प्रकृतिबन्ध के भेद बतला कर अब स्थितिबन्ध के भेद बतलाते हैं। स्थिति दो प्रकार की है-उत्कृष्ट और जघन्य; पहले कर्मों की उत्कृष्ट स्थिति कहते हैं-
आदितस्तिसृणामन्तरायस्य च त्रिंशत्सागरोपमकोटीकोट्यः परा स्थितिः ॥१४॥
अर्थ - आदि के तीन अर्थात् ज्ञानावरण, दर्शनावरण, वेदनीय और अन्तराय कर्मों की उत्कृष्ट स्थिति तीस कोटा-कोटी सागर प्रमाण है। यह उत्कृष्ट स्थितिबन्ध संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्तक मिथ्यादृष्टि जीव के होता है।
English - The maximum duration of the knowledge-obscuring, perception obscuring, feeling producing and obstructive karmas is thirty Sagara kotikoti.