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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • 24. मीसांसा : बादलों के तन-मन की

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    ज्यों ही सागर ने बड़वानल की बात सुनी, त्यों ही वह जोर से ठहाका मारकर हँसता हुआ बोला- जो कहता है, वह करता नहीं और जो करता है, वह कहता नहीं। करनी और कथनी में बहुत अन्तर हुआ करता है। ऊपर से सूरज क्रोधित हो रहा है, नीचे से तुम चिल्ला रहे हो किन्तु बीच में रहकर सागर न जला और न ही उबला इसने अपने शीतल स्वभाव को कभी नहीं बदला, किन्तु क्या करें? शीतलता का योग पाकर भी तुम शीतल ना बन सके, ना ही तुमने उष्णता छोड़ी।

     

    दूसरी बात तुम्हारा स्वभाव ही गरम है, पित्त सदा भड़का रहता है, चित्त (मन) सदा विचलित रहता है अन्यथा पागलों के समान यद्वा-तवा कुछ भी क्यों बकते तुम। मेरी मानो पित्त के उपशमन हेतु मुझसे याचना कर, सुधा (अमृत) लेकर चन्द्रमा के समान सुधा का सेवन किया करो तथा सूर्य का पक्ष ना लिया करो, समझे मेरी बात !

     

    पृथ्वी पर प्रलय मचाना ही प्रमुख उद्देश्य है सागर का। अतः इस बार बहुत समय देकर तीन पुरुष बादलों को प्रशिक्षित किया गया है, बदलियों-स्त्रियों को नहीं झट से बदलने वाली । बादल सघन घने हैं, प्रमुख कार्यों में विघ्न डालना ही इनका प्रमुख कार्य है। जघन्य परिणाम और जघन्य ही इनका काम है, 'घन' सार्थक नाम है इनका । सागर से खारे जल को भर, वायुयान के समान अपने दलों सहित उड़ते-उड़ते आकाश में पहुँचते हैं बादल-दल ये।

     

    पहला बादल इतना काला है कि अपने साथियों से बिछुड़ा भौंरों का समूह इन्हें ही अपना साथी समझ कर बार-बार इनसे आ मिलता है और निराश हो लौट जाता है। दूसरा बादल महादेव के गले में क्रीड़ा करता हुआ महाविषैले नीले-नाग के समान नीला, जिसकी आभा से पीली फसल भी हरी दिखने लगी है और अन्तिम बादल कबूतर के रंग वाला है। तीनों तन के समान ही मन से भी दूषित हृदय वाले हैं। इनका दूषित मन कैसा है सो आगे बताया जाता है।

     

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    चाण्डाल सम विकराल रूप वाले, घमण्ड के अखण्ड पिण्ड, क्रूरता का आवास हैं जिनका हृदय, सदा कलह करने वाले, भूत भी डर जाये इतने डरावने, रात्रि इनकी बहिन लगती है शशि (चन्द्रमा) से जिसका विवाह हुआ है, कारण कि सागर से मित्रता होने से अपयश का पात्र बना, शशि को कोई कन्या नहीं देना चाहता था, अत: बादलों की बहिन रात्रि से ही शशि का सम्बन्ध कर दिया गया, सो सागर को इसका श्रेय जाता है।

     

    किसी के वश में नहीं आने वाले, दुष्ट हृदयी, दूसरों को दुख देकर तृप्त होने वाले, दूसरों को देखते ही रुष्ट होने वाले, सदा प्रतिकार करने की प्रवृत्ति वाले, वैर-विरोध पालने वाले, निर्दोषों में दोष लगाने वाले, संतोषी-क्षमावान प्राणियों में भी क्रोध जगाने वाले, पूज्य पुरुषों की निन्दा करने वाले तथा अच्छे कार्यों से दूर रहने वाले हैं ये बादल-दल ।



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