पानी लाने हेतु शिल्पी हाथ में बाल्टी ले कूप पर जाता है। कूप में ऊपर आने को मचलती मछली पर उसकी परछाई पड़ती है, जिसे देख दृढ़ संकल्पित होती है वह, तभी उसकी विजय प्रारम्भ। बाल्टी का कूप के जल में प्रवेश, संकल्पिता मछली द्वारा अपनी सहेली के साथ चलने की बात, सहेली द्वारा समझाना-अपनी जाति, जगत् की बगुलाई, दया का वतन और कथन, झण्डा भी डण्डा और समय की बलिहारी। बाल्टी में प्रवेश पाना, शेष मछलियों का आश्चर्यचकित होना फिर सत्कार्य का अनुमोदन, महामछली की सत्कारमयी भावभीनी विदाई। मछली की कामना घट में काम ना रहे। ऊपर आ उपाश्रम की धूप का वन्दन, रूप, स्वरूप। पानी छानते वक्त बाल्टी से उछलकर मछली का माटी के पावन चरणों में जा पड़ना और अश्रु बहा निज वेदना की अभिव्यति। प्रकट स्थिति पर लेखनी पूछती है युग से मानवता, दानवता और दानवता की बात। माँ माटी द्वारा कलियुग-सतयुग का सही-सही परिचय। बात सुन माटी की गोद में बोध, शोध और सल्लेखना की माँग रखती है मछली। इस पर मुस्कुराती माटी सल्लेखना का सही स्वरूप बता अन्तिम उपदेश के रूप में देती है, मछली को सम्बोधन-छली नहीं, चली नहीं बनना, मासूम मछली बने रहना यही समाधि को जन्म देने वाली है। माटी द्वारा शिल्पी को संकेत-जलीय जन्तु और मछली को शिल्पी सुरक्षित वापस कूप में पहुँचा देता है।