अब अन्तराय कर्म के भेद कहते हैं-
दानलाभभोगोपभोगवीर्याणाम् ॥१३॥
अर्थ - दानान्तराय, लाभान्तराय, भोगान्तराय, उपभोगान्तराय और वीर्यान्तराय ये पाँच भेद अन्तराय कर्म के हैं। जिसके उदय से देने की इच्छा होते हुए भी नहीं देता है, वह दानान्तराय है। लाभ की इच्छा होते हुए भी तथा प्रयत्न करने पर भी जिसके उदय से लाभ नहीं होता है, वह लाभान्तराय है। भोग और उपभोग की चाह होते हुए भी जिसके उदय से भोग, उपभोग नहीं कर सकता, वह भोगान्तराय और उपभोगान्तराय है। उत्साह करने पर भी जिसके उदय से उत्साह नहीं हो पाता, वह वीर्यान्तराय है ॥१३॥
English - The obstructive karmas are of five kinds, obstructing the charity, gain, enjoyment of consumable things, enjoyment of non-consumable things and potency.