पर्यालोचन
पर्यालोचन
मनुष्य विस्मरणशील होता है और उसके जुम्मे अपने शरीर को संभाल कर रखना, बाल बच्चों का लालन-पालन करना, अभ्यागतों का सत्कार करना, बुजुर्गों का टहल करना, दीन-दु:खियों की सेवा करना, मित्र दोस्तों के साथ प्रेम से सम्भाषण करना, भगवद्भभजन करना आदि अनेक तरह के कार्य लगे हुए होते हैं। उनमें से कौन-सा कार्य किस प्रकार से आज मुझे सम्पादित करना चाहिये, कौन से कार्य सम्पादित करने में मैंने क्या गलती खाई है, कहीं मैंने मेरे तन-मन-वचन और धन के घमण्ड में आकर कोई न करने योग्य अनुचित बर्ताव तो नहीं कर डाला है, मेरे रहन-सहन में किसी गरीब भाई का किसी भी प्रकार का कोई नुकसान तो नहीं हुआ है, तथा किसी भी बुजुर्ग का मेरे से कोई अविनय तो नहीं बन पड़ा है, इस प्रकार से सोच कर देखना।
अगर कोई भी तरह की कुचेष्टा बन गयी हो तो भगवान को स्मरण कर उनके सम्मुख पश्चाताप करना और आगे के लिए कभी नहीं होने देने का दृढ़ संकल्प करना चाहिये। प्रतिदिन सुबह और सांयकाल को इस प्रकार संभाल करते रहने से मनुष्य की बुद्धि निर्मल बनी रहती है और वह सान पर चढ़ा कर तैयार की हुई तलवार के समान तीखी बनकर अपने करने योग्य कार्य को आसानी के साथ कर पा सकती है।
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