बहती हवा द्वारा सत्ता का रहस्य, शिल्पी निद्रा में लीन-स्वप्न में कुम्भ की याचना, यातना और शीतल जल की माँग । जागने पर स्पप्निल दशा को याद कर शिल्पी की हँसी, अवा के निकट पहुँचने पर कोई आवाज नहीं स्वप्न अक्षरशः असत्य निकला। अवा की छाती पर से रेतिल राख अलग कर कुम्भ को देखा भविष्य भले ही पावन हो, पर पावन का अतीत, इतिहास अपावन ही। अवा से बाहर आया कुम्भ, कुम्भ के मुख पर तैरती प्रसन्नता, भीतरी संवेदन, धरती की गोद से छाती पर कुम्भ और कुम्भ के मन में अतिथि संविभाग के शुभ भावों की उमड़न ।
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