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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

आचार्यश्री की सूक्तियाँ (कोटेशन)


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1.           सावधान ज्ञान का नाम ही ध्यान है |

2.           जो मानता स्वयं कोसबसे बड़ा है , वह धर्म से अभी बहुत दूर खड़ा है |

3.           अर्थ की तुला से परमार्थ को मत तौलो |

4.           अर्थ के पीछे अनर्थ मत करो |

5.           उद्योग में हिंसा समझ में आती है,  हिंसा का उद्योग समझ से परे है |

6.           धन की प्राप्ति कदाचित पुण्य का फल हो सकता है,  पर उसका सदुपयोग तपस्या का फल है |

7.           जीवन का उपयोग करो, उपभोग नहीं |

8.           अभिमान पतन का कारण है|

9.           संसार से मोक्ष की ओर जाना है तो बस इतना करो कि जिधर मुख हैउधर पीठ कर लो और जिधर पीठ है उधर मुख कर लो

10.       गुरु की आज्ञा में चलना ही गुरु की सच्ची विनय हैं |

11.       आवेग में विवेक मत खोओ|

12.       बहुत नहीं बहुत बार पढ़ो |

13.       पेट भरने की चिंता करो, पेटी भरने की नहीं|

14.       अपने धन को द्रव्य बनाओ और उसे वहां पहुंचाओ जहां उसकी आवश्यकता है|

15.       जिस व्यक्ति का हृदय दया से भीगा नहीं है, उस हृदय में धर्म का अंकुर नहीं फूट सकता|

16.       वासना का सम्बन्ध न तो तन से हैं और न वसन से है, अपितु माया से प्रभावित मन से है|

17.       किसी के दुख को देख कर दुखी होना ही सच्ची सहानुभूति है। 

18.       मरहम पट्टी बांधकर व्रण का कर उपचार,  ऐसा यदि ना बन सके डंडा तो मत मार।

19.       लायक बन नायक नहीं, करना है कुछ काम,  ज्ञायक बन गायक नहीं, पाना है शिवधाम|

20.       उस पथिक की क्या परीक्षा पथ में शूल नहीं,  उस नाविक की क्या परीक्षा धारा प्रतिकूल नहीं|

21.       प्रतिभा देश की सबसे बड़ी संपत्ति है इसका पलायन नहीं होना चाहिए

22.       धन का संग्रह अनुग्रह के लिए करो परिग्रह के लिए नहीं |

23.       तुम भीतर जाओ,तुम्बी सम, तुम भीतर जाओ|

24.       जो दिख रहा है वह मैं नहीं हूँ, जो देख रहा है वह मैं हूं|

25.       मन की मलिनता धर्म की तेजस्विता को नष्ट कर देती है |

26.       यदि तुम समर्थ हो तो असमर्थो को समर्थ बनाओ,यही समर्थ होने का सच्चा लाभ है |

27.       सत्य केवल शाब्दिक अभिव्यक्ति का साधन नहीं, अनुभूति की साधना है|

28.       जैसे पानी के प्रवाह के बिना नदी की शोभा नहीं होतीवैसे ही नैतिकता के अभाव में मनुष्य की शोभा नहीं|

29.       मनुष्य के अज्ञान से भी ज्यादा खतरनाक है उसका प्रमाद|

30.       दूसरों की निंदा करना सबसे निंदनीय कार्य है|

31.       अपनी वासना का शमन ही सच्ची उपासना है |

32.       संघर्षमय में जीवन का उपसंहार हमेशा हर्षमय होता है|

33.       जीवन के उतार चढ़ाव में ठहराव बनाए रखना ही जीने की कला है|

34.       आदेश नहीं अनुरोध की भाषा का प्रयोग करो |

35.       वीतरागी बनने का  ध्येय रखे, वित्त रागी नहीं।

36.       अच्छे लोग दूसरों के लिए जीते हैं जबकि दुष्ट लोग दूसरों पर जीते हैं|

37.       नम्रता से देवता भी मनुष्य के वश में हो जाते हैं|

38.       जिस तरह कीड़ा कपड़ों को कुतर देता है, उसी तरह ईर्ष्या मनुष्य को|

39.       जिन्हें सुंदर वार्तालाप करना नहीं आता, वही सबसे अधिक बोलते हैं|

40.       दूसरों के हित के लिए अपने सुख का त्याग करना ही सच्ची सेवा है|

41.       धर्म पंथ नहीं पथ देता है|

42.       चार पर विजय प्राप्त करो- १. इंद्रियों पर २. मन पर ३. वाणी पर ४. शरीर पर|

43.       यश त्याग से मिलता है, धोखाधड़ी से नहीं|

44.       डरना और डराना दोनों पाप है|

45.       चरित्रहीन ज्ञान जीवन का बोझ है|

46.       सच्चा प्रयास कभी निष्फल नहीं होता|

47.       अहिंसा की ध्वजा जहाँ लहराती है, वहाँ सदा मंगलमय वातावरण रहता है।

48.       उस ओर कभी मत जाओ, जिस ओर तुम्हारे चरित्र में पतन होने का खतरा हो।

49.       देशवासी का प्रथम कर्तव्य अपने देश के स्वाभिमान की रक्षा करना हैं |

50.       क्रोध रुपी  अग्नि, पूण्य रूपी रत्नों को जल देती हैं |

51.       क्रोध अपने स्वभाव की कमजोरी है |

52.       क्रोध में बोध नहीं होता और क्षमा में विरोध नहीं होता |

53.       क्रोध मनुष्य के जीवन को एकाकी बनाता है |

54.       गुरू ही परमात्मा तक पहुँचाते हैं |

55.       गुरू की आज्ञा और वचन, सूत्र के सामान होते हैं |

56.       जिसका हदय दया से द्रवीभूत नहीं हैं, उसमें धर्म के अंकुर संभव ही नहीं हैं |

57.       दीन-दु:खी जीवों की पीड़ा देखकर जिनकी आँखों में पानी नहीं आता, वह आँख, आँख नहीं छेद है, फिर छेद तो नारियल में भी होता हैं |

58.       नम्रता के आगे कठोरता सदैव पिघलती है |

59.       दया धर्म से ही धर्म की रक्षा संभव है |

60.       दया और करुणा के अभाव में मानवता का प्रकाश प्राप्त होना संभव नहीं |

61.       दयाधर्म की रक्षा करना ही मानवता की रक्षा करना है |

62.       हम किसी को जीवन नहीं दे सकते, किन्तु जीवन बचा तो सकते हैं |

63.       महत्वपूर्ण जन्म नहीँ, जीवन है |

64.       सरलता, सादगी और सदभावना ही जीवन का सही धर्म है |

65.       धन से सुविधायें मिल सकती है, सुख नहीं

66.       परिश्रम से अर्जित धन सौभाग्य का दाता होता है |

67.       परलोक गमन के समय पैसा नहीं पुण्य काम आता है |

68.       ज्ञान एक ऐसा धन हैं, जो मन को भी अपने वश में कर लेता है

69.       जोड़ने का प्रयत्न करो, तोड़ने का नहीं, क्योंकि तोड़ना सरल है पर जोड़ना काफी कठिन है |

70.       सबके कल्याण की भावना रखने वाला अपने कल्याण का बीजारोपण कराता हैं |

71.       दूसरे का हित करके अपने हित का साधन करना चाहिए |

72.       सत्य परेशांन हो सकता है, परंतु पराजित नहीं |

73.       समय देना महत्वपूर्ण नहीं, समय के अनुरूप कार्य करना महत्वपूर्ण है |

74.       अवसर आने पर जो उपकार किया जाता है, वह देखने में भले ही छोटा हो पर वास्तव में सबसे बड़ा होता है |

75.       आपकी अपनी असफलता में ही सफलता का रहस्य छुपा होता है |

76.       आधुनिकता की होड़ में अपनी मूल संस्कृति को नहीं भूलना चाहिए |

77.       दीपक के तरह की जलना नहीं, सूर्य के तरह चमकना सीखो |

78.       पथिक को पहले पथ नहीं प्रकाश चाहिए |

79.       कत्लखाने भारतीय इतिहास के लिये कलंक हैं |

80.       क़त्लखानों का आधुनिकीकरण दुर्भाग्यपूर्ण है |

81.       आस्था मस्तिष्क में नहीं हृदय में जन्मती है, अत: हमारी आस्था का केन्द्र ज्ञान सम्पन्न मस्तिष्क नहीं, बल्कि भावना सम्पन्न हृदय होता है |

82.       ही एकान्त का प्रतीक है और "भी" अनेकान्त का |“ही में किसी की अपेक्षा नहीं है जबकि "भी" पर के अस्तित्व को स्वीकार करता है |

83.       हमें दूसरों की बात बिना पूर्वाग्रह के सुनना चाहिए, यही तो अनेकान्त का मूल मन्त्र है|

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