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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

आमुख - सुधा की बूँदें - संकलन प्रस्तुति मुनिश्री निष्कम्पसागर जी महाराज


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सुधा की बूँदें

पीयूष वाणी -  परम पूज्य मुनिपुंगव श्री १०८ सुधासागर जी महाराज  

संकलन प्रस्तुति - मुनिश्री निष्कम्पसागर जी महाराज 

आमुख

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पूज्य गुरुदेव कहा करते है की दर्पण और दीपक कभी झूठ नहीं बोलते है | जलते हुए दीपक को कहीं भी ले जा सकते है, किन्तु अंधेरे को कहीं नहीं ले जा सकते है | अज्ञानी, ज्ञान दीपक का सामना नहीं कर सकता है | व्यसनी, दर्पण की झलक को सहन नहीं कर सकता है | जैसे दर्पण में हम जैसा देखते है, दर्पण वैसा ही स्वरूप हमें दिखाता है | ऐसे ही गुरु रूपी दर्पण में अपना चेहरा देखो तो सत्यता से परिचय हो जाता है | गुरु ऐसे ही पवित्र दीपक हैं जो भव्य जीवों को पाप रूपी अंधेरों से आत्मज्ञान रूपी प्रकाश की और ले जाते है | और हमारे जीवन को प्रकाशित करते हैं |
 
ऐसे ही हमारा पूज्य बड़े महाराज परम पूज्य मुनिपुंगव श्री सुधासागरजी महाराज, जिन्होंने अपनी स्वरूप-बोधिनी, विद्वत्तापूर्ण, दिव्य वाणी से प्रत्यक्षाप्रत्यक्ष रूप से करोड़ों भव्य जीवों के जीवन को प्रकाशित किया है | पूज्य गुरु देव की वाणी सुनकर सारी शंकाओं का समाधान हो जाता है | मात्र मन में एक ही विकल्प रह जाता है की उनकी वाणी का हमेशा साक्षात पान करता रहता |
 
परमोपकारी पूज्य गुरुदेव संतशिरोमणी आचार्य श्री विद्यासागरजी महारज ने अपना पावन आशीर्वाद प्रदान कर मुझे पूज्य मुनिपुंगव श्री के चरणो में भेजा जिसके लिए मैं अपने आपको सोभाग्यशाली मानता हूं की पूज्य गुरुदेव ने मुझ जेसे अल्पज्ञ शिष्य को ऐसे प्रबल तार्किक, अभिश्ना ज्ञानोपयोगी संत के चरणों में साधना करने योग समझा |
 
परम पूज्य मुनिवर की दिव्यवाणी भव्यजीवों के चित्त को आह्नाद प्रदान करती है | आगम से अभिसिक्त उनके मुख से नि:सृत प्रत्येक वाक्य एक सूक्ति बन जाता है | जेसे क्षीरसागर में से एक दो अंजुलि पानी का रसास्वादन कर उसके नीर का लाभ ले लिया जाता है, इसी प्रकार मेने पुज्यश्री की सर्वकल्याणकारिणी दिव्यवाणी रूपी महासमुद्र में से कुछ सूत्रवाक्य रूपी बूँदो का संचय किया है |   

 

सुधा की ये बुँदे छोटी जरूर है किन्तु बूँद-बूँद से ही सागर बनता है | सुधामृत की ये बुँदे भव्यजीव रूपी चातकों की प्यास बुझाकर उनको अलौकिक आनंद का अनुभव करायेगी, ऐसी आशा के साथ वह प्रथम संस्करण प्रकाशित किया जा रहा है | इस कृति को अपनी चंचला लक्ष्मी का उपयोग कर जयपुर निवासी श्री श्रीपाल, अजय, विजय, संजय एंव समस्त कटारिया परिवार ने सोभाग्य प्राप्त किया है ये भी साधुवाद और आशीर्वाद के पात्र है |

 

परम पूज्य गुरुवर के प्रत्यक्ष रूप में दूर होने पर भी जो अपने वात्सल्य रुपी आशीष की छांव में सदैव मुझे गुरुवत पथप्रदर्शक बने हुए हैं, ऐसे उन परम पूज्य मुनिपुंगव सुधासागर जी महाराज के श्रीचरणों में उन्ही के उद्दारों के संचयन रूप में यह कृति उनको ही समर्पित है |  

मुनिश्री निष्कम्पसागर जी महाराज 

   

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