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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

Ekta singhai

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  1. अनेक महापुरूषों की जन्म,तपस्या,निर्वाण स्थली रहे धर्मप्रधान भारत देश में युग के महापुरूष,विश्व विख्यात,महान तपस्वी,महाकवि दि.जैनाचार्य श्री विघासागर जी महाराज उनकी जीवन चर्या सामान्य जन मानस के अंधेरे जीवन में उज्जवल प्रकाश की किरण है उनके गुरूजी ज्यानसागर जी ने आज के दिन ऐसा दिया जलाया जिसने सारी दुनिया रोशन कर दीआपने विशाल गुरूकुल का निर्माण,मूकमाटी जैसे महाकाव्य सहितअनेकों काव्य कृतियों का सृजन करके साहित्य परम्परा को आगे बढ़ाया,युवा शक्ति को सन्मार्ग पथ पर चलने हेतु ब्राह्मी विघा आश्रम,बच्चियों के लिये प्रतिभा स्थली,भाग्योदय,दयोदय,पूरी मैत्री,हथकरघा,भारत को भारत कहे इन्डिया नही,ऐसे बहुत सारे संस्थान खुलवाने वाले इकलौते संत है संतत्व से सिद्धत्व तक के अविरामी यात्री, गतिशील साधक ,दिगम्वरत्वरूपी आकाश में विचरण करने वाले आप एक आध्यात्मिक सूर्य है! आपको क्या कहूं ------! आप तो साक्छात चलते फिरते तीर्थंकर सम भगवन्त है! अनेक बार दर्शनों के पश्चात भी जिनके दर्शन की प्यास लगी रहती है आप मुंगावली आये मेराभाग्य चमक गया आपके हाथ सदा मेरे सर पर रहे गुरूवर मैं भी अंतिम सांसों तक आपका नाम लेकर इस स्त्री पर्याय का छेदन करू मेरा भी संयम लेने का भाव पूर्ण हो !गुरूवर मुझे तुम अपना बना लो ,चरणोंमें थोड़ी सी मुझको जगह दो एहसान न भूलूंगी गुरू चरणों की दासानुदासी नमोस्तु,नमोस्तु,नमोस्तु अनेक महापुरूषों की जन्म,तपस्या,निर्वाण स्थली रहे धर्मप्रधान भारत देश में युग के महापुरूष,विश्व विख्यात,महान तपस्वी,महाकवि दि.जैनाचार्य श्री विघासागर जी महाराज उनकी जीवन चर्या सामान्य जन मानस के अंधेरे जीवन में उज्जवल प्रकाश की किरण है उनके गुरूजी ज्यानसागर जी ने आज के दिन ऐसा दिया जलाया जिसने सारी दुनिया रोशन कर दीआपने विशाल गुरूकुल का निर्माण,मूकमाटी जैसे महाकाव्य सहितअनेकों काव्य कृतियों का सृजन करके साहित्य परम्परा को आगे बढ़ाया,युवा शक्ति को सन्मार्ग पथ पर चलने हेतु ब्राह्मी विघा आश्रम,बच्चियों के लिये प्रतिभा स्थली,भाग्योदय,दयोदय,पूरी मैत्री,हथकरघा,भारत को भारत कहे इन्डिया नही,ऐसे बहुत सारे संस्थान खुलवाने वाले इकलौते संत है संतत्व से सिद्धत्व तक के अविरामी यात्री, गतिशील साधक ,दिगम्वरत्वरूपी आकाश में विचरण करने वाले आप एक आध्यात्मिक सूर्य है! आपको क्या कहूं ------! आप तो साक्छात चलते फिरते तीर्थंकर सम भगवन्त है! अनेक बार दर्शनों के पश्चात भी जिनके दर्शन की प्यास लगी रहती है आप मुंगावली आये मेराभाग्य चमक गया आपके हाथ सदा मेरे सर पर रहे गुरूवर मैं भी अंतिम सांसों तक आपका नाम लेकर इस स्त्री पर्याय का छेदन करू मेरा भी संयम लेने का भाव पूर्ण हो !गुरूवर मुझे तुम अपना बना लो ,चरणोंमें थोड़ी सी मुझको जगह दो एहसान न भूलूंगी गुरू चरणों की दासानुदासी नमोस्तु,नमोस्तु,नमोस्तु
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