संयम स्वर्ण महोत्सव Posted April 7, 2018 Report Share Posted April 7, 2018 इसमें आचार्य श्री विद्यासागरजी द्वारा इन पचास वर्षों में अपने गुरु आचार्य श्री ज्ञानसागरजी को जिन-जिन रूपों में स्मरण किया गया है, उन विषयों को १o अध्याय के रूप में बाँटा गया है। एक दिव्य पुरुष आचार्य श्री विद्यासागरजी का निर्माण जिनके द्वारा हुआ है ऐसे अलौकिक पुरुष आचार्य श्री ज्ञानसागरजी महाराज को वह जिस समर्पित भाव से एवं याचकभाव से स्मरण करते हैं, वे भाव आत्मा को स्पन्दित कर देते हैं। जिनको पूरी दुनिया भगवानतुल्य मानती है, वो स्वयं अपने गुरु का गुणगान करते नजर आते हैं तो युगों-युगों से चली आ रही भारत की गुरु-शिष्य परंपरा जीवंत हो जाती है। कैसी लगी आपको यह पुस्तक, अपने अनुभव नीचे जरूर लिखे | Link to comment Share on other sites More sharing options...
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