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मूकमाटी प्रश्न प्रतियोगिता प्रारंभ ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • मंगलाचरण

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    Vidyasagar.Guru

    मंगलाचरण

     

    मोक्ष-मार्गस्य नेतारं, भेत्तारं कर्म-भूभृताम्।

    ज्ञातारं विश्व-तत्त्वानां, वन्दे तद्-गुण-लब्धये॥

     

    अर्थ - जो मोक्षमार्ग का प्रवर्तक है, कर्मरूपी पर्वतों का भेदन करने वाला है और समस्त तत्त्वों को जानता है, उसे मैं उन गुणों की प्राप्ति के लिए नमस्कार करता हूँ।

     

    English: I bow to the Lord, the promulgator of the path to liberation, the destroyer of mountains ( large heaps) of karmas and the knower of the whole reality, so that I may realize these qualities.  

     

    विशेषार्थ - यहाँ तीन विशेषणों के साथ आप्त की स्तुति की है। प्रथम विशेषण से आप्त को परम हितोपदेशी बतला कर जगत् के प्राणियों के प्रति उनका परम उपकार दर्शाया है। दूसरे विशेषण से आप्त को निर्दोष और वीतराग बतलाया है; क्योंकि जगत् के समस्त जीवों को अपने स्वरूप से भ्रष्ट करने वाले मोहनीय कर्म तथा ज्ञानावरण, दर्शनावरण और अन्तराय कर्म का नाश करके ही आप्त होता है। तीसरे विशेषण से अपने गुणपर्याय सहित समस्त पदार्थों को एक साथ जानने के कारण आप्त को सर्वज्ञ बतलाया है। इस तरह परम हितोपदेशी, वीतराग और सर्वज्ञ ही आप्त है। उसी के उपदेश से शास्त्र की उत्पत्ति होती है, उसका यथार्थ ज्ञान होता है, तथा उसी के द्वारा सर्वज्ञता और वीतरागता की प्राप्ति होती है। अतः ग्रन्थ के प्रारम्भ में ऐसे आप्त को नमस्कार करना उचित ही है।


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