संयम स्वर्ण महोत्सव Posted November 30, 2017 Report Share Posted November 30, 2017 द्रष्टान्त से सिद्धान्त की ओर (आचार्यश्री विद्यासागर जी की चिन्तन यात्रा ) संकलन प्रस्तुति - मुनिश्री प्रसादसागर जी आमुख जैन धर्म अनादि अनन्त काल से तीर्थकरों द्वारा प्रवर्तित होता चला आ रहा है। उनके अभावों में गणधर - आचार्यों द्वारा उन का अनुकरण कर जिनशासन की धर्म ध्वजा फहराई जाती रही है। आचार्यों ने जिनशासन के धर्म सिद्धान्तों को सरलीकरण करने के लिए जनभाषा एवं लौकिक उदाहरणों क मध्यम अपनाया । न्याय-दर्शन विदों ने उदाहरण/दृष्टान्त को भी तत्व को समझाने का एक साधन स्वीकार किया है। आज दार्शनिक-सन्त-विद्वान् आदि अपने व्याख्यानों में लौकिक-वैज्ञानिक उदाहरणों/दृष्टान्तों के माध्यम से अपने भावों को प्रस्तुत करते हुए देखे जाते हैं। इसी प्रकार परमपूज्य आचार्य गुरुवर श्री विद्यासागर जी महाराज अपने प्रवचनों में धार्मिक कक्षाओं में ऐसे सटीक उदाहरण/दृष्टान्त देते हैं कि श्रोता मंत्रमुग्ध हो उठते । तब लोग विचार करते हैं कि आचार्य श्री ने वर्तमान विज्ञान को पढ़ा नहीं, सांसारिकता से दूर रहते हैं, लौकिक पत्र-पत्रिकाएँ पढ़ते नहीं, फिर आचार्य श्री जी वर्तमान ज्ञान-विज्ञान के उदाहरणों से धर्म सिद्धान्तों को सहज-सरल रूप में कैसे हृदयंगम करा देते हैं। इस प्रसंग में यह देखा गया कि गुरुदेव अपने शिष्यों से जब कभी लौकिक ज्ञान के बारे में चर्चा करते हैं उससे वो मूल बात पकड़ लेते हैं और चिन्तन कर उन वैज्ञानिक उदाहरणों से धर्म सिद्धान्तों को सहज सुबोध बना देते हैं। यह गुरुदेव की विशेषता है कि वो या तो अपनी आत्मा में डूबे रहते हैं या फिर बाहर आने पर दृष्टि में जो भी आता है उसमें तत्व खोजते हैं। तत्वों के रहस्य को जानकर सभी को बताते हैं। आचार्य श्री जी द्वारा रचित मूकमाटी महाकाव्य उदाहरणों का उदाहरण है। प्रस्तुत कृति में आचार्य श्री द्वारा कक्षाओं में और प्रवचनों में दिए गए दृष्टान्त एवं द्रष्टान्तों का संकलन किया गया है। इस संकलन का पुण्य-पुरुषार्थ गुरुदेव के शिष्य मुनि श्री प्रसादसागर जी महाराज ने किया है। उनकी इस अनुपम रुचि से गुरुदेव द्वारा दिए गए दृष्टान्त और द्रष्टान्तों से पाठकगणों की जिज्ञासाओं का समाधान होगा।गुरुदेव के सम्पूर्ण प्रवचनों एवं कक्षाओं के दृष्टान्त व द्रष्टान्तों के संकलन की महती आवश्यकता है। जिससे जैन दर्शन के गूढ़तम विषयों को जिज्ञासु जन समझ सकें। क्षुल्लक धैर्यसागर 2 Link to comment Share on other sites More sharing options...
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