तीसरे अचौर्यव्रत की भावनाएँ कहते हैं-
शून्यागारविमोचितावास-परोपरोधाकरण-भैक्ष्यशुद्धिसधर्माविसंवादाः पश्च ॥६॥
अर्थ - शून्यागार अर्थात् पर्वत की गुफा, वन और वृक्षों के कोटरों में निवास करना, विमोचितावास अर्थात् दूसरों के छोड़े हुए ऊजड़ स्थान में निवास करना, परोपरोधाकरण अर्थात् जहाँ आप ठहरे वहाँ यदि कोई दूसरा ठहरना चाहे तो उसे रोकना नहीं और जहाँ कोई पहले से ठहरा हो तो उसे हटाकर स्वयं ठहरे नहीं, भैक्ष्य शुद्धि अर्थात् शास्त्रोक्त रीति से शुद्ध भिक्षा लेना और सधर्माविसंवाद अर्थात् साधर्मी भाइयों से लड़ाई झगड़ा नहीं करना ये पाँच अचौर्य व्रत की भावनाएँ हैं।
English - Residence in a solitary place, residence in a deserted habitation, causing no hindrance to the residence by others, acceptance of clean food and not quarreling with brother monks, are five observances of vow against stealing.