मेरी आचार्य श्री से मुलाकात सर्वप्रथम अमर कंटक में मैने दर्श से प्रारंभ की थी तत्पश्च्यात् रेहली पटनागंज से कुंडलपूर् होती मेरी यात्रा गुरुदेव संग पुनः अमरकंटक पंचकल्याणक में पुनः आचार्य श्री जी के दर्शन प्राप्त हुए
उसके बाद मुझे मेरी जन्मभूमि पर आचार्य गुरुदेव श्री विद्यासागर जी महामुनिराज के दर्शन करने एवं आहार दृश्य देखने का सौभाग्य मिला । कुंडलपूर पंचकल्याणक में मैंने अनेकों बार गुरु दर्श को पाया। इसके पश्यात् पुनः हमें आचार्य श्री के दर्शन चंदगिरि तीर्थक्षेत्र डोंगरगढ़ में अनेकों एवं अंतिम बार दर्श हुआ ।
गुरुदेव के जाने से आज मन व्यथित हो गया हैं गुरुवर विद्यासागर जी हमेशा हमारे बीच में नवीन आचार्य श्री समय सागर जी के रूप में रहेंगे । आज में अंतिम यात्रा में शामिल नहीं हो पाया मगर गुरुवर की याद में कुछ चंद पंक्तियाँ लिखी जिसे मैं यहाँ व्यक्त करना चाहता हूँ,
"नयनों में आँसू जो छोड़ चले हैं
यादों को हमारी नया मोड़ दे चले हैं
वचनमयी चैतन्य मयी काया से हमको
कर चैतन्य,मन हमारा खुद से जोड़ चले हैं
आतम से परमातम् तक का सफर
जिन्होंने तय संयम से किया धारण है
जिनके जाने से हर आत्मा दुखी है
लेकर नाम करके याद हर मन परायण है
विद्याधर से विद्यासागर की यात्रा
शिष्यों भक्तों के साथ निश्वार्थ तय करी है
हृदय में छोड़ कर स्मृतियाँ जो सदा को
मोक्ष की डगर को जिनने प्राप्त करी है
आचरणों को जिन्होंने भक्तों को प्रदान कर
राह राही की संयम के पथ में साथी हो गये
सिद्धत्व की राह चुनकर जिनने स्वयं में
सिद्धों की यात्रा के यात्री को अनुगामी हो गये
हम भी विद्यासागर सा आत्मपद को
पाकर मोक्षमार्ग में सदा गमन करें
आज गुरुवर की अंतिम यात्रा में
होकर सम्मिलित गुरुवर को हम नमन करें।"
आचार्य श्री के चरणों में कोटि कोटि नमन
नमोऽस्तु गुरुदेव ।
गुरूचरणानुरागि श्रेयांश जैन जबेरा दिल्ली