छोटी दुनिया,
काया में सुख दुःख,
मोक्ष नरक |
भावार्थ - जिसकी दृष्टि में दुनिया बहुत छोटी है और जो दुनिया में रहकर भी बहुत छोटा है अर्थात् अपनी आत्मा में स्थित होकर उसने अपनी दुनिया को समेट लिया है तो उसे शीघ्र ही मोक्ष प्राप्त हो जायेगा । आत्मा से बढ़कर कुछ नहीं है । शेष सब पदार्थ मूल्यहीन हैं, ऐसा मानकर जो जीर्ण- शीर्ण तिनके के समान पर पदार्थों का त्याग कर देता है, वह मोक्ष का पात्र होता है किन्तु जो दुनिया को अपने पैरों की धूल समझकर अपने को ही सब कुछ मानता है तो वह नरक जात
जुड़ो ना जोड़ो,
जोड़ा छोड़ो जोड़ो तो,
बेजोड़ जोड़ो।
भावार्थ आचार्य भगवन् का यह सूत्र पूर्णतः आध्यात्मिकता से जुड़ा हुआ है । यहाँ जुड़ो और जोड़ो से तात्पर्य अपनी आत्मा के अतिरिक्त सम्पूर्ण जड़-चेतन पदार्थों से मन-वचन-काय पूर्वक पूर्ण या आंशिक सम्बन्ध स्थापित करना है । अतः संसारी प्राणी सुख चाहता है तो उसे मन- वचन-काय से चेतन परिग्रह एवं जड़-पदार्थ, धन-सम्पदा आदि से अपनत्व भाव नहीं रखना चाहिए। अज्ञान दशा में जिन जड़-चेतन पदार्थों से ममत्व भाव रखकर सम्बन्ध स्थापित किया था, उसे पूर्