वेदनीये शेषाः ॥१६॥
अर्थ - शेष ग्यारह परीषह अर्थात् क्षुधा, पिपासा, शीत, उष्ण, दंशमशक, चर्या, शय्या, वध, रोग, तृणस्पर्श और मल परीषह वेदनीय कर्म के उदय में होते हैं।
English - The other afflictions are caused by feeling producing karmas.
वेदनीये शेषाः ॥१६॥
अर्थ - शेष ग्यारह परीषह अर्थात् क्षुधा, पिपासा, शीत, उष्ण, दंशमशक, चर्या, शय्या, वध, रोग, तृणस्पर्श और मल परीषह वेदनीय कर्म के उदय में होते हैं।
English - The other afflictions are caused by feeling producing karmas.
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