है कि अन्य कार्य से बराबरी नहीं कर सकते है, पूजन नहीं कर पाते हैं तो दूसरे दिन डबल द्रव्य से पूजन करना चाहिए, सूतक में पूजन नहीं हो पाती है इसलिए बाद में विधान करते हैं।
    मुनि श्री भावसागरजी महाराज ने कहा कि आपने अपने संस्कार बदल दिए हैं,  पहले सिर की चोटी-छोडी फिर पगड़ी, चंदन तिलक, कुर्ता पजामा, धोती कुर्ता सब छोड़ दिया है, पैसे कमाने के चक्कर में बच्चों को आया पालती है,चोटी से बुद्धि बढ़ती है, देश का सबसे मूल्यवान खजाना होते हैं युवा, युवा अवस्था जीवन का सबसे बेहतर समय है, युवा शक्ति है जो  अमूल्य निधि है जो असंभव को संभव करने की अपार क्षमता, सामर्थ्य  रखते है, अपनी शक्ति साहस व शौर्य से नया इतिहास लिखें, मैं अकेला क्या कर सकता हूं इसके बजाय हमेशा यह सोचे कि मैं क्या नहीं कर सकता हूं, दुनिया में कुछ भी असंभव नहीं है सब कुछ संभव है, यह जीवन धर्म की सेवा एवं भक्ति के लिए मिला है, क्षमा देने और मांगने से हृदय निर्मल होता है, मन का एक एक कोना साफ कर लो किसी से कुछ अनवन है तो आपस में मिटा ले, क्षमायाचना करके हृदय साफ कर लो और मन की किताब साफ करलो नहीं तो भूल चुभेगी शूल की तरह, देश में नेतृत्व हमेशा लगभग 1% लोग करते हैं, 90% लोग उन 1% लोगों की मुख्य शक्ति होते हैं, तथा 80% लोग इन  10% लोगों का अनुशरण  करते हैं, तीन संतान होना चाहिए एक देश के लिए, एक समाज के लिए, एक अपने लिए। मुनि श्री अन्नतसागर जी महाराज ने अनेक जीवन उपयोगी बात बताई ।

  19. घाटोल 30-09-2023

    *प्रभु की रथ यात्रा निकाली गई*

    *ये दुनिया का सब से बड़ा आश्चर्य हैं जो सोलह दिन बिना भोजन के रहे*

    *अंत में समाचार एक बार फिर आते है ऐसे ही क्षमा आती है*

    *करदो सबको माफ़ और दिल को साफ़ करलो सबके दिल में अपना घर कर लो*

    *16 उपवास 284 घंटे बिना भोजन के करने वाले 6 लोगो का उपवास का पारणा महोत्सव सम्पन्न होगा*

    श्री वासूपूज्य दिगंबर जैन मंदिर में आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के शिष्य  
    मुनि श्री विमल सागर जी महाराज
    मुनि श्री अनंत सागर जी महाराज
    मुनि श्री धर्म सागर जी महाराज
    मुनि श्री भाव सागर जी महाराज के सानिध्य में मांगलिक क्रियाएं संपन्न हुई, 
    कमेटी ने जानकारी दी कि 1  अक्टूबर को 16 उपवास करने वाले 6 लोगो का उपवास का पारणा महोत्सव सम्पन्न होगा जिसमे कई स्थानों से लोग शामिल होंगे कुछ लोगो का 30 सितंबर को 16वां उपवास था यानि 360 घंटे तक बिना भोजन के रह कर तप साधना कर रहे है,30 सितंबर को दोपहर में प्रभु की विशाल रथयात्रा श्री वासुपूज्य मंदिर से प्रारंभ हुई सदर बाजार से बस स्टैंड होकर श्री आदिनाथ मंदिर पहुंची इसमें मुनि संघ और 250 वर्ष प्राचीन रथ,तीन पालकी, धर्मचक्र , भजन मंडली चल रही थी जैन युवा संगठन के सदस्य, जयोदय महिला मंडल, चंदनबाला बालिका मंडल की सदस्या चल रही थी , जगह जगह प्रभु को श्रीफल अर्पण किए गए ,मुनि संघ का पाद प्रक्षालन किया गया ,आरती उतारी गई ,लोग केसरिया,पीले,सफेद वस्त्रों में नजर आ रहे थे, लोग भक्ति नृत्य करते हुए चल रहे थे ,इसमें सरपंच प्रियंका डाबी ने मुनि संघ को श्रीफल अर्पण किया ,1 अक्टूबर को दोपहर 1 बजे  श्री आदिनाथ मंदिर से  श्री वासुपूज्य मंदिर वापस आएगी इस अवसर पर धर्म सभा को संबोधित करते हुए मुनि श्री विमल सागर जी महाराज ने कहा कि अंत में समाचार एक बार फिर आते है ऐसे ही क्षमा आती है ,पर्युषण के बाद क्षमावाणी के रूप में ,धर्म प्रभावना के लिए रथोत्सव किया जाता है ,क्षमा वीरो का भूषण है ,सट्टा से जीवन में बट्टा लगता है ,करदो सबको माफ़ और दिल को साफ़ करलो सबके दिल में अपना घर कर लो ,गाय के दूध से सौ वर्ष की बूढ़ी माँ भी चलने लगती है ,बच्चो को दान के संस्कार ज़रूर दे ,चतुर्थ काल के एक हज़ार वर्ष के अनुसार सोलह हज़ार वर्ष के उपवास हो गए है ,
    मुनि श्री भावसागरजी महाराज ने कहा कि रथ यात्रा धर्म तीर्थ के नायक प्रभु की धर्म देशना का प्रतीक है ,इससे असंख्य जीवों को आत्मबोध की प्राप्ति होती है ,वासुपूज्य भगवान का मंदिर 725 वर्ष पुराना है ,रथ 250 वर्ष प्राचीन है ,चक्रवर्ती की दिग्विजय यात्रा के समय सैकडो रथों में प्रतिमा रख कर छह खंडों की परिक्रमा करने का कथन ग्रंथों में मिलता है ,लोगो को नशे से दूर रहना चाहिए ,इससे शरीर का नाश होता है ,अपने जीवन में शाकाहार अपनाना चाहिए ,लोगो ने सोलह उपवास किए है ग्रीष्म जैसी तपन में ये दुनिया का सब से बड़ा आश्चर्य हैं जो सोलह दिन बिना भोजन के रहे।

  20. घाटोल 29-09-2023

    *10 उपवास करने वाले 75 लोगो का उपवास का पारणा महोत्सव सम्पन्न हुआ*

    *360 घंटे तक बिना भोजन के 15 वे उपवास की  साधना चल रही है*

    *रथ आकर्षण का केंद्र रहता है*

    *पौराणिक शिल्पकारों की अनूठी कृतियों से पाषाण से निर्मित इस मंदिर को  देखते ही यह श्रद्धालुओं को भाव विभोर कर देता है।*


    श्री वासूपूज्य दिगंबर जैन मंदिर में आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के शिष्य  
    मुनि श्री विमल सागर जी महाराज
    मुनि श्री अनंत सागर जी महाराज
    मुनि श्री धर्म सागर जी महाराज
    मुनि श्री भाव सागर जी महाराज के सानिध्य में एवं ब्रह्मचारी रजनीश भैया के निर्देशन मे मांगलिक क्रियाएं संपन्न हुई, 
    कमेटी ने जानकारी दी कि 28  सितंबर को 10 उपवास करने वाले 75 लोगो का उपवास का पारणा महोत्सव सम्पन्न हुआ जिसमे बागीदौरा,अरथूना,कलिंजरा , डडुका, परतापुर स्थानों से लोग शामिल हुए कुछ लोगो का 15वां उपवास था यानि 360 घंटे तक बिना भोजन के रह कर तप साधना कर रहे है,  30 सितंबर को दोपहर 1 बजे प्रभु की विशाल रथयात्रा श्री वासुपूज्य मंदिर से श्री आदिनाथ मंदिर पहुंचेगी ,1 अक्टूबर को दोपहर 1 बजे  श्री आदिनाथ मंदिर से  श्री वासुपूज्य मंदिर वापस आएगी, 

    *श्री वासुपूज्य दिगंबर जैन मंदिर का इतिहास*
    725 वर्ष प्राचीन मूलनायक श्री वासुपूज्य भगवान की प्रतिमा से सुशोभित रजत वेदी गर्भ गृह से सहित मानस्थंभ ,चौबीसी आदि 200 प्रतिमाओं से सुशोभित इसके अलावा श्री आदिनाथ दिगंबर जैन मंदिर एवं अहिंसा मंदिर दर्शनीय है ,यहां पर परम पूज्य आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के शिष्य मुनि श्री विमल सागर जी महाराज मुनि श्री अनंत सागर जी महाराज मुनि श्री धर्म सागर जी महाराज मुनि श्री भाव सागर जी महाराज का चातुर्मास चल रहा है, यहां 500 घर की जैन समाज है ,
    *श्री वासुपूज्य दिगम्बर  बावनडेरी जिनालय  का इतिहास*
    अहिंसावादी, धार्मिक भावनाओं से ओतप्रोत इस मंदिर की   पूरे क्षेत्र में अपनी  अलग ही पहचान है, पौराणिक शिल्पकारों की अनूठी कृतियों से पाषाण से निर्मित इस मंदिर को  देखते यह श्रद्धालुओं को भाव विभोर कर देता है। भाव विभोर हो श्रद्धालु स्वतः प्रभु   के चरणों में दर्शन हेतु नतमस्तक हो जाते हैं। मन्दिर के अग्र भाग में अंकित शिलालेख जो कि प्राकृत भाषा में अंकित हैं विद्वानों द्वारा उसके आधार पर बताया गया है कि 
    700 वर्ष पूर्व बड़े-बड़े पाषाणों से निर्मित मन्दिर के स्तम्भ के अग्र भाग में छतरियाँ और उस पर उभारी गई नक्काशी वर्तमान में आधुनिक युग के कारीगरों को भी पछाड़ देती है। मूलनायक वासुपूज्य भगवान के अग्र भाग एवं पृष्ठ भाग में चौबीसी का निर्माण हुआ जो खिले हुये कमल की भाँति सुशोभित होता है ,यह बावनडेरी जिनालय राजस्थान में आध्यात्मिक धरोहर का प्रतिरूप है।

    जिनालय के प्रत्येक गर्भ में स्थापित पाषाण प्रतिमाएँ अतिशय युक्त होने से आध्यात्मिक भावना जाग्रत कर मोक्षमार्ग की प्रेरणा देती है 

    *रथ का इतिहास*
     जैन धर्म में  दशलक्षण महापर्व प्रमुख हैं। इनके समापन पर  प्रभु की प्रतिमा को गन्धकुटी रथ में विराजमान कर नगर भ्रमण कर गाँव के बस स्टैण्ड पर "बड़ के

    वृक्ष" तले भगवान की भक्ति एवं साधुओ के सान्निध्य में प्रवचन लाभ आदि की परम्परा रही है। यहाँ पूजन एवं साधु-सन्तों द्वारा प्रवचनों के माध्यम से एकत्रित अपार जनसमूह को अहिंसा ,शाकाहार ,नशे से दूर रहने गौपालन का संदेश देकर धर्म की प्रभावना की जाती है। आज से करीब 250 वर्ष पूर्व मंदिर में काष्ठ (लकड़ी) का रथ बनाया गया था यह। जिसमें अतिप्राचीन नक्काशी, बारीक कारीगरी, मानव, हाथी, घोड़े, मेहराब, झरोखे आदि उकेरे गये हैं। जिसको देखकर हर कोई मंत्रमुग्ध हो जाता है। पूर्व के शुरुआती वर्षों में इसे कन्धों पर उठाने की परम्परा रही होगी। काष्ठ का रथ भारी होने से समाज जनों ने इसमें बैलगाड़ी के चार पहिये लगवाये ।  । विशाल काष्ठ रथ के ऊपर गुम्बज, चारों कोनों पर छत्र, बीच में गुम्बज पर बड़ा छत्र तथा ऊपर नर्तकी स्थापित की गई
    जो रथयात्रा के समय नृत्य करती है। रथ तीन मंजिला बना हुआ है यह समाज की  अमूल्य धरोहर है

  21. घाटोल 27-09-2023


    *312 घण्टे बिना भोजन के 13 उपवास करने वालो का सम्मान किया जाएगा ।*

    *प्रभु के वैभव को जो राजाओं से भी ज्यादा जो बढ़ाता है उसको वैसा ही फल मिलता है*

    *इंसान कहता है धन मेरा है लेकिन धन तो कभी नही कहता है कि में तुम्हारा हुँ*

    *मुनि श्री*

    (नौवां दिन दश लक्षण महापर्व उत्तम आकिंचन्य धर्म)  श्री वासुपूज्य दिगंबर जैन मंदिर घाटोल जिला बांसवाड़ा राजस्थान मे
    आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के 
    शिष्य मुनि श्री विमल सागर जी महाराज,मुनि श्री अनन्तसागर जी महाराज, मुनि श्री धर्मसागर जी महाराज,मुनि श्री भावसागर जी महाराज के सानिध्य में एवं ब्रह्मचारी रजनीश भैया जी रहली के निर्देशन में दशलक्षण महापर्व उत्तम आकिंचन्य धर्म के अंतर्गत  मांगलिक क्रियाएं संपन्न हुई प्रश्नोत्तर रत्नमालिका की परीक्षा का परिणाम घोषित किया गया, अनंत चतुर्दशी गुरुवार को प्रातः 6 बजे मूलनायक श्री वासुपूज्य भगवान के मोक्षकल्याणक पर 1008 कलशों से महामस्तकाभिषेक एवं विश्व का प्रथम निर्वाण लाडू अर्पण किया जाएगा ,16 ,10 उपवास करने वालो का सम्मान किया जाएगा ।
    इस अवसर पर धर्मसभा को संबोधित करते हुए मुनि श्री विमल सागर जी महाराज ने कहा कि तू तीन लोक का नाथ बन सकता है यदि इस धर्म को अंगीकार कर ले तो, दान में धन लग जाता है तो भला हो जाता है ,प्रभु के वैभव को जो राजाओं से भी ज्यादा जो बढ़ाता है उसको वैसा ही फल मिलता है, स्वर्ण ,रजत आदि के पात्र से अभिषेक ,शांतिधारा ,पूजन करना चाहिए स्टील के पात्रो से नही,सोने की सामग्री से पूजन करू यह भावना प्रतिदिन भाना चाहिए, जैसी भावना आराध्य के प्रति करोगे वैसा ही फल मिलेगा,अनंत चतुर्दशी के दिन ऐसा दृश्य दिखेगा जो कभी किसी ने देखा नही होगा।
      मुनि श्री भावसागर जी महाराज ने कहा कि जहां कुछ भी नहीं है वहां आकिंचन्य धर्म है ,शरीर आदि पर पदार्थों को अपना नहीं मानना, मेरा कुछ भी नहीं है, ज्ञान की शक्ति और वैराग्य का बल दोनों एक ही साथ मोक्ष की सिद्धि करते हैं, परिग्रह के त्यागी जीव लोक में दुर्लभ है, दान रहित जिस व्यक्ति का धन आता है उस व्यक्ति का धन जंगल के फूलों की भांति निरर्थक है, दान से हीन बहुत धन व्यर्थ है,इंसान कहता है ये जमीन मेरी है ,संपत्ति मेरी है ,धन मेरा है,लेकिन पैसा तो कभी नही कहता है कि में तुम्हारा हुँ, कितनो ने उसका आदर किया तिजोरी में संभाल कर रखा फिर भी वह नही कहता है कि में तुम्हारा हूँ। लेकिन  मनुष्य कहता है पैसा मेरा है और में इसका मालिक हुँ जोड़ने वाला नही खाली करने वाला सौभाग्यशाली होता है, अग्नि परीक्षा के बाद बने घी से आरती बनती है।

  22. घाटोल 26-09-2023

    *आपके दान की चर्चा पूरे विश्व में हो।*

    *अनीति पूर्वक आया धन 11वें वर्ष में नष्ट हो जाता है।*

    *गौशाला के लिए दान देने वाले का अकाल मरण नही होता है*

    *गरीबो को दान दो और कीर्ति कमाओ ।*


    *मुनि श्री*

    (आठवां दिन दश लक्षण महापर्व उत्तम त्याग धर्म)  श्री वासुपूज्य दिगंबर जैन मंदिर घाटोल जिला बांसवाड़ा राजस्थान मे
    आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के 
    शिष्य मुनि श्री विमल सागर जी महाराज ससंघ के सानिध्य में एवं ब्रह्मचारी रजनीश भैया जी रहली के निर्देशन में दशलक्षण महापर्व उत्तम त्याग धर्म के अंतर्गत मांगलिक क्रियाएं संपन्न हुई ।
    मूल उपनयन संस्कार के ड्रा का परिणाम घोषित हुआ दीपक मुंगानिया की ओर से पुरूस्कार प्रदान किये गए।मुनि श्री धर्म सागरजी का दूसरा उपवास था।
    इस अवसर पर धर्मसभा को संबोधित करते हुए मुनि श्री विमल सागर जी महाराज ने कहा कि तप तो कर रहे है पर दान नही कर रहे है तो यह ठीक नही है ,जो दान प्रिय वचनों के साथ दिया जाता है वज महत्वपूर्ण होता है, अवसर पर दिया गया दान अमूल्य हो जाता है , 700 वर्ष बाद सौभाग्य जागा है तब आपने रजत वेदी और गर्भगृह बनाया है, करोड़ो में एक होता है दानी , दान देने से अनंत गुना फल मिलता है , आपके दान की चर्चा पूरे विश्व में हो।मुनि श्री अनंत सागरजी महाराज ने सामायिक पाठ की व्याख्या की।
      मुनि श्री भाव सागर जी महाराज ने कहा कि त्याग धर्म है दान पुण्य है , त्याग से ही इस जगत में यश का लाभ होता है , त्याग का मतलब दान होता है , दान अंश का होता है त्याग सर्वस्व का होता है , हमारे देश में त्यागी की पूजा होती है और दानी की प्रशंसा होती है, जो धन सम्पन्नता के साथ उदारता अपनाता है दुनिया उसे हृदय में विराजती है, तुम्हारे द्वारा जोड़े गए धन से समाज का कल्याण हो, धर्म की प्रभावना हो ,संस्कृति की रक्षा हो, मानवता की सेवा हो, त्याग ही जीवन मे सम्मान करता है, जीव को ऊपर उठाता है ,शांति का सोपान है ,मुक्ति का मार्ग है, जीवन का सौंदर्य है, दान जीवन को संवारता है , त्याग बुराइयों का होता है, दान अच्छी चीजों का, गरीबो को दान दो और कीर्ति कमाओ ,अनीति पूर्वक आया धन 11वें वर्ष में नष्ट हो जाता है ,चोरी का धन तीन पीढ़ी से ज्यादा नही रहता है ,गौशाला के लिए दान देने वाले का अकाल मरण नही होता है|

  23. घाटोल 24-09-2023

    *240 घंटे तक बिना भोजन और जल के कर रहे है उपवास*

    *725 वर्ष के इतिहास में प्रथम बार 1008 विशेष कलशों से होगा अभिषेक एवं दुनिया का प्रथम विशेष निर्वाण लाडू अर्पण किया जाएगा।*

    *संकल्प से बंधने पर बड़े बड़े कार्य सिद्ध हो जाते है*


    *जिन्होंने उपवास किए है हिम्मत का कार्य किया है*

    *


    *मुनि श्री*

    छटवां दिन दश लक्षण महापर्व उत्तम संयम धर्म श्री वासुपूज्य दिगंबर जैन मंदिर घाटोल जिला बांसवाड़ा राजस्थान मे
    आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के 
    शिष्य मुनि श्री विमल सागर जी महाराज ससंघ के सानिध्य में एवं ब्रह्मचारी रजनीश भैया जी रहली के निर्देशन में दशलक्षण महापर्व उत्तम संयम धर्म के अंतर्गत 24 सितंबर को प्रातः काल प्रतिदिन प्रभात फेरी निकाली जा रही है जिसमे बच्चो को पुरस्कार दिए जा रहे है फिर मांगलिक क्रियाएं संपन्न हो रही है संगीत की स्वर लहरियों से राजेश शाह भजनों की प्रस्तुति दे रहे है इसके पश्चात लोगो  ने शास्त्र दान का सौभाग्य प्राप्त किया दोपहर में मुनि श्री अनंत सागर जी महाराज के द्वारा सामयिक पाठ की कक्षा का लाभ मिल रहा है, इसके बाद तत्वार्थ सूत्र का वाचन चल रहा है और मुनि श्री विमल सागर जी महाराज के द्वारा तत्वार्थ सूत्र ग्रंथ की व्याख्या चल रही है , शाम को मुनि श्री भाव सागरजी महाराज के  द्वारा ध्यान एवं प्रातः काल की बेला में मुनि श्री विमल सागरजी द्वारा ध्यान करवाया जा रहा है,रात्रि में प्रतिदिन ब्रह्मचारी भैया जी के प्रवचन  और सांस्कृतिक कार्यक्रम,प्रतियोगिता चल रही है,
    725 वर्ष के इतिहास में प्रथम बार विशेष कलशों से मूलनायक श्री वासुपूज्य भगवान के मोक्षकल्याणक महोत्सव  28 सितंबर को महामस्तकाभिषेक होगा एवं दुनिया का पहला विशेष निर्वाण लाडू अर्पण किया जाएगा 
    इन लोगो ने आज नौवाँ उपवास किया यानि लगभग 240 घंटे तक बिना भोजन और जल के कर रहे है उपवास  लगभग 100 लोगों ने लागातार पांच से अधिक उपवास किये है।
    इस अवसर पर धर्मसभा को संबोधित करते हुए मुनि श्री विमल सागर जी महाराज ने कहा कि यह पर्व कर्म काटने के लिए आए है दस दिन में तो कुछ संयम का पालन करके लोग भक्ति,जाप,पूजा,उपवास कर लेते है लेकिन संयम की बात आती है तो पीछे रह जाते है संयम ही तीन लोक का नाथ बनाता है आदमी को जिन्होंने उपवास किए है हिम्मत का कार्य किया है 355 दिन असंयम में निकलता है व्यक्ति मूलनायक श्री वासुपूज्य भगवान का 1008 कलशो से महामस्तका अभिषेक होना चाहिए मोक्ष कल्याणक भगवान का ऐसा मनाना चाहिए की अलग ही आनंद आए आपकी दरिद्रता दूर हो अभिषेक करने से, अपने जीवन में शराब आदि नशे का सेवन नहीं करे, फास्ट फूड में मांस डला रहता है सुअर की चर्बी डलती है इनका त्याग करे, संकल्प से बंधने पर बड़े बड़े कार्य सिद्ध हो जाते है,
    मुनि श्री अनंत सागर जी महाराज ने कहा कि इंद्रिय और मन पर लगाम लगाना संयम है, मन और इन्द्रियों के गुलाम है आप, संसारी प्राणी दिन रात खोटे कार्य में लगा है,आज संयम का दिन है, पल पल प्रसन्न रहे की हमने संयम धारण किया है, गाड़ी एक बार खरीदते है पेट्रोल प्रतिदिन डलवाना पड़ता है, आप अपने जीवन को असंयम से संयम की ओर मोड़ ले, आत्मा की सुरक्षा के लिए कभी कवच लगाया है क्या 
    मुनि श्री भाव सागर जी महाराज ने कहा कि जिनके पावो में चलने की तमन्ना नृत्य कर रही है जिन्हे कही पहुंचने की जिद है वे फिर थके हारे बैठे रह कर समय को सरकने नही देते वे रास्ता खोजते है राह ढूंढते है

  24. घाटोल 23-09-2023

    *216 घंटे तक बिना भोजन और जल के कर रहे है उपवास*

    *725 वर्ष के इतिहास में प्रथम बार विशेष कलशों से होगा अभिषेक एवं दुनिया का प्रथम विशेष निर्वाण लाडू अर्पण किया जाएगा।*

    *भक्ति के प्रभाव से स्वर्णमयी काया हो गई थी मुनिराज की*


    *व्यापार में नियम बना लो इतने प्रतिशत मुनाफा लेंगे*

    *कई लोगो को कमाई से भी ज्यादा टेंशन रहती है*

    *मुनि श्री*

    पांचवा दिन दश लक्षण महापर्व उत्तम सत्य धर्म)  श्री वासुपूज्य दिगंबर जैन मंदिर घाटोल जिला बांसवाड़ा राजस्थान मे
    आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के 
    शिष्य मुनि श्री विमल सागर जी महाराज,मुनि श्री अनन्तसागर जी महाराज, मुनि श्री धर्मसागर जी महाराज,मुनि श्री भावसागर जी महाराज के सानिध्य में एवं ब्रह्मचारी रजनीश भैया जी रहली के निर्देशन में दशलक्षण महापर्व के अंतर्गत 23 सितंबर को प्रातः काल मांगलिक क्रियाएं संपन्न हुई इसके पश्चात लोगो  ने शास्त्र दान का सौभाग्य प्राप्त किया दोपहर में मुनि श्री अनंत सागर जी महाराज के द्वारा सामयिक पाठ की कक्षा का लाभ मिल रहा है, इसके बाद तत्वार्थ सूत्र का वाचन चल रहा है और मुनि श्री विमल सागर जी महाराज के द्वारा तत्वार्थ सूत्र ग्रंथ की व्याख्या चल रही है , शाम को मुनि श्री भाव सागरजी महाराज के  द्वारा ध्यान एवं प्रातः काल की बेला में मुनि श्री विमल सागरजी द्वारा ध्यान करवाया जा रहा है,रात्रि में प्रतिदिन ब्रह्मचारी भैया जी के प्रवचन  और सांस्कृतिक कार्यक्रम,प्रतियोगिता चल रही है,
    725 वर्ष के इतिहास में प्रथम बार विशेष कलशों से मूलनायक श्री वासुपूज्य भगवान के मोक्षकल्याणक महोत्सव  28 सितंबर को महामस्तकाभिषेक होगा एवं दुनिया का पहला विशेष निर्वाण लाडू अर्पण किया जाएगा 
    इन लोगो ने आज नौवाँ उपवास किया यानि लगभग 216 घंटे तक बिना भोजन और जल के कर रहे है उपवास जिसमे 
    अजित लालावत,राजेंद्र पारसोलिया,बदामीलाल धिरावत,श्रीमती निकिता पारसोलिया, श्रीमती प्रभादेवी पंचोरी,श्रीमती विनोद देवी लालावत एवं अनूप जोदावत का आठवां उपवास था और भी लगभग 70 लोगों ने लागातार पांच उपवास किये है।
    इस अवसर पर धर्मसभा को संबोधित करते हुए मुनि श्री विमल सागर जी महाराज ने कहा कि जिन वचनों से कल्याण होता है वह सत्य है,  हे प्रभु आप ध्यान रूपी द्वार के द्वारा प्रकट हो रहे है तो इससे क्या नही हो सकता है, भक्ति के प्रभाव से स्वर्णमयी काया हो गई थी मुनिराज की,संसार में जितनी वनस्पतियां होती है सबमें औषधीय गुण होते है, यदि सत्य भी है लेकिन लोक के विरुद्ध है तो नही बोलना चाहिए, यह वचन दुर्लभता से मिले है, व्यापार में नियम बना लो इतने प्रतिशत मुनाफा लेंगे, घर में धन की कमी नही आती है  ईमानदारी से, सत्य के लिए शपथ की जरूरत नहीं होती है 
    मुनि श्री अनंत सागर जी महाराज ने कहा कि यदि तुम सत्य का सहारा लेना चाह रहे हो तो थड़ी लगाम लगाओ, भय के कारण भी सत्य का सहारा लेते है लोग, कई लोगो को कमाई से भी ज्यादा टेंशन रहती है,असत्यवादी का यश नष्ट हो जाता है।

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