संयम स्वर्ण महोत्सव Posted April 7, 2018 Report Share Posted April 7, 2018 इस पाठ्यपुस्तक में आचार्यश्री के धरा पर अवतरण, दिव्य चेतना की प्रासि से लेकर आचार्य पद की प्राप्ति तक की यात्रा है। एक आचार्य के रूप में इतने बड़े संघ के संचालन की नीति, सरल हृदयी परंतु दृढ़ अनुशासक की उनकी भूमिका और आगम के अनुरूप श्रेष्ठतम आचरण पर प्रकाश डाला गया है। उनका बाह्य व्यक्तित्व जितना आकर्षक एवं सौम्य है उतना ही आभ्यन्तरीय व्यक्तित्व भी निर्मल एवं पवित्र है। मर्यादा पुरूषोत्तम कुशल साधक के रूप में उनके जीवन का यह हिस्सा सामान्य श्रावक ही नहीं वरन समस्त साधु समाज के लिए भी प्रेरणा और चिंतन का विषय है। संस्मरणों के माध्यम से आचार्यश्रीजी के अन्तरंग की साधना को जिस तरह से प्रस्तुत किया गया है वह भावुक पाठकों के हृदय में सीधे उतर कर सच्चरित्री बनने की प्रेरणा देती है। कैसी लगी आपको यह पुस्तक - आप अपने अनुभव मीचे कमेंट में जरूर लिखे | Link to comment Share on other sites More sharing options...
संयम स्वर्ण महोत्सव Posted May 14, 2018 Author Report Share Posted May 14, 2018 2 Link to comment Share on other sites More sharing options...
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