सुन्दर तियोगिता ! समयाभाव के कारण हम पूर्णता तक न पहुँच सके । आपके गुरुजी चेतन सत्ता को गढ़ने में अनथक लगे हैं ,शिष्यों में भी वही प्रतिबिम्बित होता है । हम श्रावक तो सोने -चाँदी के कलशाभिषेक में ही अपने आप को धन्य मानते हैं , माटी के कलश स्थापना पर क्या विचार है ।'चेतन को वेतन ' देने के स्थान पर कलश सुरक्षा में ही जिन प्रतिमाजी को ही अत्यन्त भारी सुरक्षा में अनेक कपाटों में बन्द करते जाते हैं । हमारा ध्यान तो स्व - कल्याण की अपेक्षा सुरक्षा व्यवस्था में ही आश्रय पा जाता है ,क्या करें हम श्रावक कि अनमोल रत्न गढ़ने वालों की बातें उन्हीं की अपेक्षा से समझकर अपने जीवन में उतारें ,न कि राग - द्वेष को सर्वोपरि रखें ।