Ajit K. Jain 2 Posted August 4, 2018 Report Share किये गये कर्म का फल एक ही बार भोगने में आता है। Link to comment Share on other sites More sharing options...
Mrs Amita jain 2 Posted August 4, 2018 Report Share कर्म निर्जरा का फल भोगना। एक बार कर्म का फल एक ही बार भोग सकते है।व्यक्ति यह सोचता है कि वह Link to comment Share on other sites More sharing options...
Mrs Amita jain 2 Posted August 4, 2018 (edited) Report Share आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज की जय शीर्षक :कर्म निर्जरा का फल भोगना । व्यक्ति यह सोचता है कि वह एक बार कर्म करे और उसका फल उसे जीवन भर मिलता रहे । परंतु जिस प्रकआर चाय पत्ती एक बार प्रयोग के बाद किसी काम की नही रह जाती उसी प्रकार एक बार कर्म का फल भी एक बार ही भोग सकते है बार बार नही भोग सकते है।सदैव अच्छे कर्म करते रहे तो उसका फल भी मिलता रहेगा। जय जिनेन्द्र Edited August 4, 2018 by Mrs Amita jain Link to comment Share on other sites More sharing options...
Nirmala sanghi 3 Posted August 4, 2018 Report Share जय जिनेंद्र गुरुसंत शिरोमणि श्री विद्यासागर जी महाराज का आज का 3 अगस्त का प्रवचन बड़ा मार्मिक है वह कहते हैं कि मोक्ष मार्ग संबंधी मान्यताओं में हमको अनुभव से काम लेना चाहिए जैसे कि चाय पत्ती से बार-बार स्वादिष्ट चाय नहीं बना सकते। और उस में दूध डालने से ही चाय का असली स्वाद आता है। इसी प्रकार हमको शुभ कर्म करते हुए अनुभव में अपनी मान्यता को बढ़ावा देना चाहिए। दर्शन और ज्ञान के द्वारा हम अपने अनुभव को प्रगाढ़ कर सकते हैं। अनुभव के अभाव में हमारी मान्यता गलत रहती है। निर्मला सांघी जयपुर Link to comment Share on other sites More sharing options...
Abhishek Sanghi 0 Posted August 5, 2018 Report Share 3 अगस्त 2018 आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज के चरणो में नमोस्तु नमोस्तु नमोस्तु भगवन आचार्य श्री के प्रवचन का शीर्षक आओ सुधारें अपनी मान्यता गुरुदेव कहते हैं कि हमें अपनी मान्यता को अनुभव लाना चाहिए ।कोई हमें कुछ भी कहता रहे उससे कुछ फर्क नहीं पड़ता जब तक हमारी मान्यता अनुभव सिद्ध होगी हम उस बात को स्वीकार करने लग जाएंगे । आज हमारे बच्चों को जो हम पढ़ाई पढ़ा रहे हैं विज्ञान के आधार पर उससे मोक्ष मार्ग संबंधी थोड़ा सा भी लाभ हमको नहीं होता मान्यता तो मानने सेे होती चलता है ।चाय काली होती है उनको उबलते पानी में डाल देते हैं । दूध डालकर वह लाल हो जाते हैं बालक समझदार है पर मझधार में तो मोक्षमार्ग में हमें अपने अनुभव लेना प्रारंभ करना होगा हमारे कर्म सिद्धांत ऐसा है Ki गर्म चाय की पत्ती की भांति एक बार उदय उन्होंने तो दोबारा नहीं कर्म नहीं आएगा सत्ता में जब तक है तब तक जब तक कर्म युद्ध में आता है करमो उदय फिर से नूतन् कर्मों का बंधन हम अपने राग-द्वेष से कर लेते हैं एक बार करो मैं उदय में आ गया तो वह चाय के पत्ते की भांति फैक्ट्रियों के हो गया पर हम उसको फेंक नहीं पाते गांट लगाकर बांधे रखते हैं ऐसी हमारी म मान्यता हो गई है हमें अपने बच्चों को विश्वास दिलाना है कि अपनी मान्यता को बंद करें आत्मा देखने वाली है ही नहीं इसको विश्वास केइसको विश्वास के रूप में हम देख सकते हैं जय जिनेंद्र नदी कभी नौटकी नहीं फिर तू क्यों लौटता जय जिनेंद्र Link to comment Share on other sites More sharing options...
Mukesh Sanghi 0 Posted August 5, 2018 Report Share जय जिनेंद्र 3 अगस्त 2018 प्रातः स्मरणीय संत शिरोमणि आचार्य गुरुवर विद्यासागर जी महाराज के प्रवचन अपनी मान्यताको सुधारो आज हमारे बच्चे को धार्मिक शिक्षा कष्टप्रद मालूम होती है यह हमारी मान्यता है और मान्यताओं तो माननी से ही होती है । चायकी पत्ती को जैसे हम बोलते हुए पानी में डाल देते हैं तो वह काली हो जाती है फिर जब उसमें दूधडालते हैं तब लाल हो जाती हैं । यहहमारी मानयता है ऐसे ही हमें अपनाना होगा आत्मा दिखने वाला है ही नहीं विश्वास के रूप में हम अपनी आत्मा को देख सकते हैं। हमें विश्वास करना होगा हमें मान्यता मान्य नहीं होगी कि हमारा आत्मा देखने जानने वाला है वह अनुभव का विषय है जैसे हम चाय की पत्ती को दुबारा उब्लेंगे इसके स्वाद में अंतर आ जाता है ऐसे ही अनुभव 1 मिनट में होता है और अनुभव के अभाव में हम जिंदगी भर कुछ भी समझे तो समझ में नहीं आ सकता इसीलिए मोक्ष मार्ग हमको अनुभव में लेना प्रारंभ करना होगा कर्म तो चाय के पत्ते की भांति है एक बार अनुभव कर लिया तो हमको कुछ और काली भी मान लेते हैं अब हमारे समझदार बच्चों को मजधार में जो फसे हुए हैं उन्हें अनुभव से यही सिखाना होगा। Link to comment Share on other sites More sharing options...
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