माँ पृथ्वी की प्रतिष्ठा के विषय में सोचता हुआ शिल्पी डूबता है प्रभु की उपासना में, अर्थ नहीं परमार्थ की चाह । गुलाब पौध की स्मृति प्रभु से प्रार्थना, संकट का अन्त हो । काँटे का रोष-संकट पर, फूल द्वारा मित्र पवन को याद करना। पवन का आना, गुलाब द्वारा मित्र का सम्मान। पवन ने पूछा याद करने का कारण, सहयोग की भावना। फूल की भिन्न-भिन्न भाव भंगिमा देख प्रासंगिक कार्य करने हेतु पवन की कटिबद्धता, नभमण्डल में पहुँच बादलों के प्रति सरोष कथन, साथ ही जोरदार ठोकर लगाना, बादलों-ओलों का सागर में जा गिरना। निरभ्र नील आकाश का दर्शन।
शिल्पी की उदासीनता दूर कर उसे बाहर लाने का प्रयास, स्वस्थ्य दशा की ओर लौटता कुम्भकार। अपक्व कुम्भ की परिपक्व आस्था की बात, शिल्पी ने कहा-आग की नदी को भी पार करना है अभी, तो कुम्भ जवाब देता है-आग-अनल में अन्तर नहीं साधक की दृष्टि में।