Jump to content
नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • 38. आगमन : पवन का

       (0 reviews)

    कुछ समय व्यतीत हुआ कि विनयशील, प्रकृति के अनुसार स्वभाव से वन-उपवन विचरने वाला, मौसम के अनुकूल रहने वाला, जीवन के प्रत्येक पल में मित्रता निभाने वाला, अपने पूर्वजों की परम्परा का निर्वाह करने वाला पवन आता है। सो ऐसे व्यक्ति के सम्बन्ध में सन्तों का कहना है कि -

     

    "जिसकी कर्तव्य-निष्ठा वह

    काष्ठा को छूती मिलती है

    उसकी सर्वमान्य प्रतिष्ठा तो......

    काष्ठा को भी पार कर जाती है।" ( पृ. 258)

     

    178.jpg

     

    जो कर्ता-बुद्धि से रहित सदा अपने कर्तव्य निर्वाह में, चरम सीमा तक लगा रहता है, उसका सभी सम्मान करते हैं और उसकी लौकिक प्रतिष्ठा भी सीमा को लांघ अनन्त आकाश को छू जाती है। फूल के स्मरण मात्र से पवन का आना हुआ, गुलाब का फूल अत्यधिक प्रसन्नता से भर गया, नाचने लगा, परिणाम स्वरूप स्वयमेव मित्र का स्वागत हुआ। (चेहरे की मुस्कान, प्रसन्नता ही सबसे बढ़िया स्वागत का साधन है) फूल ने आत्मीयता से भरे भावों से पवन को नहला दिया तो बदले में पवन ने भी फूल को प्रेम से हिला दिया।

     

    फिर पवन ने विनयपूर्वक पूछा-मुझे याद किया सो कारण जानना चाहता हूँ। जिससे की प्रासंगिक कर्तव्य पूर्ण कर पुण्य से अपने को पवित्र कर सकें। पर के लिए सहयोगी, उपयोगी बन सकें यही एक भावना है या कहूँ तो एक बहाना है क्योंकि समता की ओर बढ़ने का सबसे सरल उपाय यही है और दूसरों को माध्यम बना, अपने भीतर भरी गंदगी को दूर करना है।



    User Feedback

    Create an account or sign in to leave a review

    You need to be a member in order to leave a review

    Create an account

    Sign up for a new account in our community. It's easy!

    Register a new account

    Sign in

    Already have an account? Sign in here.

    Sign In Now

    There are no reviews to display.


×
×
  • Create New...