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संयम स्वर्ण महोत्सव

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Blog Entries posted by संयम स्वर्ण महोत्सव

  1. संयम स्वर्ण महोत्सव
    युवा कपोल,
    कपोल-कल्पित है,
    वृद्ध-बोध में।
     
    हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।
     
    आओ करे हायकू स्वाध्याय
    आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार
    क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  2. संयम स्वर्ण महोत्सव
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    वात्सल्य अंग का प्रभाव आचार्यश्री खजुराहो, 22 सितम्बर दयोदय महासंघ के लोगों ने हमारे सामने एक चित्र रखा था इस चित्र को देख कर हम तो गदगद हो गए। इस चित्र में एक गैया है उसके बड़े बड़े सींग है यह गाय एक घर के सामने कुछ खाने पीने के लिये सीढियों तक चली गई थी। उसी समय उस घर का एक छोटा सा नादान यथाजत बालक आकर उस गाय के दोनो सींग के बीच मे बिना डरे लेट जाता है और गाय भी उसे वात्सल्य देती है। आप लोग इतनी सहजता से वह चित्र देख लेते तो मालूम पड़ जाता कि गोवत्स क्या होता है आप इस चित्र को देख लीजिये ऐसा ही सौहार्दिक प्रेम वात्सल्य सभी साधर्मियों के प्रति हो जाए तो फिर स्वर्ग धरती पर उतर आ जाए यह वात्सल्य अंग का प्रभाव है
     
     
     
    प्रस्तुति : राजेश जैन भिलाई
    www.Vidyasagar.Guru
     
     
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  3. संयम स्वर्ण महोत्सव
    कब और क्यों,
    जहाँ से निकला सो,
    स्मृति में लाओ |
     
     
    हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।
     
    आओ करे हायकू स्वाध्याय
    आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार
    क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। सके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  4. संयम स्वर्ण महोत्सव
    ज्ञान सदृश,
    आस्था भी भीती से सो,
    कंपती नहीं |
     
     
    हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।
     
    आओ करे हायकू स्वाध्याय
    आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार
    क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। सके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  5. संयम स्वर्ण महोत्सव
    दवा तो दवा,
    कटु या मीठी जब,
    आरोग्य पान |
     
     
    हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।
     
    आओ करे हायकू स्वाध्याय
    आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार
    क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। सके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  6. संयम स्वर्ण महोत्सव
    दायित्व भार,
    कंधो पर आते ही,
    शक्ति आ जाती |
     
     
    हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।
     
    आओ करे हायकू स्वाध्याय
    आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार
    क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। सके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  7. संयम स्वर्ण महोत्सव
    सामायिक में,
    करना कुछ नहीं,
    शांत बैठना |
     
     
    हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।
     
    आओ करे हायकू स्वाध्याय
    आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार
    क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। सके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  8. संयम स्वर्ण महोत्सव
    ग्वालियर. ८ जनवरी २०१७।  
    प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ७ जनवरी २०१८ को टेकनपुर स्थित सीमा सुरक्षा बल अकादमी (सीसुब अकादमी)  में पुलिस महानिदेशकों और पुलिस महानिरीक्षकों के सम्मेलन में भाग लेने ग्वालियर पधारे थे, ८ जनवरी २०१8 को उन्होंने सम्मेलन के समापन समारोह को संबोधित किया और नयी दिल्ली प्रस्थान से पहले ग्वालियर हवाई अड्डे पर उन्हें संत शिरोमणि आचार्य श्री १०८ विद्यासागर जी महाराज की दीक्षा के स्वर्ण जयंती वर्ष के अवसर आयोजित संयम स्वर्ण महोत्सव के अंतर्गत संचालित पत्राचार पाठ्यक्रम की दूसरी पुस्तक “अनिर्वचनीय व्यक्तित्व” की प्रथम प्रति भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), ग्वालियर जिला (ग्रामीण) के अध्यक्ष श्री वीरेन्द्र जैन द्वारा भेंट की गई। प्रधानमंत्री को पुस्तक के सम्बन्ध में जानकारी दी गई, जिस पर उन्होंने प्रसन्नता व्यक्त की और वे एक प्रति अपने साथ लेकर भी गए।  इस संक्षिप्त कार्यक्रम की संयोजना राष्ट्रीय संयम स्वर्ण महोत्सव समिति के मुख्य कार्यकारी श्री प्रबोध जैन (ग्वालियर) ने की। 
     
    चित्र में माननीय प्रधानमन्त्री जी को पुस्तक भेंट करते हुए भारतीय जनता पार्टी, ग्वालियर जिला (ग्रामीण) के अध्यक्ष श्री वीरेन्द्र जैन और साथ में हैं मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान एवं अन्य गणमान्य व्यक्ति।
     
     
     
     
     
     
     
  9. संयम स्वर्ण महोत्सव
    मनोनुकूल ,
    आज्ञा दे दूँ कैसे दूँ,
    बँधा विधि से |
     
    हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।
     
    आओ करे हायकू स्वाध्याय
    आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार
    क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  10. संयम स्वर्ण महोत्सव
    अशुद्धि मिटे ,
    बुद्धि की वृद्धि न हो,
    विशुद्धि बढ़े।
     
    हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।
     
    आओ करे हायकू स्वाध्याय
    आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार
    क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  11. संयम स्वर्ण महोत्सव
    है का होना ही,
    द्रव्य का स्वभाव है,
    सो सनातन।
     
    हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।
     
    आओ करे हायकू स्वाध्याय
    आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार
    क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  12. संयम स्वर्ण महोत्सव
    द्वेष से बचो,
    लवण दूर् रहे,
    दूध न फटे |
     
    भावार्थ- जिस प्रकार लवण अर्थात् नमक के सम्बन्ध से दूध विकृत हो जाता है उसी प्रकार द्वेष करने से जीव विकृत-सारहीन और दुःखमय हो जाता है क्योंकि द्वेष करने से इस लोक में मधुर सम्बन्ध भी कड़वे हो जाते हैं। मित्र भी शत्रु बन जाते हैं। यहाँ तक कि अपने भी पराये हो जाते हैं तथा द्वेष करने वाला पाप कर्म का बंध करता है अतः परलोक में भी दुःखी रहता है  - आर्यिका अकंपमति जी 
     
    हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।
     
    आओ करे हायकू स्वाध्याय
    आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार
    क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  13. संयम स्वर्ण महोत्सव
    पराश्रय से,
    मान बोना हो, कभी,
    दैन्य-लाभ भी।
     
    हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।
     
    आओ करे हायकू स्वाध्याय
    आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार
    क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  14. संयम स्वर्ण महोत्सव
    भारत भूमि के प्रखर तपस्वी, चिंतक, कठोर साधक, लेखक, राष्ट्रसंत, दिगम्बर जैनाचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज की दीक्षा के ५० वर्ष जून २०१८ में पूरे होने हैं । इसे 'संयम स्वर्ण महोत्सव' के रूप में देशभर में मनाया जा रहा है। इस उपलक्ष्य में साल भर अनेक कार्यक्रम पूरे भारतवर्ष के विभिन्न नगरों एवं ज़िलों में हो रहे हैं। इन दिनों चातुर्मास हेतु  आचार्य श्री जी रामटेक, नागपुर में विराजमान हैं और प्रतिदिन हज़ारों की संख्या में देश और विदेशों से भक्तगण उनका आशीर्वाद प्राप्त करने पहुँच रहे है,  भारत के राष्ट्रपति महामहिम श्री रामनाथ कोविंद जी ने भी आज अपनी व्यस्त दिनचर्या से कुछ बहुमूल्य समय आचार्य जी के सान्निध्य में बिताया और उनसे भारत और भारत के जनसामान्य के उत्थान, हथकरघा, स्वाबलंन व भारतीय भाषाओं के संरक्षण आदि विषयों पर चर्चा की । राष्ट्रपति कोविंद जी स्वयं प्रेरणा एवं ज्ञान के स्त्रोत हैं, उनकी और आचार्य जी की एक साथ श्री शांतिनाथ दिगंबर जैन अतिशय क्षेत्र, रामटेक के मंदिर में उपस्थिति, इस पावन भूमि के इतिहास में अविस्मर्णीय रहेगी  । राष्ट्रपति जी ने आचार्य जी को श्रीफल भेंट कर आशीष ग्रहण किया।    
     
    संत आचार्य श्री जी ज्ञानी, मनोज्ञ तथा वाग्मी साधु हैं और साथ ही साथ में प्रज्ञा, प्रतिभा और तपस्या की जीवंत-मूर्ति भी हैं । कविता की तरह रम्य, उत्प्रेरक, उदात्त, ज्ञेय और सुकोमल व्यक्तित्व के धनी हैं विद्यासागर जी महाराज। राष्ट्रपति जी के साथ उनके साथ उनके बड़े भाई ने भी गुरुदेव के दर्शन कर आशीर्वाद प्राप्त किया। महाराष्ट्र के राज्यपाल श्री सी विद्यासागर राव जी, केंद्रीय मंत्री श्री नितिन गडकरी व महाराष्ट्र के यशस्वी मुख्य मंत्री श्री देवेंद्र फडणवीस ने भी आशीर्वाद प्राप्त किया। राष्ट्रपति जी व अन्य गणमान्य व्यक्तियों ने गुरुदेव के दर्शन करने के बाद प्रसन्नता व्यक्त की। 
     
    इस दिनों भारत के सभी प्रमुख जैन मंदिरों में आचार्यश्री के विशेष संगीतमय पूजन का आयोजन हो रहा है। नगर-नगर वृक्षारोपण किया जाएगा, अस्पतालों/अनाथालयों/वृद्धाश्रमों में फल एवं जरूरत की सामग्री का वितरण, जरूरतमंदों को खाद्यान्न, वस्त्र वितरण आदि का आयोजन भी किया जा रहा है। 
     
     
  15. संयम स्वर्ण महोत्सव
    वर्षा के बाद,
    कड़ी मिट्टी सी माँ हो,
    दोषी पुत्र पे।
     
    भावार्थ - जैसे खेत की सूखी मिट्टी वर्षा होने के बाद पुनः मृदु होकर एक समान हो जाती है । उसीप्रकार माँ पुत्र को अनुशासित करने के लिए दण्डित भी करती है परन्तु कुछ देर पश्चात् पुनः मातृत्व से भरकर मृदु हो जाती है। 
    - आर्यिका अकंपमति जी 
     
    हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।
     
    आओ करे हायकू स्वाध्याय
    आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार
    क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  16. संयम स्वर्ण महोत्सव
    ज्ञेय चिपके,
    ज्ञान चिपकाता सो,
    स्मृति हो आती।
     
    भावार्थ - आत्मा ज्ञान गुण के द्वारा जानता है । आत्म द्रव्य ज्ञायक पिण्ड है। ज्ञान में अनन्त ज्ञेय आते हैं । ज्ञान, ज्ञान रूप परिणमन करता है अर्थात् ज्ञेय ज्ञान में आता तो है पर वे स्वयं चिपकते नहीं बल्कि आत्मा का जाननहारा ज्ञान गुण उन्हें चिपकाता है । उन (जानने योग्य) ज्ञेय पदार्थों को जानते हुए यदि स्मृति में लाकर हम उनमें राग द्वेष करते हैं तो वे अनन्तकालीन संसार की यात्रा हमें करा देते हैं क्योंकि ज्ञान गुण जबरदस्ती आत्मा को प्रेरित नहीं करता । वह तो निष्क्रिय है | ज्ञान- दर्शन रूप संवेदित होने पर आत्मा स्वयं सुख रूप परिणमन करता है। अतः ज्ञान को शान्त बनाओ, ज्ञेय तो आते-जाते रहते हैं। जानकर भी नहीं जाने, यही सही पुरुषार्थ है । यही सीखने से श्रमण बनते हैं । यही शुद्धोपयोग की भूमिका में निरत गुरुदेव सभी शिष्यों को निर्देशन देते हैं । 
    - आर्यिका अकंपमति जी 
     
    हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।
     
    आओ करे हायकू स्वाध्याय
    आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार
    क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  17. संयम स्वर्ण महोत्सव
    मद का तेल,
    जल चुका सो बुझा,
    विस्मय दीप।
     
    भावार्थ- जब कोई व्यक्ति नई अनोखी वस्तु या स्थिति को पहली बार देखता है तो उसे मोह के सद्भाव में आश्चर्य अथवा विस्मय होता है लेकिन जो केवलज्ञानी, सर्वज्ञ होते हैं उनके मोहनीय कर्म का पूर्ण अभाव हो जाने से उनके निर्मल ज्ञान में तो सम्पूर्ण चराचर पदार्थ और उनकी त्रैकालिक सभी पर्याएँ स्पष्ट झलकती हैं । अतः उन्हें विस्मय नहीं होता । जिसप्रकार दीपक का तेल समाप्त होने पर दीपक बुझ जाता है उसीप्रकार मद-मोह रूपी तेल के समाप्त होने पर मोहनीय कर्म का नाश हो जाता है और तत्पश्चात् केवलज्ञान प्रकट हो जाता है। 
    - आर्यिका अकंपमति जी 
     
    हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।
     
    आओ करे हायकू स्वाध्याय
    आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार
    क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  18. संयम स्वर्ण महोत्सव
    इष्ट-सिद्धि में,
    अनिष्ट से बचना,
    दुष्टता नहीं।
     
    भावार्थ - किसी भी कार्य की सिद्धि में बाधक कारणों का अभाव एवं साधक कारणों का सद्भाव आवश्यक है इसलिए अपने इष्ट कार्य की सिद्धि में अनिष्ट कार्यों से बचना अनुचित नहीं है। गाँधीजी के तीन बंदर अनिष्ट से बचने का ही संकेत कर रहे हैं । 
    - आर्यिका अकंपमति जी 
     
    हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।
     
    आओ करे हायकू स्वाध्याय
    आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार
    क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  19. संयम स्वर्ण महोत्सव
    आँखें लाल है,
    मन अन्दर कौन,
    दोनों में दोषी ?
     
    भावार्थ - आँखों का लाल होना क्रोध करने का प्रतीक है लेकिन मजेदार बात यह है कि आँखों को तो क्रोध आता नहीं। क्रोध तो मन का विकार है पर मन लाल नहीं होता । वस्तुतः सर्वप्रथम द्वेष के सद्भाव से मन में क्रोध का संचार होता है तत्पश्चात् उसके प्रभाव से आँखों में लालिमा प्रकट होती है । यदि मन में क्रोध न हो तो आँखें लाल कैसे होंगी? अतः इससे स्वयमेव स्पष्ट हो जाता है कि आँखों के लाल होने का मुख्य कारण आँखें नहीं हैं बल्कि मन का विकार है ।
    - आर्यिका अकंपमति जी 
     
    हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।
     
    आओ करे हायकू स्वाध्याय
    आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार
    क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  20. संयम स्वर्ण महोत्सव
    प्रभु ने मुझे,
    जाना माना परन्तु,
    अपनाया ना।
     
    भावार्थ- सर्वज्ञत्व को प्राप्त करने पर भगवान् को चराचर पदार्थों को देखने और जानने की शक्ति प्राप्त हो जाती है लेकिन वे उन पदार्थों पर आसक्त नहीं होते। भगवान् ने मुझे अपने दिव्य ज्ञान से देखा भी है, जाना भी है परन्तु अपनाया नहीं क्योंकि वे मोह से पूर्णतः मुक्त हैं जबकि अपनाना मोहनीय कर्म के प्रभाव से ही संभव होता है । 
    - आर्यिका अकंपमति जी 
     
    हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।
     
    आओ करे हायकू स्वाध्याय
    आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार
    क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  21. संयम स्वर्ण महोत्सव
    परिचित भी,
    अपरिचित लगे,
    स्वस्थ्य ध्यान में (बस हो गया)।
     
    भावार्थ - आत्मा में स्थित ध्यानस्थ-साधक शुद्ध आत्म रस में निमग्न होता है । उस समय उसकी परम वीतरागी अवस्था होती है । वह राग-द्वेष, अपने-पराये आदि के भेद रूप प्रपञ्च से सर्वथा मुक्त रहता है । अतः उसे परिचित व अपरिचित सभी एक समान प्रतीत होते हैं । 
    - आर्यिका अकंपमति जी 
     
    हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।
     
    आओ करे हायकू स्वाध्याय
    आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार
    क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  22. संयम स्वर्ण महोत्सव
    टिमटिमाते,
    दीपक को भी देख,
    रात भा जाती।
     
    भावार्थ - जिस प्रकार सघन अंधकारमय पूर्ण रात्रि किसी को भी सुहावनी नहीं लगती। कई व्यक्ति तो अंधकार देखकर भयभीत भी हो जाते हैं, पर उन्हें दिन के प्रकाश में किसी प्रकार का भय नहीं लगता है । यद्यपि रात्रि काल में सूर्य तो नहीं उगाया जा सकता है तथापि उस व्यक्ति को छोटे से दीपक का प्रकाश भी भय मुक्त कर देता है । उसी प्रकार भटकते हुये व्यक्ति को थोड़ा-सा ज्ञान, भयभीत व्यक्ति को थोड़ी-सी हिम्मत और दुःखी, दरिद्र, रोगी, गिरते हुये व्यक्ति को थोड़ा-सा भी सहयोग मिल जाये तो वह परिस्थिति से मुक्त होकर निश्चित हो जाता है । इसका दूसरा अर्थ यह भी निकलता है कि इस काल में केवलज्ञानी रूप सूर्य का अभाव है पर सम्यग्ज्ञानी गुरुदेव रूपी दीपक के सद्भाव में जीवन आनन्दित हो जाता है ।
    - आर्यिका अकंपमति जी  
     
    हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।
     
    आओ करे हायकू स्वाध्याय
    आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार
    क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  23. संयम स्वर्ण महोत्सव
    तीर्थंकर क्यों,
    आदेश नहीं देते,
    सो ज्ञात हुआ।
     
    भावार्थ-दीक्षा लेते ही तीर्थंकर भगवान् मौन हो जाते हैं क्योंकि पूर्ण ज्ञान (केवलज्ञान) का अभाव होने से असत्य का प्रतिपादन हो जाने की संभावना रहती है । इसी कारण वे किसी को आदेश नहीं देते और केवलज्ञान हो जाने के बाद भी बोलने की आवश्यकता नहीं होती क्योंकि दिव्य देशना के माध्यम से वस्तु तत्त्व का प्रतिपादन स्वयं ही हो जाता है ।
    - आर्यिका अकंपमति जी 
    हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।
     
    आओ करे हायकू स्वाध्याय
    आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचारक्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं।
    इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
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