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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • अध्याय 1 : सूत्र 6

       (3 reviews)

    Vidyasagar.Guru

    अब तत्त्वों को जानने का उपाय बतलाते हैं-

    प्रमाणनयैरधिगमः॥६॥

     

     

     

    अर्थ - प्रमाण और नयों के द्वारा जीवादिक पदार्थों का ज्ञान होता है। सम्पूर्ण वस्तु को जानने वाले ज्ञान को प्रमाण कहते हैं। और वस्तु के एकदेश को जानने वाले ज्ञान को नय कहते हैं।

     

    English - Knowledge (of the seven categories) is attained by means of pramana and naya.

     

    विशेषार्थ - प्रमाण के दो प्रकार हैं - स्वार्थ और परार्थ। जिसके द्वारा ज्ञाता स्वयं ही जानता है। उसे स्वार्थ प्रमाण कहते हैं। इसी से स्वार्थ प्रमाण ज्ञानरूप ही होता है; क्योंकि ज्ञान के द्वारा ज्ञाता स्वयं ही जान सकता है। दूसरों को नहीं बतला सकता। और जिसके द्वारा दूसरों को ज्ञान कराया जाता है, उसे परार्थ प्रमाण कहते हैं। इसी से परार्थ प्रमाण वचनरूप होता है; क्योंकि ज्ञान के द्वारा ज्ञाता स्वयं जानकर वचन के द्वारा दूसरों को ज्ञान कराता है।

     

    आगे ज्ञान के पाँच भेद बतलाये हैं - मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मन:पर्ययज्ञान और केवलज्ञान। इनमें से श्रुतज्ञान के सिवा शेष चार ज्ञान तो स्वार्थ प्रमाण ही हैं, क्योंकि वे मात्र ज्ञानरूप ही हैं, परन्तु श्रुतज्ञान ज्ञानरूप भी है और वचनरूप भी है, अतः श्रुतज्ञान स्वार्थ भी है और परार्थ भी है। ज्ञानरूप श्रुतज्ञान स्वार्थ प्रमाण है, और वचनरूप श्रुतज्ञान परार्थ प्रमाण है। जैसे तत्त्वार्थसूत्र के ज्ञाता को तत्त्वार्थसूत्र में वर्णित विषयों का जो ज्ञान है, वह ज्ञानात्मक श्रुत होने से स्वार्थ प्रमाण है। और जब वह ज्ञाता अपने वचनों के द्वारा दूसरों को उन विषयों का ज्ञान कराता है, वह वचनात्मक श्रुतज्ञान परार्थ प्रमाण है। इस श्रुतज्ञान के ही भेद नय हैं।


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    Mukta Jain

       2 of 2 members found this review helpful 2 / 2 members

    मैं कब से सोच रही थी कि तत्त्वार्थसूत्र जी की वाचना इस प्रतियोगिता के माध्यम से चालु हो इसलिए आपको बहुत बहुत साधुवाद

    आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के चरणों में कोटि-कोटि नमन

    जय जिनेन्द्र

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    Uma Jain

       1 of 1 member found this review helpful 1 / 1 member

    तत्वार्थसूत्र का प्रारंभ सभी स्वाध्याय प्रेमियों के लिये बहुत ही लाभदायक सिद्ध होगा। गुरुदेव के चरणों में कोटि कोटि नमन.

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    Rakesh  jain

      

    घर बैठे ही स्वाध्याय कर ज्ञान अर्जित करने के लिए बहुत अच्छा प्रयास है बहुत-बहुत साधुवाद

     

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    Uma Jain

      

    तत्वार्थसूत्र का प्रारंभ सभी स्वाध्याय प्रेमियों के लिये बहुत ही लाभदायक सिद्ध होगा। गुरुदेव के चरणों में कोटि कोटि नमन.

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