संयम स्वर्ण महोत्सव Posted December 8, 2017 Report Share Posted December 8, 2017 गाय के घी को आयुवेद में महाऔषधि (दिव्य औषधि) भी कहा जाता है। बाजार में मिलने वाले गाय के घी की विश्वसनीयता नहीं है। देशी गाय जो कूडा-कचरा नहीं खाती है और खेती या जंगल को घास चरने जाती है। उसके दूध को गर्म कर मिट्टी के पात्र में दही जमाया जाता है। उस दही को पुराने तरीके से मिट्टी के बिलौने में लकडी की अशु से बिलौया जाता हो। उससे प्राप्त कच्चे मक्खन को गर्म करने के बाद प्राप्त घी को ही गाय का घी कहा जा सकता है। रात्रि को सोते समय गाय के घी की दो बूंद नाक में डाल कर उसे श्वांस के साथ अपने आप मष्तिक में जाने दें। ऐसा करने पर किसी भी प्रकार का सिरदर्द नही होगा और बुद्धि तेज होती है। शरीर में किसी भी प्रकार की बीमारी नहीं आती है। इस प्रकार के प्रयोग से लकवे और कोमे वाले मरीज तक ठीक हुए है। श्यामा गाय के घी से अनेक दुखी व्यक्तियों को रोगमुक्त होते हुए देखा है। इसे गठिया कुष्ठरोग, जले तथा कटे घाव के दाग, चेहरे की झाँई, नेत्रविकार, जलन, मुँह का फटना आदि पर आश्चर्यजनक लाभ होता है। इसी प्रकार जोडों में दर्द, चोट, सूजन फोडे-फुसी आदि अनेक बिमारियों से पीडित अनेक लोगों का घी से उपचार किया गया, जिसमें आश्चर्यजनक सफलता प्राप्त हुई। एक व्यक्ति की ऑपरेशन के दौरान नाक में नली पडने के कारण आवाज चली गई थी। प्रयास करने के बावजुद १५-२० दिन बाद भी वे कुछ बोल नहीं पा रहे थे। मजबूर होकर वे अपनी बातें कागज पर लिख देते थे,किसी व्यति ने देशी गाय के घी से गले पर मालिस करने की सलाह दी। तीन-चार दिन गले में उत्त घी की मालिश करते ही उनकी आवाज खुलने लगी और ९-१० दिन में वे पहले जैसे बोलने लगे। इस प्रकार गाय के घी से उपचार के हजारों उदाहरणश है। Link to comment Share on other sites More sharing options...
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