कुम्भकार का प्रवास पर जाना, तन-मन का नियन्त्रण, सागर को प्राप्त हुआ माटी के उपहास और कुम्भ को नष्ट करने का स्वर्णावसर। तीन बदलियों को भेजना उनके बाहरी-भीतरी रूप-स्वरूप का कथन।प्रभाकर की प्रभा प्रभावित होते देख, प्रभाकर का सरोष प्रवचन, स्त्री समाज की संस्कृति, स्त्रियों के अन्य नाम-भीरु, नारी, महिला, अबला, कुमारी, स्त्री, सुता, दुहिता इत्यादि की नवीन सार्थक व्याख्या। मातृत्व की उपयोगिता, अन्त में अंगना शब्द की बात- मैं मात्र अंग ना हूँ किन्तु भार रहित आभा का आभार मानो। प्रवचन सुन बदली तीनों बदलियाँ सो प्रभाकर से क्षमायाचना। पाप को पुण्य में बदलने कुम्भकार के प्रांगण में मेघ-मुक्ता की वर्षा कर वापस लौटना।