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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • 8. दुर्लभ दर्शनीय दृश्य

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    इधर सरिता में बहती हुई लहरें ऐसी लग रही हैं, मानो अपनी उज्ज्वलता से चाँदी की चमक को भी तिरस्कृत कर रही हो। अनेक फूलों की अनगिन मालाएँ तैरते-तैरते सरिता तट पर इकट्ठी हुई ऐसी प्रतीत हो रही हैं, मानो आज के इस अवसर पर सरिता ने ही इन्हें माटी के विकासशील पावन चरणों में समर्पित किया हो।

     

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    सरिता तट पर एकत्रित झाग ऐसा लग रहा है मानो, जिसमें से बाहर दही छलक (उछल) रहा हो ऐसे मंगलोत्पादक, प्रसन्न मुद्रा वाले कलशों को अपने हाथों में ले सरिता तट खड़े हैं। यह दुर्लभ दर्शनीय दृश्य है।

     

    ओस बिन्दुओं के बहाने, प्रसन्नता के साथ उमड़ती हुई नदी के समान, धरती माँ के हृदय में करुणा उमड़ रही है और धरती के अंग-अंग अपूर्व आनन्दित होते हुए स्वाभाविक नृत्य कर रहे हैं।


    इस पावन अवसर पर धरती पर बिखरे ओस के कणों में अत्यधिक उत्साह, अत्यधिक प्रसन्नता उत्पन्न हो रही है। जोशीले क्षणों में तेज प्रकाश और निरन्तर विकास, संतोष दिखाई पड़ रहा है। वहीं रोष भाव के मन में उदासी छा गई है, क्रोध, बैर आदि भाव सब बेहोश से मृतक सम लग रहे हैं तथा दोष के कण तड़पते हुए कष्ट का अनुभव करते हुए समाप्त हो रहे हैं। अत: गुणों का खजाना यहाँ दिखाई पड़ रहा है।



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