कुम्भ पर लिखी गई है पंक्तियाँ “कर पर कर दो'' इसका भाव यह है कि हमारे उज्ज्वल भविष्य के लिए प्रभु की यह आज्ञा है कि-
"कहाँ बैठे हो तुम श्वास खोते
सही-सही उद्यम करो।" (पृ. 174)
संसार के गोरख धंधे में फँसकर क्यों अपना बहुमूल्य जीवन नष्ट कर रहे हों। सही-सही पुरुषार्थ करो, भगवान् के समान हाथ पर हाथ रख निज स्वरूप की उपलब्धि हेतु साधना करो, पाप कर्म से बच जाओगे अन्यथा सांसारिक बन्धनों / संयोगों में उलझते हुए, मोह से अन्धे हुए, नरकादि दुर्गतियों में पहुँचकर दुख ही पाओगे। दूसरा अर्थ यह भी है कि गृहस्थ हों तो श्रमणों के हाथों पर, अपने हाथ कर दो अर्थात् अतिथि संविभाग व्रत का पालन करो। आहारदान देकर गृहस्थ जीवन सफल करो |