इसके बाद इन अभ्यन्तर तपों के उप-भेदों की संख्या कहते हैं-
नव-चतुर्दश-पञ्च-द्विभेदा यथाक्रमं प्राग्ध्यानात् ॥२१॥
अर्थ - प्रायश्चित्त के नौ भेद हैं। विनय के चार भेद हैं। वैयावृत्य के दस भेद हैं। स्वाध्याय के पाँच भेद हैं और व्युत्सर्ग के दो भेद हैं। इस तरह ध्यान से पहले पाँच प्रकार के तपों के ये भेद हैं।
English - These are of nine, four ten, five and two kinds of expiation, reverence, service, study, and renunciation respectively.