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मंत्र के ध्यान से अमृतदायिनी प्राण शक्ति मिलती है :- मुनिश्री भाव सागर जी


Sanyog Jagati

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02/09/2019
 *मंत्र के ध्यान से अमृतदायिनी प्राण शक्ति मिलती है - मुनिश्री*
करेली'
जिला नरसिंहपुर
मध्यप्रदेश मैं
 राष्ट्रहित चिंतक,सर्वश्रेष्ठ आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के आज्ञानुवर्ती शिष्य
मुनि श्री विमलसागर जी महाराज
ससंघ सानिध्य में
 श्री महावीर दिगंबर जैन बडा मंदिर सुभाष मैदान  मैं प्रतिदिन विभिन्न आयोजन चल रहे हैं । इस अवसर पर धर्म सभा को संबोधित करते हुए 
मुनि श्री विमल सागर जी ने कहा कि जहां विवेक नहीं रहता है वहां सारे गुण फेल हो जाते हैं । साधु के सानिध्य में जीवन में परिवर्तन होता है । श्रावक संस्कार शिविर में साधु के साथ साधना करने एवं कुछ सीखने का अवसर प्राप्त होगा।

मुनि श्री अचल सागर जी ने कहा संसारी प्राणी संसार को चाहता है । जहां दस प्रकार के लक्षण होते हैं वह दसलक्षण धर्म होते है, अगर एक लक्षण भी निकल जाए तो धर्म नहीं रहता है । जो हमारी दस दिन की जिन्दगी रहती है वहीं  365 दिन हो जाए तो सार्थकता रहेगी । परोपकारी बनो जियो और जीने दो । कर्तव्य की बात करें अधिकार की नहीं । देश, समाज , राष्ट्र के कर्तव्य को ध्यान रखें । हम लोकिक प्रयोजन को सिद्ध करते है लेकिन आत्म प्रयोजन को सिद्ध नहीं कर पा रहे हैं । 

मुनि श्री भाव सागर जी ने बताया ध्वनि जब भावना से मिलकर शब्द रूप बनती है तो उसमें एक मैगनेटिक करेंट ( चुंबकीय लहर ) उत्पन्न होती है । मंत्र के माध्यम से  ध्यान करने से अमृत दायनी प्राण शक्ति मिलती है । इन मुद्राओं से स्मरण शक्ति का विकास होता है, स्फूर्ति का अनुभव होता है, मानसिक शांति मिलती है, आत्मिक योग्यताओं का विकास होता है । प्रमाद दूर होता है, एकाग्रता बढ़ती है, स्वतंत्र व्यक्तित्व का निर्माण होता है । 

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