सर्वप्रथम बदलियों ने सूर्य की किरणों को प्रभावित करने का प्रयास किया। सूर्य को बीच में लेकर उसके चारों ओर घूमने लगी। कुछ ही समय में सूर्य की किरणें प्रभावित हुईं, परन्तु सूर्य का तेज कम नहीं हुआ न ही उसकी गति में कोई कमी आई। अपनी पत्नी किरण को प्रभावित देख सूर्य हल्की से उत्तेजना के साथ कुछ उपदेश देता है- अनादिकाल से आज तक कभी देखा व सुना नहीं गया कि स्त्री समाज ने पृथ्वी पर प्रलय मचाया, किन्तु आई हुई ये बदलियाँ क्या अपनी सत्-परम्परा को बिगाड़ना चाहती हैं ?
"अपने हों या पराये,
भूखे-प्यासे बच्चों को देख
माँ के हृदय में दूध रुक नहीं सकता
बाहर आता ही है उमड़ कर,
इसी अवसर की प्रतीक्षा रहती है -
उस दूध को।" (पृ. 201)
माँ की ममता का यह परिणाम है कि अपनी या दूसरों की, किसी की भी भूखी-प्यासी संतान को देखकर माँ के हृदय का दूध बाहर आकर, शिशु की भूख-प्यास को मिटाता ही है। क्या ऐसी दयालु हृदय वाली मातृ-शक्ति भी प्रलय की प्यासी बन चुकी है? क्या शरीर की रक्षा हेतु धर्म को ही नष्ट किया जा रहा है? क्या धन के विकास हेतु अपनी लाज ही खुले बाजार में बेची जा रही है? समझ नहीं आ रहा है, आज इन्हें क्या हुआ?