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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

उत्तम देश भारत है जहाॅ धर्म जीवित है:-मुनि श्री विमल सागर जी


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बीना 
*उत्तम देश भारत है जहाॅ धर्म जीवित है*_
*मुनि श्री विमल सागर जी
सर्वश्रेष्ठ साधक आचार्य  श्री विद्यासागर जी महाराज के शिष्य  
मुनि श्री विमल सागर जी  महाराज(ससंघ)

 श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन मंदिर चौबीसी जिनालय बड़ी बजरिया बीना जिला सागर (मध्य प्रदेश) में विराजमान है ।
धर्म चर्चा करते हुए मुनि श्री भावसागर जी ने कहा कि सभी युवाओं को तन-मन-धन से प्रभु और गुरु की सेवा करना है कोरोना के कारण इस बार विशेष सावधानी रखना है। शासन,प्रशासन के नियमों का पालन करते हुए धार्मिक क्रियाएं हैं दुनिया में सबसे पावर फुल पॉजिटिव एनर्जी देने वाले मंत्र,स्त्रोत, जाप,शांति धारा आदि होते है। आचार्य भगवन श्री विद्यासागर जी महाराज का 53 वा मुनि दीक्षा दिवस 25 जून को पूरे विश्व के लोग मनाएंगे आप सभी को भी मनाना है। आचार्य श्री ने भाग्योदय, पूर्णायु चिकित्सालय के माध्यम से पूरे विश्व की सेवा करने का उद्देश्य बनाया है। सभी को एकता के साथ अच्छी भावना के साथ कार्य करना है। आप चौके में मास्क का प्रयोग जरूर करें। क्योंकि बोलते समय मुंह से जो कण निकलते हैं वह खतरनाक होते हैं। पाद प्रक्षालन भी चौके में अलग अलग व्यक्ति करें और चौके एवं मंदिर में साधु के चरण स्पर्श ना करें करेली में विशाल पाषाण के जिनालय का निर्माण का कार्य प्रारंभ हो गया है एवं तेंदूखेड़ा(पाटन) में मैं भी विशाल मार्बल का मंदिर बन रहा है। धर्म चर्चा में मुनि श्री विमल सागर जी ने कहा कि बीना में प्रथम बार आना हुआ है। प्रभु के दर्शन करके बहुत प्रसन्नता हुई यहां साधना की योग्य स्थान है। आपका पुण्य अवश्य बड़ेगा। यह बीना भी बीना तीर्थ क्षेत्र बन जाए। आचार्य श्री ने कहा कि बजरिया जाना है इसलिए यहां आ गए। बहुत पुण्य शाली होते हैं जिनको दिगंबर साधुओं के दर्शन मिलते हैं। वृद्ध समाज की नींव होते हैं। नींव कमजोर होती है तो कार्यों की सिद्धि नहीं होती है। अनुभवी वृद्धों का होश युवाओं का जोश महिलाओं का घोष तो धर्म का होता है जय घोष। जहां जिस की योग्यता हो ऐसा कार्य करें। मनुष्यों में कृतज्ञता गुण दुर्लभ होता है। कितना उपकार रहता है गुरुओं का माता-पिता का लेकिन हम भूल जाते हैं।  उत्तम देश भारत है जहां धर्म जीवित है। लोग अपना धर्ममय जीवन नहीं बनाते हैं। विषयों में ही निकाल देते हैं। नर काया का मिलना दुर्लभ है। कलि काल में भी यथा जात मुद्रा के धारी गुरुदेव मिले हैं। जैसे-जैसे दान,पूजा में आगे बढ़ रहे हैं वैसे ही संयम के क्षेत्र में आगे बढ़ना है। साधुओं से धर्म सुरक्षित है।

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