संयम स्वर्ण महोत्सव Posted September 22, 2017 Report Share Posted September 22, 2017 संतत्व से सिद्धत्व तक के अविराम यात्री, गतिशील साधक आचार्य श्री विद्यासागर जी दिगम्बरत्वरूपी आकाश में विचरण करने वाले एक आध्यात्मिक सूर्य हैं। भारत की पवित्र भूमि को पावन करने वाले महापुरुषों में आप एक दैदीप्यमान महापुरुष हैं। राष्ट्र, समाज एवं प्राणी मात्र के आप शुभंकर हैं। मोक्ष पिपासुओं के लिए आप शीतल व निर्मल जल की धार हैं। आपको क्या कहूँ...। आप तो साक्षात् चलते-फिरते तीर्थकर-सम भगवन्त हैं। अनेक बार दर्शनों के पश्चात् भी जिनके दर्शन की प्यास लगी ही रहती है, ऐसे आचार्यप्रवर श्री विद्यासागरजी के संयम पथ के पचास वर्ष पूर्ण होने के अवसर पर गुरु चरणों में हम गुरुचरणानुरागियों द्वारा कुछ ऐसे पुष्प अर्पण करने के भाव बने, जिनसे जन-जन का कल्याण हो सके, जो राष्ट्र निर्माण में सहायक हो सकें, संस्कृति एवं संस्कार जिनसे संरक्षित रह सकें, भारत की भारतीयता जिससे सुरक्षित रह सके। ऐसे वे पुष्प आचार्य श्री ज्ञानसागरजी द्वारा बोए गए बीज से बने आचार्य श्री विद्यासागरजी रूपी वृक्ष से झरने वाले थे, जो मोती की भाँति बिखरे थे सर्वत्र। किन्हीं की डायरियों में, किन्हीं की स्मृतियों में अथवा संस्मरणों में। अब उन्हें माला का रूप देकर अर्पण करना था गुरु चरणों में, 'तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा' की भावना से। इस भावना ने आकार पाया 'आचार्य श्री विद्यासागर पत्राचार पाठ्यक्रम' के रूप में। यूँ तो हर रचना या ग्रन्थ अपने आप में महत्वपूर्ण है, किन्तु यह पाठ्यपुस्तक साधारण नहीं है, क्योंकि इसमें समाविष्ट है। गुरु की महिमा क्या है, गुरु वचनों की पालना कैसे होती है, किस प्रकार अनुसरण करके गुरु के नाम के साथ अपनी पहचान एकाकार की जाती है। ऐसे जीवन्त उदाहरण, जिन्हें साक्षात् आचरण में उतारा गया है, जिया गया है व पालन किया गया है। आचार्य श्री विद्यासागरजी के प्रवचनों के चयनित अंश, उनके द्वारा रचित ग्रंथों में व्यक्त महत्वपूर्ण धारणाएँ व विचार, उनकी प्रेरणा और आशीर्वाद से संचालित मानव कल्याणकारी कायाँ, तीर्थीद्धार, मंदिर निर्माण व जीष्णौद्धार, राष्ट्र, संस्कृति, शिक्षा, स्वभाषा, संस्कार, शुद्ध आहार-विहार, जिनधर्मानुशासन तथा सिद्धान्तों आदि पर उनके विशिष्ट विचार, उनके द्वारा लिखित कुछ सामान्य कविताएँ एवं संक्षिप्त शब्दों में निबद्ध किंतु भावों से गहन 'हाइकू' कविताएँ अथवा विभिन्न अवसरों पर प्रकट किए गए उद्गारों तथा दिव्य देशना को ही सात पाठ्यपुस्तकों के रूप में सँजोकर इस पत्राचार पाठ्यक्रम में प्रस्तुत किया जा रहा है। 'आचार्य श्री विद्यासागर पत्राचार पाठ्यक्रम'का उद्देश्य है आचार्य भगवन्त के आहवान को जन-जन की आवाज बनाने के लक्ष्य को पूर्ण करना। जैसे, ‘भारत, भारत बने, गारत नहीं', 'अहिंसा भारत का प्राण हो', 'शिक्षा जीवन का निर्माण करे, निर्वाह नहीं', 'भारतीय संस्कृति एवं संस्कार सुरक्षित रहें', 'श्रमण धर्म अपने धर्मी में वास करे' आदि-आदि। जैन धर्म के मौलिक सिद्धान्तों के पर्याय के रूप में, जिनका जीवन है, ऐसे युगशिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागरजी के जीवन चरित्र को पढ़कर अध्येता अपने जीवन का निर्माण कर सकें। किसी ऐतिहासिक महापुरुष का जीवन चरित्र जब पढ़ते हैं तो लगता है कि एक बार, बस एक बार ही सही उनका प्रत्यक्ष दर्शन हो जाए। वर्तमान के महापुरुष का, वर्तमान में ही जीवन चरित्र प्रस्तुत कर, इस परम सौभाग्य को प्राप्त कराना भी इस पाठ्यक्रम का उद्देश्य है। सरल से दिखते इस पत्राचार पाठ्यक्रम का कार्य अत्यंत दुरूह, समय व श्रम साध्य था। इसकी सामग्री संकलित करने तथा लिखने में अनेक भव्यात्माओं का अथक श्रम समाहित है। इसमें डॉ. जयकुमार जैन, शास्त्री, मुजफ्फर नगर, उत्तरप्रदेश के साथ अनगिनत भव्यजनों का सहयोग मिला। कइयों ने सहभागिता की। कुछ ने लिखा, किसी ने सामग्री एकत्रित की, किसी ने छाँटी, अन्य ने आचार्यश्रीजी के प्रवचनों को सुना फिर संगणीकृत (कम्प्यूटराइज्ड) किया। उन सभी सहयोगियों, विद्वानों व लेखकों आदि, जिनका भी प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष इसमें सहयोग मिला, उन सबके प्रति हम कृतज्ञ हैं। पर हम जो भी हैं उसी टोली के सदस्य हैं। कौन-किसका आभार व्यक्त करे, किसके प्रति कृतज्ञ होवें। यह पाठ्यक्रम पाठकों के समक्ष प्रस्तुत हो इसके पूर्व हम गुरुणांगुरु आचार्य श्री ज्ञानसागरजी महाराज को स्मरण करते हुए, हम हमारे आराध्य आचार्य गुरुदेव श्री विद्यासागरजी महाराज के चरणों में, उनके द्वारा की गई गुरु चरण सान्निध्य की अनुभूतियों के संकलन रूप पुष्प ‘प्रणामांजलि' को समर्पित करते हुए अनंतानंत बार नमोऽस्तु निवेदित करते हैं। आचार्य संघ के चरणों में भी भक्तिभाव पूर्वक बारम्बार नमन करते हैं। कुछ भव्य प्राणी इन्हें पढ़कर मोक्षमार्ग पर प्रवृत्त हो जाएँ, किन्हीं के कषायों में कमी आ जाए, कोई-कोई के पुण्योदय से कर्मों की निर्जरा हो जाए, कोई नि:स्वार्थ भाव से लोक कल्याणकारी कार्यों में निष्काम समर्पित हो जाएँ और उनके उपयोग का शुद्धोपयोग हो जाए, तो समझो इस असाध्य श्रम की प्रतिष्ठा हो गई और पत्राचार पाठ्यक्रम का होना सार्थक हुआ। 'संयम स्वर्ण महोत्सव' की प्रस्तुति के रूप में 'आचार्य श्री विद्यासागर पत्राचार पाठयक्रम' की इस प्रथम कृति में सुधी, मनीषी एवं विद्वान् आदि समस्त पाठकगण अवगाहन करें तथा जन-जन तक इस कृति का प्रचार-प्रसार एवं आत्मलाभ हो, ऐसी शुभभावना एवं सत्प्रेरणा को स्वीकार करके जीवन को सफल, सुफल करें। इस पुस्तक के लेखन एवं सम्पादन में जो त्रुटियाँ रह गई हों, वो हमारी हैं और जो कुछ भी अच्छा है वह गुरुवर का है। गुरुचरणानुरागी 1 Link to comment Share on other sites More sharing options...
ANKURJAIN1811 Posted September 26, 2017 Report Share Posted September 26, 2017 payumoney पर payment करते समय transaction बार बार fail हो रहा है। Payment कैसे करें? Link to comment Share on other sites More sharing options...
संयम स्वर्ण महोत्सव Posted September 26, 2017 Author Report Share Posted September 26, 2017 1 minute ago, ANKURJAIN1811 said: payumoney पर payment करते समय transaction बार बार fail हो रहा है। Payment कैसे करें? फ़ैल होने का कारन देखिये - अथवा पेमेंट आप्शन change कीजिये Link to comment Share on other sites More sharing options...
ANKURJAIN1811 Posted September 26, 2017 Report Share Posted September 26, 2017 debit card और internet banking दोनों से प्रयास किया है किंतु दोनों में transaction fail हो गया। Link to comment Share on other sites More sharing options...
shailesh Posted November 24, 2017 Report Share Posted November 24, 2017 mere papa ne online registration kiya tha aur madhur courier se bheje jane ke karan vo pustak aaj tak nahi pahuchi. kripaya samadhan nikalen. aur kya ye pustak online soft copy me bhi provide nahi ki ja sakti? Link to comment Share on other sites More sharing options...
अशोक Posted December 7, 2017 Report Share Posted December 7, 2017 11 september ko registration kiya tha lekin books abhi tak nahi aayi Merchant Name: Jain Vidyapeeth Order Amount: Rs 205.00 Payment ID: 162825606 Merchant Order ID: 342787-162825606 Customer Address ashok jain,D401, Vaswani Brentwood, Vibgyor School Road, Thubarahalli, Bangalore-560066 Customer Name shilpa jain Link to comment Share on other sites More sharing options...
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