अब गुप्ति का लक्षण कहते हैं -
सम्यग्योगनिग्रहो गुप्तिः ॥४॥
अर्थ - योग अर्थात् मन, वचन और काय की स्वेच्छाचारिता को रोकना गुप्ति है। लौकिक प्रतिष्ठा अथवा विषयसुख की इच्छा से मन, वचन और काय की प्रवृत्ति को रोकना, गुप्ति नहीं है; यह बतलाने के लिये ही सूत्र में सम्यक् पद दिया है। अतः जिससे परिणामों में किसी तरह का संक्लेश पैदा न हो, इस रीति से मन, वचन और काय की स्वेच्छाचारिता को रोकने से उसके निमित्त से होने वाला कर्मों का आस्रव नहीं होता। उस गुप्ति के तीन भेद हैं- कायगुप्ति, वचनगुप्ति और मनोगुप्ति।
English - Stopping activity of the mind, speech, and body without desire for material gains or fame is called control of mind, speech, and body.