यात्रा की शुरुआत होनी है। शिल्पी का माटी को लाने अपने उपाश्रम से निकलना, माटी का स्पंदन, संप्रेषण का स्वरूप, प्राथमिक दशा में अनुभूति, मंगल घटना का संकेत, शिल्पी का सरिता तट के निकट घाटी में आना, कुशल शिल्पी की शिल्प कला, कुम्भकार नाम की सार्थकता। माटी खोदने के पहले ओंकार को नमन, अहंकार का वमन, मुड़न-जुड़न की क्रिया। खुदती माटी को देख शंका-प्रतिशंका में उलझा जीवन। बोरी में भरी माटी की शालीनता नवीन युग को तौलती सी। माटी के प्रति शिल्पी की जिज्ञासा, माटी द्वारा समाधान पश्चात्माटी को पीठ पर लाद गदहे द्वारा उपाश्रम की ओर ले जाने का उपक्रम। बीच में माटी की अनुकम्पा, दया का सम्यक् परिचय, दया और वासना में अन्तर। गदहे की प्रार्थना प्रभु से, अनहोनी घटना, परस्पर उपकार की भावना पूर्ण हुई और माटी का उपाश्रम में प्रवेश। उपाश्रम के परिसर की विशेषता।