अन्त में परिग्रहत्याग व्रत की भावनाएँ कहते हैं-
मनोज्ञामनोज्ञेन्द्रियविषयरागद्वेषवर्जनानि पञ्च ॥८॥
अर्थ - पाँचों इन्द्रियों के झट-विषयों से राग नहीं करना और अनिष्ट विषयों से द्वेष नहीं करना - ये पाँच परिग्रहत्याग व्रत की भावनाएँ हैं।
जैसे इन व्रतों को दृढ़ करने के लिए ये भावनाएँ कहीं हैं, वैसे ही इन व्रतों के विरोधी जो हिंसा आदि हैं, उनसे विमुख करने के लिए भी भावनाएँ कहते हैं -
English - Giving up attachment to objects agreeable to the five senses and aversion to objects disagreeable to the five senses constitute five observances of non-attachment.