इधर धरती की ख्याति बढ़ रही है तो दूसरी ओर चन्द्रमा की चाँदनी केमन में ईर्ष्या भी बढ़ती जा रही है। धरती के प्रति अनादर, तिरस्कार का भाव बढ़ा,और धरती को अपमानित कर दोषी सिद्ध करने हेतु चन्द्रमा के निर्देशन में जलतत्त्व तेजी से शतरंज की चाल चलने लगा अर्थात् कूटनीति के साथ जब- कभी थोड़ी- सी वर्षा करके, धरती की अखण्डता को नष्ट करने हेतु, जमीन पर दल-दल पैदा करने लगा। क्योंकि -
"दल-बहुलता शान्ति की हननी है ना!
जितने विचार, उतने प्रचार
उतनी चाल-ढाल
हाला घुली जल-ता
क्लान्ति की जननी है ना!" ( पृ. 197)
यह निश्चित है धरा पर जितने दल (समूह, पार्टियाँ) बनते जाएंगे, शान्ति उतनी ही दूर होती जाएगी। जितने दल उतने अलग-अलग विचार उठेंगे, वैसा ही उनका प्रचार-प्रसार होगा। फिर उतने ही प्रकार का व्यवहार, आचरण होता जाएगा। फलस्वरूप स्वार्थ के विष से घुली अज्ञानता दुख को ही जन्म देगी।
इस संसार में थोड़ी सी स्वार्थसिद्धि के लिए, क्षणिक ख्याति, पूजा की चाह के कारण सब कुछ घट सकता है तभी तो चन्द्रमा के द्वारा भी अकाल में ही अतिवृष्टि का समर्थन हो रहा है। परमार्थ (वास्तविक सुख, मोक्ष) का विकास हो, ऐसी भावना को मन में धारण किए प्रभु की अर्चना, प्रभु से प्रार्थना सबके मन से पता नहीं कहाँ चली गई ।
इसी बीच अपनी बड़ी-बड़ी आँखों को खोलकर देख रही लेखनी बोल पड़ी-पतन की ओर ले जाने वाली यानी अध:पातिनी, विश्व की सुख शान्ति को नष्ट करने वाली विश्वघातिनी, मानव की दुर्बुद्धि (बुरी भावना) के लिए धिक्कार हो और आपत्ति को पैदा करने वाली, दूसरों को पीड़ा देने वाली बड़ी चील के समान धन के प्रति आसक्ति के लिए भी धिक्कार हो, धिक्कार हो !