संयम स्वर्ण महोत्सव Posted June 20, 2018 Report Share Posted June 20, 2018 तू ऊपर से सब भरता रहा, पर भीतर से तो खाली है। ऐसा कुछ निश्चित करना है, मन को भीतर से भरना है। तो, अर्हं योग को करना है...।। 1. पानी में डूबे कलशे का, जब तक मुख उलटा रहता है। पानी है चारों ओर मगर, भीतर से खाली रहता है। पानी से भरा आए बाहर, मुख को बस सीधा करना है। तो, अर्हं योग को करना है...।। 2. मछली पानी में प्यासी है, मन में क्यों भरी उदासी है। जो दास बने धन के तन के, उनकी मति जग में दासी है। जो दास बना वो मालिक था, मालिक चेतन को बनना है। तो, अर्हं योग को करना है...। 3. खिलते हुए कोमल पौधे को, पानी ऊपर से देता रहा मुरझाता गया धीरे-धीरे, खुशबू उसकी तू खोता रहा फिर से यह पौधा खिल जाए, जड़ में जल सिंचन करना है। तो, अर्हं योग को करना है...। 4. तन की तृष्णा मन की इच्छा, पूरी करते-करते आया धन वैभव पद सम्मान सभी, पाया पर मन खाली पाया भीतर से तृप्त ये आतम हो, आतम में तृप्ति करना है। तो, अर्हं योग को करना है...। 2 Link to comment Share on other sites More sharing options...
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