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सत्संगति का सुफल


संयम स्वर्ण महोत्सव

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सत्संगति का सुफल

 

एक बार की बात है, एक बहेलिया दो तोते लाया। उनमें से उसने एक तो किसी वेश्या को दे दिया और दूसरे को एक पण्डित जी के हाथ बेच दिया। थोड़े दिन के बाद वेश्या एक रोज महफिल करने राज दरबार में पहुंची। उसका तोता उसके हाथ में था सो पहुंचते ही राजा के सम्मुख अनेक प्रकार के भण्ड वचन सुनाने लगा। राजा को गुस्सा आया और उसने हुक्म दिया कि इसे मार डाला जावे। तोता बोला - हुजूर! मैं मारा तो जाऊँगा ही परन्तु इससे पहले मुझे मेरे भाई से मिला दीजिये। राजा ने कहा तेरा भाई कहाँ है? तोते ने कहा ! गिरधरजी शर्मा के यहाँ रहता है। उसी समय राजदूत गया और मय तोते के गिरधरजी शर्मा को बुला लाया। गिरधर जी शर्मा तो बोले ही नहीं उनके पहिले ही उनके तोते ने आते ही राजा को अनेक तरह के शुभाशीर्वाद दिये, राजा बहुत खुश हुआ। सहसा राजा के मुँह से निकल पड़ा कि शाबाश! जीते रहो तुम और तुम्हारी साथी। वेश्या वाले तोते ने कहा कि तब फिर तो में भी अब अमर बन गया क्यों इसका साथी तो मैं ही हूँ। राजा असमन्जस में पड़ गया तो पंडितजी वाले तोते ने वकालत की कि प्रभु इसमें विचारने की क्या बात है? यह दुष्ट है, सचमुच इसने आपके साथ बुरा बर्ताव किया है, किन्तु आप तो सज्जनों के सरदार हैं, आपका तो काम बुरा करने वालों के साथ भी भला बर्ताव करना ही होना चाहिए। पृथ्वी के पूत, पेड़ों का भी यही हिसाब है कि वे लोग पत्थर मारने वालों को भी उसके बदले में मीठा फल प्रदान किया करते हैं। आप तो पृथ्वी के पति हैं, सम्पूर्ण प्रजा के नाथ हैं, आपका तो सभी के साथ प्रेम होना चाहिए हाँ! अब भी यदि सचेत होगा तो आगे के लिए आने इस दुर्व्यवहार का त्याग कर सही मार्ग का अनुसरण करेगा, बस इतना ही कहना पर्याप्त है।

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