अब चौथा भेद कहते हैं-
निदानं च ॥३३॥
अर्थ - भोगों की तृष्णा से पीड़ित होकर रात-दिन आगामी भोगों को प्राप्त करने की ही चिन्ता करते रहना निदान आर्तध्यान है। इस तरह आर्तध्यान के चार भेद हैं।
English - Thinking about the fulfillment of the wishes for enjoyment is the fourth sorrowful meditation.