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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
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ज्ञान प्राण है - आचार्य विद्यासागर जी द्वारा रचित हायकू ३


संयम स्वर्ण महोत्सव

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haiku (3).jpg

 

ज्ञान प्राण है,

संयत हो त्राण है,

अन्यथा श्वान|

 

भावार्थ - ज्ञान जीव का त्रैकालिक लक्षण है। कर्म योग से सांसारिक दशा में वह ज्ञान सम्यक् और मिथ्या, दोनों प्रकार का हो सकता है सम्यग्ज्ञान भी व्रती और अव्रती के भेद से दो प्रकार का होता है। आचार्य भगवन् ने यहाँ संयमी जीव के ज्ञान के विषय में कहा है कि संयमी का सम्यग्ज्ञान संसार-सागर से पार लगा देता है लेकिन मिथ्यादृष्टि का ज्ञान श्वान अर्थात् कुत्ते के समान पर पदार्थों का रसास्वाद लेते हुए व्यर्थ हो जाता है और जीव को चौरासी लाख योनियों में भटकता रहता है । 

आर्यिका अकंपमति जी 

हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।

 

आओ करे हायकू स्वाध्याय

  • आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं।
  • आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं।
  • आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं।

लिखिए हमे आपके विचार

  • क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं।
  • इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?

2 Comments


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ज्ञनमेही हमारेजिवन कालक्षहै और संयमहि जीवन है संयम नही तो जीवन कुत्ते के समान है

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