संयम स्वर्ण महोत्सव Posted June 20, 2018 Report Share Posted June 20, 2018 श्रमण संस्कृति इस युग में भगवान आदिनाथ के द्वारा प्रथम तीर्थंकर के रूप में सर्वप्रथम प्रवाहित हुई। भगवान आदिनाथ चतुर्थकाल में हुए। जैन दर्शन के अनुसार यह काल 1 कोड़ा कोड़ी (असंख्यात वर्षों) का होता है। भगवान आदिनाथ की ध्यान की मुद्राएँ पद्मासन और कायोत्सर्ग के साथ आज भी विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं जैसे हड़प्पा एवं मोहनजोदड़ो में प्राप्त मोहरों पर अंकित हुई मिली श्रमण संस्कृति में दिगम्बर मुनि ज्ञान और ध्यान में ही पूरा जीवन व्यतीत करते हैं। ध्यान से ही कर्मों का क्षय होता है। आत्मिक गुणों की उपलब्धि होती है। जैन दर्शन में चार प्रकार के ध्यानों का वर्णन भगवान ऋषभदेव ने सर्वप्रथम किया। उसके बाद आने वाले 23 तीर्थकरों ने भी ध्यान से कर्मों का क्षय होता है यह उपदेश दिया। वर्तमान में चौबीसवें तीर्थकर भगवान महावीर स्वामी का तीर्थ चल रहा है, जिसमें अनेक श्रमण मुनि, साधु, दिगंबर ऋषियों ने प्रयोग करके ध्यान से आत्मिक शांति प्राप्त की है। इस तरह ध्यान और योग की परम्परा सनातन है और श्रमण संस्कृति के द्वारा प्रवाहमान रही है। णमोकार महामंत्र ध्यान का आलम्बन रहा है, इसी णमोकार मंत्र से अनेक बीजाक्षरों की उत्पत्ति हुई है। ॐ, अर्हम् आदि बीजाक्षर इसी णमोकार मंत्र से निकले हैं। जिनके ध्यान करने की विधि और उसके फल, ध्यान के महान ग्रंथ ज्ञानार्णव में विस्तृत रूप से दी गई है। ॐ को प्रणव मंत्र माना जाता है और अर्हम् को मंत्रराज स्वीकार किया गया है। अर्हं मंत्र के बारे में ज्ञानार्णव में लिखा है। अकारादि हकारांतं रेफमध्यं सबिन्दुकम्। तदेव परमं तत्त्वं यो जानाति स तत्त्ववित्।। ज्ञानार्णव 35/25-1 अर्थ - जिसके आदि में अकार है, अंत में हकार है और मध्य बिंदु रेफ सहित है। वही उत्कृष्ट तत्त्व है। जो इस अर्हं को जानता है, वह तत्त्वज्ञ बन जाता है। इस अर्हम् के ध्यान से योगी अनेक ऋद्धियों को प्राप्त करता है। अनेक दैत्य, राक्षस, भूत-प्रेत स्वयं वश में हो जाते हैं। यह अर्हम् का ध्यान अतीन्द्रिय, अविनश्वर आत्म सुख प्राप्त कराता है। केवल ज्ञान, सम्पूर्ण ज्ञान, सर्वज्ञ की प्राप्ति इसी से होती है। इस तरह अर्हम् का इतिहास उतना ही प्राचीन है। जितना मानव जाति का इतिहास है। मुनि श्री 108 प्रणम्यसागर जी महाराज कहते है कि - णमोकार मंत्र का संक्षिप्त रूप अर्हम् है और अर्हम् का विस्तार णमोकार मंत्र है। पवित्र आत्माओं की विशिष्ट शक्तियाँ इस णमोकार मंत्र के अंदर समाहित हैं। जैसे घर्षण से आग उत्पन्न होती है, ऐसे ही मंत्र के ध्यान से एक आग उत्पन्न होती है, जिसमें हमारे सारे विकार, अहंकार, दुराचार, आक्रामक भावनाएँ, अराजक उद्देश्य, अश्लील मनोवृत्तियां (मानसिकताएँ), अशुभ विचार आदि सभी निष्क्रिय हो जाते हैं। स्वाभाविक शक्तियाँ प्रकट होने लग जाती हैं। यहीं से मनुष्य का विकास प्रारम्भ होता है। मनुष्य का यह विकास उसे देवत्व की ओर ले जाता है और आगे चलकर वही परम ब्रह्म ईश्वर की प्राप्ति कर लेता है एवं ईश्वर को अपने अंदर प्रकट कर लेता है। इस अर्हम् योग परम्परा को परम पूज्य मुनिराज 108 श्री प्रणम्य सागर जी ने पुनजीर्वित कर मानव सृष्टि को एक ऐसी नई राह दिखाई है, जो प्राणियों के जीवन को सुन्दर एवं स्वस्थ बना सके। अर्हम् योग केवल शारीरिक व्यायाम नहीं है। अपितु ध्यान के साथ चित्त और आत्मा को स्थाई आध्यात्मिक प्रभाव (Deep Spiritual Impact) भी देता है। गुरूदेव श्री प्रणम्य सागर जी महाराज ने पंच नमस्कार मुद्रा का स्वरूप बताकर सभी प्राणियों को प्रतिदिन इन्हें जीवन में अपनाकर अपने जीवन को स्वस्थ एवं सुंदर बनाने का उपदेश दिया है। यह पंच नमस्कार मुद्राएं निम्न प्रकार है:- लाभ :- 1) आलस्य दूर होता है। 2) कमर एवं रीढ़ की हड्डी सम्बन्धी रोग दूर होते हैं। 3) कद बढ़ता है। 4) नई ऊर्जा का संचार होता है। 5) मोटापे में कमी आती है। लाभ :- 1) ब्लड प्रेशर नियंत्रित रहता है। 2) हृदय सम्बन्धी रोगों में आराम। 3) श्वास सम्बन्धी बीमारी ठीक होती है। 4) लगातार अभ्यास से अपनी ऊर्जा को नाप सकते हैं। लाभ :- 1) एकाग्रता बढ़ती है। 2) स्मरण शक्ति बढ़ती है। 3) मानसिक तनाव में कमी आती है। 4) कंधे मजबूत होते हैं। लाभ:- 1) सर्वाईकल (गर्दन) के दर्द में आराम 2) फ्रोजन सोल्डर में आराम 3) कलाई के दर्द (कंधे के दर्द में आराम 4) ज्ञान की वृद्धि लाभ :- 1) विनम्रता का विकास 2) सकारात्मक सोच की वृद्धि 3) पेट-पीठ सम्बन्धी रोग में आराम 4) अनिद्रा में लाभ 5) डायबिटीज आदि रोगों में लाभ। पंच मुद्राएं पंच तत्वों का भी नियंत्रण करती हैं तथा तत्त्व की कमी को पूरा करती हैं। “वृक्ष बीज में छिपा हुआ है जागेगा अंतर्बल से नर में नारायण बैठा है प्रकटेगा चिंतन से” 5 Link to comment Share on other sites More sharing options...
Anju jain22 Posted June 21, 2018 Report Share Posted June 21, 2018 bahut sunder tarike se samjhaya hai. 1 1 Link to comment Share on other sites More sharing options...
सीमा जैन Posted June 24, 2019 Report Share Posted June 24, 2019 यहां पर जो दूसरा चित्र सिद्ध मुद्रा का दर्शाया गया है वह शायद गलत हो सकता है क्योंकि हमें प्रणम्य सागर जी महाराज ने हथेलियों को सीधा रखना मतलब सिद्ध शिला की आकृति देते हुए हथेलियों को बिल्कुल दोनों रेखाओं को मिलाकर सिद्ध शिला का आकार देना इस तरह बताया है Link to comment Share on other sites More sharing options...
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