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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

Nirmala sanghi

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Comments posted by Nirmala sanghi

  1. गुब्बारे में हवा भरी नीले और पीले में 

    गुरुवरका यह प्रवचन बहुत ही मार्मिक लगा काश हम आचार्य श्री के प्रवचन को उनके समक्ष ही सुन पाते ऐसे ही अनुष्ठान कराने वाले और अनुष्ठान में भाग लेने वालों को जितना फल मिल रहा है उतना ही 

     

     हे गुरुवर तेरी शिष्या बनू मैं हर पल तेरे साथ रहूं मैं

    निर्मला सांघी

    महल योजना 

    जयपुर

  2.  हे गुरुवर तेरे चरणों मे 

    मैंतेरे साथ रहूं मैं हे गुरुवर तेरे चरणों मे

    सावन के महीने में आएगी जब राखी 

    तू राखी तेरा धागा बनू मैं

    हर पल तेरे साथ रहूं मैं

  3. जय जिनेंद्र 

    अहिंसापरमो धर्म की जय 

    मेरेगुरुवर आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज की जय जय जय 

    शीर्षक:- पतित से पावन बनाने की कला 

    आचार्यभगवन कहते हैं कि

    हम पर आश्रित नहीं बनै।जगाएं अपने आत्म पुरुषार्थ को जैसे कुंडलपुर के बरसाती झरने में एक मछली बिन पैरों के भी झरने  का सहारा लेकर दौड़ रही थी सरपट ऊपर ।

    तोहमें भी जितना धन मिला है हम उसे संग्रहित न करके पहुंचा दे ऊपर ।

    एकसमय में  सिद्धालय में पहुंच जाते हैं ।

    हम भी अपनी आवश्यकता को पूरी कर थोड़ा सा जोर लगाकर अपना धन पहुंचा दे ऊपर यानी दान दक्षिणा में।

    तप और त्याग की शक्तियों से अपने पुरुषार्थ को जगाएं ।

    उत्साहको आगे बढ़ाएं।

    अपनी शक्ति को संग्रहित करें ।

    तभी हम पतित से पावन बन सकते हैं और हमारा विकास अवश्य होगा। बलवती शक्ति के लक्षण होते हुए भी मछली के समान आतम पुरुषार्थ कर सिद्धालय पहुंचना ही होगा।

     

     गुरुदेव श्री विद्यासागर जी महाराज की जय।

  4. हम वंदन करते हैं अभिनंदन करते हैं गुरु सम बन जाने को अभिनंदन करते हैं। हम वंदन करते हैं गुरुवर श्री विद्यासागर जी महाराज के चरणारविंद में मन से वचन से काय स मेरा एवं मेरे परिवार के प्रत्येक सदस्य का साक्षात वंदन नमन नमो स्तवन नमोस्तु आचार्य भगवन 

    आचार्यभगवन नमोस्तु 

    आचार्यभगवन नमोस्तु

  5. आचार्य गुरुवर श्री विद्यासागर जी महाराज के चरणों में नमन

    शीर्षक है 

    मनएवं 5 indriya keविषयों पर नियंत्रण रख कर भगवान बनने की ओर अग्रसर होना पुरुषार्थ करना

     

     

    मन रूपी घोड़े पर लगाम थामकर जब हम बैठेंगे तभी हम आगे बढ़ पाएंगे जैसे कि घुड़सवार अपने पैर रखने के साधन को स्थिर रखता है और पीठ व गर्दन के बीच नियंत्रण रखता है।

    उसी प्रकार हम को अपने मन के साथ पांचों इंद्रियों पर नियंत्रण रखना पड़ेगा इसके बिना हम आगे नहीं बढ़ सकते वहांगु गुरुदेव का आशीर्वाद भी वहां काम नहीं कर सकता ।

    हमअपने आप को भगवान बनाना चाहते हैं 

    अभीतो हम बागवान भी नहीं बने ।

    हमसही समय पर पुरुषार्थ कर सके 

    सच्चापुरुषार्थ कर सके ।

    इसकेलिए हमें मन एवं पंचेंद्रिय विषयों को अपने नियंत्रण में लेकर आत्म साधना काअवलंबन बनाना होगा 8स स्पर्श के  5 रस 2 घाण 5 चक्षु और कर्ण के शब्द इन पर हमें नियंत्रण करना होगा ।

    शब्दोंमें बहुत बौध है लेकिन फिर भी मन को संगीत अच्छा लगता है ।

    हमक्या हैं मन के गुलाम क्योंकि हमें कीर्ति यशोगान सदकार पुरस्कार यही सब अच्छा लगता है ।

    हमको यदि भगवान बनना है तो हमें प्रशंसा से दूर रहकर अपने मन व पांचों इंद्रियों पर हुकूमत करते हुए मन को आस्था के माध्यम से दृढ़ करना होगा।

    स्वयं के निज 

     के उपादान को जागरण के बिना हम अपने मन रूपी घोड़े पर लगाम नहीं लगा सकते।

    जब मां जबरस्ती दूध पिलाती है तब मन गुटकता नहीं उल्टी हो जाती है तब भूख लगती है तो मन समझता है मेरी शक्ति का दुरुपयोग है परंतु यदि हम मन को प्रशिक्षित करें मन के विचार आई लगाम लगावे तो हम भी अपने आप को मन के माध्यम से नियंत्रित कर सकते हैं अतीत की घटना व कर्म उदय में आते रहते हैं तो बे लगाम को पछाड़ कर अपना रूप दिखा देता है । ऊपर बैठने के बाद पैर रखने के बाद साधन रखता है ताकि वह एक से मन भाग्य तब भी व्यस्त रह सके खड़ा रह सके खड़ा रहने की क्षमता सके उससे पेट में गर्दन के बीच नियंत्रण रखता है तो हमें भी अपने मन रूपी घोड़े को नियंत्रण में रखता है पिंडली भरोसा करके रख

    परंतुयदि उस पर बैठने वाला हमारा मन भगवान बनाना चाहता है तो हमें पंचेंद्रिय के व्यापारियों को मन के माध्यम से लगाम कस कर मोक्ष मार्ग की ओर अग्रसर होना पड़ेगा ।

    जयजिनेंद्र

  6. जय जिनेंद्र

    गुरुसंत शिरोमणि श्री विद्यासागर जी महाराज का आज का 3 अगस्त का प्रवचन बड़ा मार्मिक है वह कहते हैं कि मोक्ष मार्ग संबंधी मान्यताओं में हमको अनुभव से काम लेना चाहिए जैसे कि चाय पत्ती से बार-बार स्वादिष्ट चाय नहीं बना सकते।

     

    और उस में दूध डालने से ही चाय का असली स्वाद आता है।

    इसी प्रकार हमको शुभ कर्म करते हुए अनुभव में अपनी मान्यता को बढ़ावा देना चाहिए। दर्शन और ज्ञान के द्वारा हम अपने अनुभव को प्रगाढ़ कर सकते हैं। अनुभव के अभाव में हमारी मान्यता गलत रहती है। निर्मला सांघी जयपुर

  7. धन्य हो गया जीवन मेरा सुने गुरु के प्रवचन आज महकामेरा जीवन देखो संयम कि मैं कर दो बरसात

     

    अपनेजीवन में अब मैं भी संयम धारण कर लो 

    जैसागुरु जी बता रहे हैं वैसा जीवन अपना लूं।

     

     कब शुभ घड़ी मेरी आएगी  संयम मय अपना मन को करो नियंत्रण में रसों का त्याग में भी कर दो गुरुवर तेरे दर्शन पाऊं अब तो पास बुला लो ना

    Nirmala sangee महलYojana Jaipur

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