गुरु की डॉट ही शिष्य के लिए शिक्षा का घर है। अर्थात् गुरु की डाँट से शिक्षा/विद्या जल्दी प्राप्त हो जाती है। आचार्य श्री ज्ञानसागरजी महाराज कहा करते थे कि अज्ञानियों से वर्षों प्रशंसा मिलने की अपेक्षा, ज्ञानी के द्वारा डाँट मिलना भी श्रेष्ठ है। क्योंकि ज्ञानी की डाँट के द्वारा दिशाबोध प्राप्त हो जाता है और यही डाँट व्यक्ति की दशा परिवर्तन करा देती है एवं दुर्दशा होने से बचा लेती है। वे कहा करते थे कि शिष्य का कर्तव्य है कि गुरु की आज्ञा को बिना कान फड़फड़ाये स्वीकार कर लेना चाहिए अर्थात् गुरु आज्ञा को निर्विकल्प शिरोधार्य कर लेना चाहिए। इससे गुरु के प्रति उसका विनय एवं समर्पण प्रकट होता है।
ज्ञानार्णव वाचना, ०६.१०.१९९६, अतिशय क्षेत्र महुवाजी, चातुर्मास
एवं द्रव्य संग्रह वाचना के समय, १७.०७.१९९५, कुण्डलपुर