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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • अध्याय 7 : सूत्र 30

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    Vidyasagar.Guru

    अन्य व्रतों में दिग्विरति के अतिचार कहते हैं-

     

    ऊर्ध्वाधस्तिर्यग्व्यतिक्रमक्षेत्रवृद्धिस्मृत्यन्तराधानानि ॥३०॥

     

     

    अर्थ - ऊर्ध्वतिक्रम, अधोऽतिक्रम, तिर्यगतिक्रम, क्षेत्र-वृद्धि और स्मृत्यन्तराधान- ये पाँच दिग्विरति व्रत के अतिचार हैं।

     

    English - Exceeding the limits set in the directions, namely upwards, downwards and horizontally, enlarg-ing the boundaries in the accepted directions, and forgetting the bound-aries set, are the five transgressions of the minor vow of direction.

     

    विशेषार्थ - दिशाओं की परिमित मर्यादा के लांघने को अतिक्रम कहते हैं। संक्षेप में उसके तीन भेद हैं - पर्वत या अमेरिका के ऐसे ऊँचे मकान वगैरह पर चढ़ने से ऊर्ध्वतिक्रम अतिचार होता है। कुँए वगैरह में उतरने से अधोऽतिक्रम होता है और पर्वत की गुफा वगैरह में चले जाने से तिर्यगतिक्रम होता है। दिशाओं का जो परिमाण किया है, लोभ में आकर उससे अधिक क्षेत्र में जाने की इच्छा करना, क्षेत्रवृद्धि नाम का अतिचार है। की हुई मर्यादा को भूल जाना स्मृत्यन्तराधान है।


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