क्या समर्पण मैं करुँ,
शब्द भी तेरे दिए,
ऐसा कुछ ना मेरे पास,
जो सूरज को हम दे सके,
असमां से चाँद भी मैं,
दूँ सजा इस वसुंधरा पे,
तो भी तेरे सम्मुख गुरुवर,
चाँद भी फीका लगे,
कोहनूर के हीरे को मैं,
क्या अर्पण कर सकता हूँ,
जिसने देह मे प्राण दिए,
क्या उसे मैं दे सकता हूँ,
जीवन समर्पित गुरु तुझे,
अर्पण मेरे हर एक बोल,
हर पल गुरु ही स्वास मेरी,
अंतिम पल भी गुरु के बोल।