दृढ़ संकल्प हुआ, क्षणभंगुर-नाशवान प्राणों की चाह दूर चली गई, प्रभु प्राप्ति की प्यास मछली के अन्त:करण में जागृत हुई। फिर इस वैराग्य दशा में। जड़भूत जल का प्यार कैसे टिकता? वह भी पल भर में दूर हुआ। अभय का सहारा मिला और मछली के मन का भय दूर हुआ यहीं से प्रारम्भ हुई मछली की विजय-यात्रा । अभय (भय का अभाव, निडरता)
अब कूप से जल खींचने का कार्य आगे बढ़ता है। जिसके अंग-अंग जीवदया के संस्कारों से संस्कारित थे तथा जिन्हें संयम की शिक्षा प्राप्त थी, ऐसे शिल्पी ने बाल्टी को रस्सी से बाँध दिया और अब वह सावधानी पूर्वक धीमी गति से बाल्टी को कुएँ में उतार रहा है। धीमी गति से उतारने का कारण यह है कि कूप में रहने वाले मेंढक, मछली इत्यादि जीवों की हिंसा ना हो पावे तथा स्वयं को इस लोक और परलोक में, आज और भविष्य में कभी भी कर्मों का बंध ना हो सके और ना ही कर्मों का फल भोगना पड़े।
इधर कूप में पड़ी दृढ़संकल्पिता मछली ने ज्यों ही ऊपर से नीचे उतरती बाल्टी को देखा उसे ऐसा लगा मानो मेरी भावना अब पूर्ण होने वाली है, मेरा संकल्प फलीभूत होने वाला है। ऊपर उठने की इच्छा से भरी मछली की शान्त आँखें ऊपर की ओर देखने लगी। उसे लगा जैसे कोई देव-विमान स्वर्ग से उतरता हुआ आ रहा है, उस पर लिखा हुआ था "धम्मी दया विसुद्धो" तथा "धम्मं सरण गच्छामि" धर्म दया से पवित्र होता है ऐसे दयामयी धर्म की शरण को मैं प्राप्त करता हूँ।
ज्यों-ज्यों बाल्टी कुएँ में उतरती गई, त्यों-त्यों कूप में रहने वाले बहुत कुछ जलचर जीव भय के कारण कूप की गहराई में चले गए किन्तु रसना इन्द्रिय के वशीभूत हुई कुछ मछलियाँ, कुछ खाने की सामग्री मिलेगी हमें, इस आशा से चलना-हिलना छोड़ उतरती हुई बाल्टी को अपलक देख रही हैं। जल में उतरी खाली बाल्टी को देखकर उसे कोई नया जाल-सा समझ भयभीत हो दूर भाग, नीचे की ओर चली जाती हैं सभी मछलियाँ रसनाधीना, रसलोलुपा ।
1. पौद्गलिक = चेतना शून्य परमाणुओं, स्कन्धों से निर्मित।
2. वैराग्य = रागभाव-आसक्ति का अभाव