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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

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  1. कलयुग खुद मे इतराता, विद्या गुरु के आने से, चाँद खुद ही शर्माता, गुरु कि झलक पाने से, सूरज खुद ही झुक जाता, गुरुवर के दिख जाने से, ह्दय खुद ही खिल जाता, गुरुवर के मुस्काने से।
  2. मौसम बदले सादिया बदले, या बदले खुद ही हर काया, पर गुरु समर्पित मन ना बदले, जिसपर गुरु को बिठलाया, सूरज बदले चंदा बदले, या बदले खुद ही हर तारा, पर गुरु का सर से हाथ ना बदले, जिसपर जीवन चल पाया।
  3. मन मे एक दीप जलाये, बस गुरु को पूजा है, जो जग मे सर्व श्रेष्ट, उन सा ना दूजा है, जो काले आकाश मे, चाँद से चमकते है, जो घने अंधकार मे, जुगनू से दमकते है, जो तीर्थंकर सा तेज लिए, विश्व को महकाते है, ऐसे गुरु विद्या सागर, गुरु तीर्थ कहलाते है,
  4. गुण गान करुँ क्या गुरु का, कुछ शब्द समझ ना आऐ, जो भावों से कहना चाहा, वो शब्दों से ना कह पाये, जिनकी रचना हो स्वयं श्रेष्ठ, जो खुद व खुद मे सर्वश्रेष्ठ, मुख से निकला हर शब्द मन्त्र, प्रवचन उनके खुद स्वयं ग्रन्थ। पंचम युग के महा ऋषि को, मैं अपने ह्दय विराजती हूँ, उनके इस कोमल चरणों को, मैं नित्य नित्य शीश झुकाती हूँ।
  5. तेरे सिवा कौन है मेरा, किसी कहुँ अपना पराया, गुरु आपके भरोसे पर, जी रहा हूँ जीवन सारा।
  6. तुमने कितनों का उद्धार किया, कितनों को भव से पार किया, खोली तुमने है प्रतिभा स्थलीय, किया गौ सेवा को सर्वोपरि, पूरी मैत्री है एक वरदान, पूर्णायु है गौरव सम्मान, संस्कृति का हुआ पुनर्जन्म, हथकरघा उसमें सर्वप्रथम, भारत को भारत कहो सदा, स्वदेशी अपनाओ कहा, मन्दिरो का किया जिणोद्धार, कई मंदिरो का भी किया निर्माण।
  7. पूरन हुआ है सपना आज, गुरु दरबार मे आने से, अब जग मे कुछ रहा नहीं, गुरुवर के मिल जाने से।
  8. हर एक स्वांस मे मेरे गुरु, हर एक बात मे मेरे गुरु, यदि मैं अमावास्या का अंधकार, तो पूनम का चाँद है मेरे गुरु।
  9. कितना अच्छा लगता मुझको, पंचम युग मे गुरु को पाना, मानो सूखी पड़ी भूमि पर, जल का आके प्यास बुझाना, मेरी फसी हुई थी नईया, बीच भवर मे भव - भव से, मानो उसको भव पार कराने, गुरुवर का मुझको मिल जाना।
  10. माना शिष्य मे प्रभु बनने की, होती है क्षमता विशेष, पर जीवन मे गुरु ना हो तो, वो ना जा सकता आत्म प्रदेश, माना मोक्ष का द्वार है, हर जीवो के लिए खुला, पर गुरु रूपी सीढ़ी बिना, ना जा सकता कोई वहाँ।
  11. आपने जो दिया है मुझको, लफ्ज मे ना हो वया, आपकी करुणा से मुझको, मिला है जीवन नया।
  12. मेरे गुरु की महिमा का क्या बखान करुँ, उनके सामने तो मेरे शब्द भी छोटे है, जिन्हें रोक ना पाई कभी सर्द तफन, देखो कैसे पंचम युग मे चतुर्थ युग से खड़े है।
  13. तोड़ दिए है सारे बंधन, नाता जग से तोड़ लिया, रत्नत्राय धार लिया गुरु ने, नाता प्रभु सँग जोड़ लिया, बढा दिया है कदम अपने, मोक्ष पथ की राहों मे, लिए ज्ञान का ज्ञान साथ, संयम पथ की राहों मे।
  14. एक संत ही मन को भाता, प्रभु संग है उसका नाता, प्रभु सिद्ध शिला मे विराजे, वो पावन धरा मे राजे, मुझे गंगा जल से पावन, उनके चरणों का रज कण, मुझे अमृत से भी प्यारी, उनके मुख की है वाणी।
  15. चाँद सी शीतलता है, तो रवि सा तेज भी, मुख मे कोमलता है, तो अमृत सा ज्ञान भी, चरणों मे चरणामृत है, तो मधुवन सा तीर्थ भी, हाथो मे पिछिका है, तो प्रभु सा आशीर्वाद भी।
  16. तोड़ दिए है सारे बंधन, नाता जग से तोड़ लिया, रत्नत्राय धार लिया गुरु ने, नाता प्रभु सँग जोड़ लिया, बढा दिया है कदम अपने, मोक्ष पथ की राहों मे, लिए ज्ञान का ज्ञान साथ, संयम पथ की राहों मे।
  17. जिनके मुख से मुकमाटी सा, आध्यात्म रस है बहता, जिनको सुनकर श्रोता जन को, निज दर्शन है होता, ऐसे साधक गुरु विद्यासागर की, साधना हर पल झलकती, समता क्षमता तप संयम की, बगिया गुरुवर मे महकती।
  18. विद्या सा दूजा ढूँढू कहा, उनसा ना दूजा जग मे दिखा, वो ऐसे हीरे मोती है, जिसे ज्ञान ने जोहरी सम परखा, ऐसे साधक कि साधना भी देखो, तप की अग्नि मे तपती है, रख कदम मोक्ष की राहों मे, समता क्षमता सी निखरती है।
  19. गुरुवर तेरे चरणों मे मैं, दिन रात निकलूंगा, तेरे सम्मुख बैठे तेरी, छवि निहारुगा, देख ह्दय से तुझको भगवन, जन्म सुधारुगा, भावों कि शुभ थाल सजाकर, पूजा रचाउगा, ह्दय वेदी मे तुझको लाकर, तुझे विराजुगा, मन मंदिर मे आकर भगवन, करना मुझको निहाल, नैनो से फिर दिखते रहना, सुनना भक्त पुकार।🙏🏻🙏🏻
  20. गुरु वो जिनके लिऐ, कितना भी लिखो कम है, जितना कहो कम है, जितना सुनो कम है, गुरु एक कुम्भकर की भांति है, जो कड़ी मेहनत से माटी मे जान आ देता है, गुरु वो वृक्ष है, जो तेज धूप मे भी शीतल छाया देता है, गुरु वो दीपक है, जो खुद जल कर सबको प्रकाश देता है, कुछ भी लिखूँ गुरु के लिए, पर मेरे शब्द गुरु महिमा को कभी छू नहीं पाएंगे, गुरु गुण को कभी गा नहीं पाएंगे, क्योकि गुरु तो वो मार्ग है जिस पर चल कर, एक शिष्य मोक्ष महल भी पा लेता है, गुरु उस वक्त कि तरह है, जो बोलता तो कुछ नहीं पर सिखा सब देता है, गुरु तो मेरे गुरुवर विद्यासागर जैसे होते है, जो कहते नहीं कर के दिखाते है।
  21. मन मे एक दीप जलाये, बस गुरु को पूजा है, जो जग मे सर्व श्रेष्ट, उन सा ना दूजा है, जो काले आकाश मे, चाँद से चमकते है, जो घने अंधकार मे, जुगनू से दमकते है, जो तीर्थंकर सा तेज लिए, विश्व को महकाते है, ऐसे गुरु विद्या सागर, गुरु तीर्थ कहलाते है।
  22. गुरू जी, आपके दर्शन को तरसती है आँखे तरसते तरसते जब बरसती हैं आँखें बरसते बरसते जब थमती है आँखें फिर से आपके दर्शन को तरसती है आँखें।
  23. तोड़ा जग से नाता तुम्हें अपना माना है॥ तुम्हीं तो हितेशि हो दिल से पहचाना है ॥ हम दास है चरणो के पहचान अमर कर दो॥ गुरुवर हम आए है, हमें अपनी शरण ले लो ॥
  24. गुरु अथाह गुरु उत्कृष्ठ हम निरा निकृष्ठ गुरु सिंधु है हम एक बिंदु भी नही जतन यही कि उन महा सिंधु की बिंदु का भी साथ मिले अपना कर लूँ उद्धार इस अधम का हो जाये बेड़ा पार।
  25. गुरु का आशीर्वाद ही, मेरी सबसे बड़ी धरोहर है, ना चाहत रत्न आभूषण कि, मुझे चाहत रत्नाकर कि है, वो सूरज की पहली किरण, वो चांदनी सी मुस्कान है, और दाता मे सबसे बड़े, वो ऋषि राज महान है।
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