जानिए आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के त्याग के बारे में
वास्तव में इस पंचम काल में चरित्र चक्रवर्ती आचार्य श्री शांति सागर जी के बाद पूर्णतया आगम अनुरूप चर्या देखना है तो वो है आचार्य श्री विद्या सागर जी महाराज उनके त्याग तपस्या चर्या इस प्रकार है -
आजीवन चीनी का त्याग |
आजीवन नमक का त्याग |
आजीवन चटाई का त्याग |
आजीवन हरी का त्याग |
आजीवन दही का त्याग |
सूखे मेवा (dry fruits) का त्याग |
आजीवन तेल का त्याग |
सभी प्रकार के भौतिक साधनो का त्याग |
थूकने का त्याग |
एक करवट में शयन |
पूरे भारत में सबसे ज्यादा दीक्षा देने वाले |
पूरे भारत में एक मात्र ऐसा संघ जो बाल ब्रह्मचारी है |
पुरे भारत में एक ऐसे आचार्य जिनका लगभग पूरा परिवार ही संयम के साथ मोक्षमार्ग पर चल रहा है |
शहर से दूर खुले मैदानों में नदी के किनारो पर या पहाड़ो पर अपनी साधना करना |
अनियत विहारी यानि बिना बताये विहार करना |
प्रचार प्रसार से दूर- मुनि दीक्षाएं, पीछी परिवर्तन इसका उदाहरण |
आचार्य देशभूषण जी महराज जब ब्रह्मचारी व्रत के लिए स्वीकृति नहीं मिली तो गुरुवर ने व्रत के लिए 3 दिवस निर्जला उपवास किआ और स्वीकृति लेकर माने |
ब्रह्मचारी अवस्था में भी परिवार जनो से चर्चा करके अपने गुरु से स्वीकृति लेते थे और परिजनों को पहले अपने गुरु के पास स्वीकृति लेने भेजते थे |
आचार्य भगवंत सम दूसरा कोई संत नज़र नहीं आता जो न केवल मानव समाज के उत्थान के लिए इतने दूर की सोचते है वरन मूक प्राणियों के लिए भी उनके करुण ह्रदय में उतना ही स्थान है |
शरीर का तेज ऐसा जिसके आगे सूरज का तेज भी फिका और कान्ति में चाँद भी फीका है |
ऐसे हम सबके भगवन चलते फिरते साक्षात् तीर्थंकर सम संत I