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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • 18. शरण : गुरु चरण की

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    सरिता तट की पतित माटी उपाश्रम में पहुँच गई है। यहाँ उसे मिला पूर्ण धार्मिक वातावरण, माटी को प्रथम बार ही हुआ उपाश्रम का दर्शन। यहाँ पर रात – दिन जोरदार मेहनत की जाती है, यहाँ मात्र उपदेश ही नहीं किन्तु चारित्र का भी पालन कराया जाता है, अत: योग-शाला भी है और प्रयोगशाला भी बहुत अच्छी। इस शाला में स्वयं शिल्पी क्षण-प्रतिक्षण उपस्थित रहकर शिक्षण और प्रशिक्षण (सैद्धान्तिक और प्रायोगिक ज्ञान) देता है। जिसका असर मात्र ऊपर ही ऊपर नहीं अपितु सीधा भीतरी जीवन पर पड़ता है। यहाँ मात्र किसी तरह जीवन बिताना नहीं, किन्तु उज्वल भविष्य हेतु कुछ नया कार्य-निर्माण करना सिखाया जाता है, इतिहास इस बात का साक्षी है।

     

    यहाँ पर आकर नीचे मुख करके रहने वाला पतित जीवन भी, ऊध्र्वमुखी हो उन्नति को प्राप्त करता है। संसार में हारा हुआ बेसहारा जीवन भी दूसरों को सहारा देने वाला बन जाता है। यह वह पवित्र क्षेत्र है जिसके दर्शन से दर्शनार्थी भी दिशाबोध पा जाते हैं। यहाँ पर आने से सदियों से उलझी समस्याएँ भी क्षण मात्र में सुलझ जाती हैं। संस्कार पाने के इच्छुक, यहाँ पर बिना याचना के ही सरल, आनन्ददायी भारतीय संस्कृति के संकेत, संस्कार पा जाते हैं। असि-अस्त्र, शस्त्र को धारण करने वाले क्षत्रिय, मषि-लेखन करने वाले लिपिक आदि, कृषि-खेती कार्य द्वारा आजीविका चलाने वाले कृषक और ऋषि-त्यागी, तपस्वी, ऋद्धिधारी पुरुष आदि को भी कुछ ऐसे सूत्र यहाँ मिलते हैं, जिससे वे निस्वार्थी साधक भी ऋषि प्रणीत आर्ष परम्परा यानि समीचीन निर्दोष मोक्षमार्ग प्राप्त कर लेते हैं।

     

    विशेष : उपाश्रम प्रतीक है गुरु–चरण–सान्निध्य का। भव्य जीव गुरु का सान्निध्य पाकर अपने पतित दुखी जीवन को, गुरु-निर्देशन में साधना करता हुआ उन्नत सुखी बना लेता है। क्षण भर की गुरु-संगति से पुरुर्रवा भील के जीव ने सौधर्म स्वर्ग के वैभव को प्राप्त किया और परम्परा से तिर्थंकर महावीर बना। दरदर की ठोकर खाने वाला, बेसहारा मृगसेन धीवर का जीव सोमदत राजा बन दूसरों को सहारा देने वाला बना। दर्शनार्थी पायप्पा आचार्य श्री शान्तिसागरजी के दर्शन मात्र से प्रभावित हो, मोक्षमार्ग के पथिक बन आचार्य पायसागरजी के रूप में पूज्य बने।


    भव-भव की मिथ्या धारणा, अज्ञान भी गुरु सान्निध्य में दूर हो जाता है, चक्रवर्ती वज़नाभि ने गुरु मुख से संसार, शरीर, भोगों के यथार्थ स्वरूप को जान पञ्च महाव्रत अंगीकार किए। पशु-पक्षी आदि प्राणी मूक होकर भी गुरु कृपा पा, संयम और सल्लेखना जैसे व्रतों को धारण करते हैं। हाथी, शेर, सर्प, बैल, सूकर आदि के उदाहरण आगम में मिलते हैं। गृहस्थों और साधुओं दोनों को गुरुसान्निध्य से समीचीन मोक्षमार्ग प्राप्त होता है। आदर्श गृहस्थ सेठ सुदर्शन, विजय सेठ-विजया सेठानी आदि का जीवन-दर्शन पुराण ग्रन्थों में प्रसिद्ध है।



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